NCERT Study Material for Class 10 Hindi Kritika Chapter 2 'Sana-Sana Hath Jodi' - साना साना हाथ जोड़ि
हमारे ब्लॉग में आपको NCERT पाठ्यक्रम के अंतर्गत कक्षा 10 (Course A) की हिंदी पुस्तक ‘क्षितिज’ और हिंदी पूरक पाठ्यपुस्तक ‘कृतिका’ के पाठ पर आधारित सामग्री प्राप्त होगी जो पाठ की विषय-वस्तु को समझने में आपकी सहायता करेगी। इसे समझने के उपरांत आप पाठ से संबंधित किसी भी प्रश्न का उत्तर सरलता से दे सकेंगे।
यहाँ NCERT HINDI Class 10 के पाठ – 2 ‘साना – साना हाथ जोड़ि’ – Sana Sana Hath Jodi के मुख्य बिंदु (Important / Key points) दिए जा रहे हैं। साथ ही आपकी सहायता के लिए पाठ – साना साना हाथ जोड़ि (Sana Sana Hath Jodi) के पाठ्यपुस्तक में दिए गए प्रश्नों के सटीक उत्तर (Textbook Question-Answers) एवं अतिरिक्त प्रश्नों के उत्तर (Extra Questions /Important Questions with Answers) सरल एवं भाषा में दिए गए हैं। आशा है पाठ – साना साना हाथ जोड़ि (Sana Sana Hath Jodi) की यह सामग्री आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
Table of Contents
Sana Sana Hath Jodi Explanation
साना साना हाथ जोड़ि - सहायक सामग्री
~ ‘साना – साना हाथ जोड़ि’ लेखिका मधु कांकरिया द्वारा लिखा गया एक यात्रा – वृत्तांत है।
~ इस पाठ में लेखिका ने भारत के राज्य सिक्किम की राजधानी गंतोक (गैंगटॉक) और उसके आगे हिमालय की यात्रा का वर्णन किया है।
~ लेखिका ने इस पाठ का नाम ‘साना – साना हाथ जोड़ी’ एक नेपाली युवती की बोली हुई प्रार्थना से लिया है।
~ ‘साना-साना हाथ जोड़ि’ का अर्थ है – छोटे – छोटे हाथ जोड़कर प्रार्थना करती हूँ।
~ पाठ के आरंभ में लेखिका ने सिक्किम की राजधानी गैंगटॉक की रात की सुंदरता का वर्णन किया है। रात के समय गैंगटॉक शहर में जलती रोशनी को देखकर उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे आसमान उलटा पड़ा है और सारे तारे इस शहर की ज़मीन पर बिखरकर टिमटिमाती झालर के समान दिख रहे हैं। तारों से भरी रात ने उन्हें इतना सम्मोहित (आकर्षित) किया कि वह उस सुंदरता में खो सी गईं।
~ सुबह जब आसमान में सूर्य उदित होने लगा तब उनके होंठों पर अपने – आप उस प्रार्थना के बोल आ गए, जिसे उन्होंने उसी दिन सुबह एक नेपाली युवती से सीखा था – ‘साना – साना हाथ जोड़ि, गर्दहु प्रार्थना। हाम्रो जीवन तिम्रो कौसेली’ अर्थात् ‘छोटे-छोटे हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रही हूँ कि मेरा सारा जीवन अच्छाइयों को समर्पित हो।’
~ मौसम साफ़ न होने के कारण लेखिका हिमालय की तीसरी सबसे बड़ी चोटी कंचनजंघा को अपनी बालकनी से तो नहीं देख सकी, परंतु तरह-तरह के खिले फूल देखकर उन्हें लगा कि वह किसी बाग में आ गई हैं।
~ वह उसी दिन गैंगटॉक से 149 किलोमीटर दूर यूमथांग देखने अपनी सहयात्री मणि और गाइड जितेन नार्गे के साथ रवाना हुई।
~ उनके ड्राइवर – कम – गाइड जितेन नार्गे ने उन्हें बताया कि यूमथांग यानि घाटियाँ। सारे रास्ते उन्हें हिमालय की गहरी घाटियाँ और फूलों से लदी वादियाँ मिलेंगी।
~ पाईन और धूपी के खूबसूरत नुकीले पेड़ों को देखते हुए वे लोग पहाड़ी रास्ते पर आगे बढ़ते हैं। रास्ते में उन्होंने सफ़ेद – सफ़ेद बौद्ध पताकाएँ (झंडियाँ) देखीं। लेखिका को ये पताकाएँ किसी ध्वज (झंडे) की तरह लहराती हुई, शांति और अहिंसा की प्रतीक लगी। उन पताकाओं पर मंत्र लिखे हुए थे। उनके गाइड नार्गे ने बताया कि यहाँ के लोग बौद्ध धर्म में विश्वास करते हैं। जब भी किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु होती है, उसकी आत्मा की शांति के लिए शहर से दूर किसी भी पवित्र स्थान पर एक सौ आठ श्वेत पताकाएँ फहरा दी जाती हैं। इन्हें उतारा नहीं जाता, ये धीरे – धीरे अपने आप ही नष्ट हो जाती हैं।
किसी नए कार्य की शुरुआत में भी ऐसी रंगीन पताकाएँ लगाई जाती हैं।
~ रास्ते में थोड़ा आगे बढ़ाने पर वे लोग ‘कवी-लोंग- स्टॉक नामक स्थान पर पहुँचे। गाइड जितेन नार्गे ने बताया कि यहाँ हिंदी फिल्म ‘गाइड’ की शूटिंग हुई थी। इसी स्थान पर तिब्बत के चीस-खे-बम्सन ने लेपचा और भुटिया, सिक्किम की इन दोनों जातियों के साथ लंबे समय से चल रहे झगड़े के बाद संधि – पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। उन्होंने स्मारक के रूप में रखे एक पत्थर को भी देखा।
~ रास्ते में लेखिका ने एक कुटिया में धर्म चक्र देखा। नार्गे ने बताया कि यह प्रेयर व्हील है। इसको घुमाने से पाप धुल जाते हैं। यह सुनकर लेखिका के मन में विचार आए कि चाहे मैदान हो या पहाड़, अनेक वैज्ञानिक प्रगतियों के बावजूद भी इस देश की आत्मा एक जैसी है अर्थात् बुद्धि के स्तर पर इतनी प्रगति करने के बाद भी लोग ऐसे अंधविश्वासों को मानते हैं। गंगा नदी को लेकर भी लोगों की यही सोच है। वे ऐसा समझते हैं कि प्रार्थना के साथ मात्र एक व्हील (चक्र) घुमा देने से या केवल गंगा नदी में स्नान कर लेने से उनके सारे बुरे कर्म अच्छे कर्मों में बदल जाएँगे।
~ ऊँचाई पर चढ़ते हुए धीरे-धीरे लेखिका को स्थानीय लोगों का दिखना बंद हो गया। बाज़ार, लोग और बस्तियाँ पीछे छूटने लगे। नीचे देखने पर घर, ताश के पत्तों जैसे छोटे-छोटे दिखने लगे। हिमालय की विशालता दिखने लगी। तब लेखिका ने हिमालय को उसके पल-पल बदलते रूप में देखा।
~ रास्ते वीरान (सुनसान), सँकरे (पतले) और घुमावदार होने लगे। गहरी खाइयाँ बादलों से भरी थीं। हरियाली के बीच कहीं-कहीं खिले फूल भी थे। हिमालय की सुंदरता ने यात्रियों को प्रभावित किया। सभी यात्री झूम-झूमकर गाने लगे – “सुहाना सफर और ये मौसम हसीं…।”
~ लेखिका एक ऋषि की तरह शांत और चुप रहकर, प्रकृति के उस भव्य रूप का आनंद ले रही थी। लेखिका ने उत्साह में जीप की खिड़की से अपना सिर निकालकर वह कभी आसमान को छूते ऊँचे पर्वतों की चोटियों को देखती तो कभी ऊपर से दूध की धार की तरह गिरते जल-प्रपातों (झरनों) को। तो कभी चाँदी की तरह चमकती सुंदर तिस्ता नदी को जो लगातार सिलीगुड़ी से उनके साथ-साथ चल रही थी।
~ प्रसन्न लेखिका ने हिमालय को सलामी देनी चाही कि तभी उनकी जीप ‘सेवन सिस्टर्स वॉटर फॉल’ के सामने आ खड़ी हुई। झरने की कल-कल और ठंडक ने लेखिका के मन की सारी दुर्भावनाओं को खत्म कर दिया। सत्य और सौंदर्य की अनुभूति से वह भावुक हो उठी।
~ आगे बढ़ने पर बादलों की लुका-छिपी के बीच हिमालय की शोभा हरे, पीले और कहीं पथरीले रूप में फिर दिखाई देने लगी। पल-पल बदलती और सुंदर होती प्रकृति के विराट रूप के आगे लेखिका को अपना अस्तित्व तिनके जैसा लगा। प्रकृति के उस सुंदरतम रूप को देखकर लेखिका ईश्वर की समीपता का अनुभव करने लगी। आत्मज्ञान होते ही एक बार फिर उसने प्रार्थना दोहराई – ‘साना – साना हाथ जोड़ि…’
~ प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक (इस लोक से परे, ईश्वर के साथ के) आनंद में डूबी लेखिका को अचानक एक दृश्य ने अंदर तक झकझोर दिया। उन्होंने कुछ पहाड़ी औरतों को हथौड़े और कुदाल से पत्थर तोड़ते हुए देखा। कई औरतों ने पीठ पर बँधी डोको (बड़ी टोकरी) में अपने बच्चों को बाँध रखा था। स्वर्ग के समान सुंदर नज़ारों, नदी, फूलों, वादियों और झरनों के बीच भूख, मौत, गरीबी और ज़िंदा रहने की यह जंग देखकर लेखिका अत्यधिक भावुक हो गई। उन्होंने देखा मातृत्व और श्रम साधना को साथ-साथ देखकर लेखिका को बहुत दुख हुआ।
~ पूछने पर वहीं खड़े बी. आर. ओ. (बोर्ड रोड आर्गनाइजेशन) के एक कर्मचारी ने बताया कि ये पहाड़ी औरतें पहाड़ों के सँकरे रास्तों को कुदाल से चौड़ा बनाने का काम कर रही हैं। लेखिका ने जब उस कर्मचारी से पूछा कि बड़ा खतरनाक काम होता होगा यह? तब उसने कहा कि पिछले महीने तो एक की जान भी चली गई थी।
उसने कहा कि बड़ा कठिन कार्य है पहाड़ों पर रास्ता बनाना क्योंकि पहले डाइनामाइट से चट्टानों को उड़ाया जाता है। फिर बड़े – बड़े पत्थरों को तोड़कर एक आकार के छोटे – छोटे पत्थरों में बदला जाता है, फिर बड़े – से जाले में उन्हें लंबी पट्टी की तरह बिठाकर कटे रास्तों पर एक बाड़े की तरह लगाया जाता है। ज़रा – सी भी गलती होने पर पहाड़ से गिरकर मरने का खतरा होता है।
~ पहाड़ी औरतों की के जीवन – संकट के बारे में जानकर लेखिका को रास्ते में सिक्किम सरकार द्वारा लगाया गया बोर्ड ध्यान आया, जिसपर लिखा था – ‘एवर वंडर्ड हू डिफाइड डेथ टू बिल्ड दीज़ रोड्स’ अर्थात् आप ताज्जुब करेंगे पर इन रास्तों को बनाने में लोगों ने मौत को झुठलाया है।
~ पहाड़ी औरतों को देखकर लेखिका को पलामू और गुमला के जंगलों की आदिवासी महिलाओं का ध्यान आया। वे भी पीठ पर बच्चे को कपड़े से बाँधकर पत्तों की तलाश में वन-वन भटकती थी। उन आदिवासी महिलाओं के फूले हुए पाँव और पत्थर तोड़ती पहाड़िनों के हाथों पर पड़े निशान दोनों ही यह स्पष्ट कर रहे थे कि आम जिंदगियों की कहानी एक-सी है अर्थात् दोनों के जीवन में आँसू, दर्द, अभाव एक समान हैं।
~ जब गाइड नार्गे ने लेखिका को दुखी देखा तब उसने कहा कि ये मेरे देश की आम जनता है। तब लेखिका ने मन में सोचा कि ये आम जनता ही नहीं, जीवन के प्रति संतुलन भी है। ये ‘वेस्ट एट रिपेईंग’ हैं। कितना कम लेकर ये समाज को कितना अधिक वापस लौटा देती हैं।
लेखिका ने यह महसूस किया कि ये आम पहाड़ी औरतें इतनी मेहनत करके और कष्ट उठाकर पर्यटकों (यात्रियों) के लिए रास्ता बना रही हैं जिससे वे प्राकृतिक दृश्यों का आनंद ले सकें। रास्ता बन जाने से पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी और इसका असर देश की आर्थिक स्थिति पर पड़ेगा। देश प्रगति करेगा। परंतु इस जोखिम भरे काम के बदले में इन्हें बहुत ही थोड़ा मेहनताना मिलता है क्योंकि इनका बहुमूल्य योगदान किसी को भी दिखाई नहीं देता। इसलिए लेखिका ने ऐसा कहा।
~ वहाँ से जाते समय लेखिका ने देखा कि पत्थर तोड़ती वे औरतें किसी बात पर खिलखिलाकर हँस रही थीं। उन्हें हँसता देखकर सारा खंडहर ताजमहल बन गया अर्थात् उनका दुखी मन प्रसन्न हो गया।
~ थोड़ा और ऊँचाई पर चढ़ने के बाद लेखिका ने देखा कि सात-आठ साल के बच्चे स्कूल से लौट रहे थे और उनसे लिफ़्ट माँग रहे थे। जितेन नार्गे ने बताया कि यहाँ तराई में एक ही स्कूल है। दूर-दूर से बच्चे उसी स्कूल में पढ़ने जाते हैं। ये बच्चे हर रोज़ तीन – साढ़े तीन किलोमीटर की चढ़ाई चढ़कर पढ़ने के लिए स्कूल जाते हैं। शाम को अपनी माताओं के साथ जंगल से लकड़ी काटकर तथा भारी गट्ठर ढो कर लाते हैं , पानी भरते हैं और मवेशियों को चराते हैं।
ये सब जानकर लेखिका को पहाड़ी जीवन की कठिनाइयों का अहसास हुआ। उन्हें लगा कि मैदानों की तुलना में पहाड़ों पर जीवन कठोर है। रास्ते और भी सँकरे होते जा रहे थे। रास्ते में कई जगह सावधानीपूर्वक चलने के निर्देश लिखे थे। वहीं उन्हें घने बालों वाले याक भी दिखे।
~ सूरज अस्त होने लगा था। लेखिका ने देखा कि कुछ पहाड़ी औरतें गायों को चराकर वापस लौट रही थीं। कुछ के सिर पर लकड़ियों के भारी गट्ठर थे। लेखिका की जीप चाय के बागानों से गुज़र रही थी तभी उन्होंने कई युवतियों को सिक्किमी परिधान बोकु पहने चाय की पत्तियाँ तोड़ते देखा। उन युवतियों की सुंदरता को देखकर लेखिका मंत्रमुग्ध हो गई।
~ यूमथांग जाते हुए लेखिका को रात लायुंग की शांत बस्ती में बितानी पड़ी। वहाँ के वातावरण की अद्भुत शांति में लेखिका के मन में ने विचार उठे कि मनुष्य ने प्रकृति की लय, ताल और गति को बिगाड़कर बहुत बड़ा अपराध किया है। हिमालय के पवित्र वातावरण में लेखिका केवल हिमालय की सुंदरता से ही प्रभावित नहीं हो रही थी बल्कि उनके मन में इस प्रकार के विचार उमड़ रहे थे इसलिए लेखिका ने यह लिखा है कि ‘हिमालय मेरे लिए कविता ही नहीं, दर्शन बन गया था।’
~ अपने ही विचारों में खोई हुई लेखिका तिस्का नदी के किनारे एक पत्थर पर जाकर बैठ गई। रात के समय जितेन नार्गे ने अपने साथियों के साथ नाचना शुरू किया तो सभी यात्री गोल घेरा बनाकर नाचने लगे। लेखिका की पचास वर्ष की सहेली मणि ने ऐसा जानदार नृत्य किया कि लेखिका हैरान रह गई।
~ लायुंग के लोगों की जीविका (earning) का मुख्य साधन पहाड़ी आलू, धान की खेती और शराब का व्यापार है।
~ सी-लेवल से 1400 फीट ऊँचाई पर होने पर भी वहाँ बर्फ़ नहीं थी। लेखिका बर्फ़ देखने के लिए बेचैन थी।।
~ एक सिक्किमी नवयुवक ने बताया कि प्रदूषण के कारण स्नो-फॉल लगातार कम होता जा रहा है। अगर उन्हें बर्फ़ देखनी है तो उन्हें ‘कटाओ यानी भारत का स्विट्जरलैंड’ जाना चाहिए। कटाओ अभी टूरिस्ट स्पॉट नहीं बना था और यात्री उसके बारे में ज़्यादा जानते नहीं थे। इसलिए वह अपने प्राकृतिक स्वरूप में था।
~ कटाओ लायुंग से 500 फीट ऊँचाई पर था और लायुंग से लगभग दो घंटे का सफ़र था। कटाओ का पूरा रास्ता अधिक खतरनाक और धुंध से भरा था। सभी कुछ बादलों से ढक गया था। जितेन लगभग अंदाज़े से लेकिन सावधानी से गाड़ी चला रहे थे। रास्ते में चेतावनी वाले बोर्ड लगे हुए थे।
~ वहाँ पहुँचने पर ताज़ा बर्फ़ से पूरे ढके पहाड़ चाँदी से चमक रहे थे। जब नार्गे ने कटाओ को भारत का स्विट्ज़रलैंड कहा तब लेखिका की मित्र मणि ने कटाओ को स्विट्ज़रलैंड से भी अधिक ऊँचाई पर और स्विट्ज़रलैंड से भी अधिक सुंदर बताया। वहाँ चारों ओर घुटनों तक बर्फ़ बिछी थी और फिर बर्फ़बारी होने लगी अर्थात् बर्फ़ गिरने लगी ।
~ यात्री इस सुंदरता का आनंद उठाने लगे। लेखिका ने भी उस सुंदर दृश्य को अपने हृदय में समा लिया। लेखिका की इच्छा हुई कि वह भी औरों के समान बर्फ़ पर लेटे लेकिन उनके पास बर्फ़ में पहनने वाले लंबे बूट नहीं थे और कटाओ में एक भी दुकान न होने के कारण वह बूट नहीं ले सकीं। वह आध्यात्मिकता से जुड़ गई। वह विचार करने लगी कि शायद ऐसी ही सुंदरता और दिव्यता से प्रेरित होकर ऋषियों ने वेदों की रचना की होगी और जीवन के सत्यों को खोजा होगा। लेखिका का मानना था कि ऐसी पवित्र सुंदरता देखकर बड़े से बड़े अपराधी के मन में भी करुणा (दया) के कोमल भाव उत्पन्न हो सकते हैं।
~ उस पर्वतीय सौंदर्य को देखकर लेखिका की सहेली मणि के मन में भी दर्शनिकता के भाव उत्पन्न होने लगे। वह कहने लगी कि प्रकृति की जल संचय व्यवस्था कितनी अद्भुत है। वह अपने अनोखे ढंग से ही जल संचय करती हैं। यह हिमशिखर जल स्तंभ हैं पूरे एशिया के।
प्रकृति सर्दियों में पहाड़ की ऊँची-ऊँची चोटियों पर बर्फ़ जमा करके जल – संग्रह कर देती हैं और गर्मी आते ही ये बर्फ़ के पहाड़ पिघल कर पानी के रूप में नदियों में मिलकर हम तक पहुँचते हैं और हमारी प्यास बुझाते हैं। मणि ने ये सब कहकर अपना शीश झुकाते हुए मानो प्रकृति को अपना आभार प्रकट किया और कहा – “जाने कितना ऋण है हम पर इन नदियों का, हिम शिखरों का।”
~ थोड़ा और आगे बढ़ने पर लेखिका को कुछ फ़ौजी छावनियाँ दिखीं। तभी उन्हें ध्यान आया कि यह बॉर्डर एरिया है। थोड़ी दूरी पर चीन की सीमा है। जब लेखिका ने एक फ़ौजी से पूछा कि ” इतनी कड़कड़ाती ठंड में आप लोगों को बहुत तकलीफ़ होती होगी।” तब फ़ौजी ने हँसते हुए जवाब दिया कि “आप चैन की नींद सो सकें इसीलिए तो हम यहाँ पहरा दे रहे हैं।”
~ लेखिका सोचने को मजबूर हो गई कि जब इस कड़कड़ाती ठंड में हम थोड़ी देर भी यहाँ ठहर नहीं पा रहे हैं तो ये फ़ौजी कैसे अपनी ड्यूटी निभाते होंगे। यह सोचकर लेखिका का सिर सम्मान से झुक गया। उन्होंने फ़ौजी से ‘फेरी भेटुला’ अर्थात् फिर मिलेंगे कहकरकर विदा ली।
~ इसके बाद लेखिका और उनकी जीप लायुंग वापस लौटकर फिर यूमथांग की ओर चल पड़ी। यूमथांग की घाटियों में उस समय ढेरों प्रियुता और रूडोडेंड्रो के बहुत ही खूबसूरत फूल खिले थे। लेकिन बर्फ़ से ढके पहाड़ों को देखने के बाद यूमथांग वापस आकर उन लोगों को सब कुछ फिका फिका लग रहा था क्योंकि यूमथांग कटाओ जैसा सुंदर नहीं था।
~ चलते – चलते लेखिका ने चिप्स बेचती एक सिक्क्मी युवती से पूछा “क्या तुम सिक्किमी हो?” युवती ने जवाब दिया “नहीं, मैं इंडियन हूँ।” यह सुनकर लेखिका को बहुत अच्छा लगा कि सिक्किम के लोग भारत में मिलकर बहुत खुश हैं। सिक्किम पहले भारत का हिस्सा नहीं था। वह पहले स्वतंत्र रजवाड़ा था। लेकिन अब सिक्किम भारत में कुछ इस तरह से घुलमिल गया है ऐसा लगता ही नहीं कि, सिक्किम पहले भारत का हिस्सा नहीं था। तब वहाँ पर टूरिस्ट उद्योग इतना फला – फूला नहीं था। सिक्किम के लोग भारत का हिस्सा बनकर काफी खुश हैं।
~ जब वे लोग जीप में बैठने लगे तभी एक पहाड़ी कुत्ते ने रास्ता काट लिया। तब मणि ने बताया कि ये पहाड़ी कुत्ते सिर्फ चाँदनी रात में ही भौंकते हैं। यह सुनकर लेखिका हैरान थी।
~ यात्रा से लौटते समय भी जितेन नार्गे उन्हें तरह – तरह की जानकारियाँ देता रहा। उसने लेखिका को गुरु नानक के फुटप्रिंट वाला पत्थर भी दिखाया। नार्गे ने बताया कि ऐसा माना जाता है कि इस जगह पर गुरु नानकजी की थाली से थोड़े से चावल छिटक कर गिर गए थे और जिस जगह चावल छिटक कर गिर गए थे वहाँ अब चावल की खेती होती है।
~ करीब 3 – 4 किलोमीटर नार्गे ने बताया कि इस जगह को खेदुम कहते हैं। यह लगभग 1 किलोमीटर का क्षेत्र था। नार्गे ने बताया कि इस स्थान पर देवी-देवताओं का निवास है। यहाँ कोई गंदगी नहीं फैलाता है। जो भी गंदगी फैलाता है वह मर जाता है। उसने यह भी बताया कि हम पहाड़, नदी, झरने इन सब की पूजा करते हैं। हम इन्हें गंदा नहीं कर सकते। यदि गंदा करेंगे तो हम मर जाएँगे।
~ तब लेखिका ने कहा कि “तभी गैंगटॉक इतना सुंदर है”। नार्गे ने तुरंत कहा “गैंगटॉक नहीं मैडम गंतोक कहिए। इसका असली नाम गंतोक है। गंतोक का मतलब है पहाड़।”
~ नार्गे ने आगे बताया कि सिक्किम के भारत में मिलने के कई वर्षों बाद भारतीय आर्मी के एक कप्तान शेखर दत्ता ने इसे पर्यटन स्थल (टूरिस्ट स्पॉट) बनाने का निर्णय लिया। इसके बाद से ही सिक्किम में पहाड़ों को काटकर रास्ते बनाए जा रहे हैं। नए – नए पर्यटन स्थलों की खोज जारी है। लेखिका ने मन ही मन सोचा कि ‘मनुष्य की इसी असमाप्त खोज का नाम ही तो सौंदर्य है।’
Sana Sana Hath Jodi Question Answers
साना साना हाथ जोड़ि - प्रश्न उत्तर
1. झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका को किस तरह सम्मोहित कर रहा था?
उत्तर – झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गैंगटॉक लेखिका को रहस्यमय लगने लगा। वह उसकी सुंदरता के जादू में बँध – सी गई। उन्हें अपना और अपने आस-पास की हर चीज़ निरर्थक लगने लगी। उनके विचारों का क्रम थम गया। वह दूर तक दिखाई देती सितारों की झालर की सुंदरता को अलौकिक (जो इस लोक की न हो) रूप में देखने लगी। उन्होंने अपने दोनों हाथ जोड़े और उसी दिन नेपाली युवती से सीखी प्रार्थना – ‘मेरा सारा जीवन अच्छाइयों को समर्पित हो’ अपने-आप उनके होंठों पर आ गई।
2. गंतोक को ‘मेहनतकश बादशाहों का शहर’ क्यों कहा गया है?
उत्तर – अपनी यात्रा के दौरान लेखिका ने यह अनुभव किया कि गंतोक के लोग बहुत मेहनती होते हैं । वहाँ पुरुष ही नहीं, औरतें और बच्चे भी कड़ी मेहनत करते हैं।
पहाड़ों पर रास्ता बनाने के लिए औरतें अपने बच्चों को अपनी पीठ पर बाँधकर हथौड़े और कुदाल से पत्थर तोड़ने जैसा कठिन और जोखिम भर कार्य करती हैं।
औरतें चाय के बागानों में भी काम करती हैं।
सूरज ढलने तक गायों को चराना, जंगल से लकड़ियाँ लाना और बच्चों को भी इन कामों की शिक्षा देने का काम करके औरतें घर और बाहर की ज़िम्मेदारी सँभालती हैं।
बच्चे भी 7-8 साल की उम्र से ही तीन-साढ़े तीन किलोमीटर की पहाड़ की ऊँचाई चढ़कर शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्कूल जाते हैं।
मौसम की मुश्किलों का सामना करते हुए अपने कामों में डटे रहना ही उनका जीवन है इसलिए गंतोक को मेहनतकश बादशाहों का शहर कहा गया है।
3. कभी श्वेत तो कभी रंगीन पताकाओं का फहराना किन अलग-अलग अवसरों की ओर संकेत करता है?
उत्तर – लेखिका को अपनी यूमथांग की यात्रा के रास्ते में सफ़ेद – सफ़ेद बौद्ध पताकाएँ (झंडियाँ) दिखीं। लेखिका को ये पताकाएँ किसी ध्वज (झंडे) की तरह लहराती हुई, शांति और अहिंसा की प्रतीक लगी। उन पताकाओं पर मंत्र लिखे हुए थे। उनके गाइड नार्गे ने बताया कि यहाँ के लोग बौद्ध धर्म में विश्वास करते हैं। जब भी किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु होती है, उसकी आत्मा की शांति के लिए शहर से दूर किसी भी पवित्र स्थान पर एक सौ आठ श्वेत पताकाएँ फहरा दी जाती हैं। इन्हें उतारा नहीं जाता, ये धीरे – धीरे अपने आप ही नष्ट हो जाती हैं।
किसी नए कार्य की शुरुआत में भी ऐसी रंगीन पताकाएँ लगाई जाती हैं।
4. जितेन नार्गे ने लेखिका को सिक्किम की प्रकृति, वहाँ की भौगोलिक स्थिति एवं जनजीवन के बारे में क्या महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ दीं, लिखिए।
उत्तर – यात्रा के दौरान जितेन ने लेखिका को सिक्किम की प्रकृति, वहाँ की भौगोलिक स्थिति एवं जन – जीवन के बारे में अनेक जानकारियाँ दी-
(i) उसने बताया कि यूमथांग का अर्थ होता है-घाटियाँ। यूमथांग जाने के रास्ते में हिमालय की गहनतम घाटियाँ और फूलों से लदी वादियाँ मिलती हैं।
(ii) सिक्किम के लोग बौद्ध धर्म को मानते हैं। उसने बताया कि शांति और अहिंसा के प्रतीक श्वेत (सफ़ेद) पताकाएँ किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु पर लगाई जाती हैं, और नए काम की शुरुआत पर रंगीन पताकाएँ लगाने का प्रचलन है।
(iii) ‘कवी लोंग स्टॉक’ स्थल की विशेषता बताते हुए उसने कहा कि यहाँ पर ‘गाइड’ फिल्म की शूटिंग हुई थी, तथा सिक्किम की दो स्थानीय जातियों के बीच चल रहे बहुत लंबी झगड़े के बाद शांति वार्ता का शुरुआती स्थल भी यही है।
(iv) नागें ने उत्सुकता पूर्वक ‘धर्म चक्र’ के बारे में भी बताया, कि प्रेयर व्हील को घुमाने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।
(v) यहाँ के लोग बहुत परिश्रमी हैं। पहाड़ों पर जीवन कठोर होता है। यहाँ पर कोई भी व्यक्ति चिकना, वर्बीला नहीं होता। यहाँ के बच्चे भी बहुत मेहनती हैं। इस क्षेत्र में एक ही स्कूल है, जहाँ रोज़ तीन – साढ़े तीन किलोमीटर चढ़ाई करके बच्चे पढ़ने जाते हैं। शाम को बच्चे अपनी माताओं के साथ जानवरों को चराने जाते हैं और जंगल से लकड़ी काटकर लाते हैं।
(vi) उसने बताया कि बर्फ से ढकी चोटियों के कारण कटाओ को भारत का स्विट्जरलैंड कहते हैं।
(vii) प्रियुता और रूडोडेंड्रो के फूलों से प्रति वर्ष यूमथांग की धाट भर जाती है।
(viii) यात्रा से लौटते समय भी जितेन नार्गे उन्हें तरह – तरह की जानकारियाँ देता रहा। उसने लेखिका को गुरु नानक के फुटप्रिंट वाला पत्थर भी दिखाकर बताया कि ऐसा माना जाता है कि इस जगह पर गुरु नानकजी की थाली से थोड़े से चावल छिटक कर गिर गए थे और जिस जगह चावल छिटक कर गिर गए थे वहाँ अब चावल की खेती होती है।
(ix) उसने लगभग 1 किलोमीटर का क्षेत्र दिखाकर कहा कि इस जगह को खेदुम कहते हैं। इस स्थान पर देवी-देवताओं का निवास है। यहाँ कोई गंदगी नहीं फैलाता है। जो भी गंदगी फैलाता है वह मर जाता है। उसने यह भी बताया कि हम पहाड़, नदी, झरने इन सब की पूजा करते हैं। हम इन्हें गंदा नहीं कर सकते। यदि गंदा करेंगे तो हम मर जाएँगे।
(x) उसने लेखिका को बताया कि गैंगटॉक का असली नाम गंतोक है। गंतोक का मतलब है पहाड़।
(xi) नार्गे ने आगे बताया कि सिक्किम के भारत में मिलने के कई वर्षों बाद भारतीय आर्मी के एक कप्तान शेखर दत्ता ने इसे पर्यटन स्थल (टूरिस्ट स्पॉट) बनाने का निर्णय लिया। इसके बाद से ही सिक्किम में पहाड़ों को काटकर रास्ते बनाए जा रहे हैं।
5. लोंग स्टॉक में घूमते हुए चक्र को देखकर लेखिका को पूरे भारत की आत्मा एक-सी क्यों दिखाई दी?
उत्तर – लोंग स्टॉक में लेखिका ने एक कुटिया में धर्म चक्र देखा। नार्गे ने बताया कि यह प्रेयर व्हील है। इसको घुमाने से पाप धुल जाते हैं। यह सुनकर लेखिका के मन में विचार आए कि चाहे मैदान हो या पहाड़, अनेक वैज्ञानिक प्रगतियों के बावजूद भी इस देश की आत्मा एक जैसी है अर्थात् बुद्धि के स्तर पर इतनी प्रगति करने के बाद भी लोग ऐसे अंधविश्वासों को मानते हैं। गंगा नदी को लेकर भी लोगों की यही सोच है। वे ऐसा समझते हैं कि प्रार्थना के साथ मात्र एक व्हील (चक्र) घुमा देने से या केवल गंगा नदी में स्नान कर लेने से उनके सारे बुरे कर्म अच्छे कर्मों में बदल जाएँगे।
6. जितेन नार्गे की गाइड की भूमिका के बारे में विचार करते हुए लिखिए कि एक कुशल गाइड में क्या गुण होते हैं?
उत्तर –
(i) एक कुशल गाइड में उस स्थान की भौगोलिक, प्राकृतिक और सामाजिक जन – जीवन की स्थिति पता होना चाहिए। जितेन नार्गे में ये सभी गुण थे।वह लेखिका को सिक्किम की भी हर जगह की भौगोलिक, प्राकृतिक और जन – जीवन की जानकारी दे रहा था।
(ii) नार्गे की एक विशेषता यह थी कि वह ड्राइवर भी था। ड्राइवर का काम यात्री को उस स्थान की विशेष जगहों पर घूमाने का होता है, नार्गे को सिक्किम और आसपास की हर जगह के बारे में अच्छे से पता था।
(iii) एक कुशल गाइड अपनी रोचक बातों से सैलानियों का मनोरंजन करता है। नार्गे में यह गुण भी था।
(iv) एक गाइड को मिलनसार होना चाहिए। वह मिलनसार था। बोलने की कला में निपुण था। यात्रा के दौरान वह अपने साथियों और अन्य यात्रियों के साथ नाचकर माहौल को मनोरंजक बना देता है।
(v) एक गाइड को पर्यटक (यात्री) की रुचियों और विचारों को समझकर उनकी यात्रा को यादगार बनाने में मदद करनी चाहिए। जितेन नार्गे ने भी जब लेखिका को बर्फ़ देखने के लिए बेचैन देखा तो खराब मौसम और खतरनाक रास्ते के बावजूद भी अपनी कुशलता से लेखिका को कटाओ में बर्फ़बारी का अनुभव करा कर उनकी यात्रा को यादगार बना दिया।
7. इस यात्रा – वृत्तांत में लेखिका ने हिमालय के जिन-जिन रूपों का चित्र खींचा है, उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – लेखिका ने सिक्किम यात्रा के दौरान हिमालय के अनेक रूपों का वर्णन किया है। कहीं हिमालय की गहनतम घाटियाँ, तो कहीं फूलों से लदी वादियाँ दिखती थीं। आगे बढ़ने पर हिमालय बड़ा होते-होते विशालकाय होने लगा था। भीमकाय पर्वतों के बीच से निकलते हुए ऐसा लगता था कि किसी गहरी हरियाली वाली गुफ़ा के बीच से निकल रहे हों।
कहीं हरा – भरा मैदान दिखाई देता, तो कहीं बर्फ़ से ढकी चोटियाँ । लेखिका कभी आसमान को छूते पर्वतों के शिखरों को देखती तो कभी ऊपर से दूध की धार की तरह बहते हुए झरनों को । कभी नीचे इठला कर बहती हुई तिस्ता नदी को। ऊपर आकाश में मंडराते बादल, रात में स्वच्छ आकाश में झिलमिलाते तारे मानो अद्भुत सौंदर्य की छटा बिखेर रहे थे। रात के गहराते अंधेरे में ऐसा लगता था मानो हिमालय ने काला कंबल ओढ़ लिया हो।
8. प्रकृति के अनंत और विराट रूप को देखकर लेखिका को कैसी अनुभूति होती है?
उत्तर – प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका को ऐसा लगा जैसे उनका अस्तित्व तिनके के समान बहुत छोटा है। झरने की मधुर ध्वनि में उन्हें आत्मा का संगीत सुनाई देने लगा। आँखों को सुख देने वाले उन नज़ारों को देखकर लेखिका को सत्य और सौंदर्य की अनुभूति होने लगी।
वह इन सारे नज़ारों को अपने भीतर समेट लेना चाहती थीं। उन्हें ऐसा लग रहा था, मानो सभी प्रकार की सरहदों से दूर, वह बहती हुई धारा बन बहने लगी हों। उनके भीतर की सारी तामसिकताएँ और बुरे विचार इस निर्मल धारा में बह गए हों। उन्हें यह महसूस हुआ कि प्रकृति का चलायमान (कभी न रुकने वाला) सौंदर्य में ही जीवन का आनंद है।
9. प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को कौन-कौन से दृश्य झकझोर गए?
उत्तर – प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक (इस लोक से परे, ईश्वर के साथ के) आनंद में डूबी लेखिका को अचानक एक दृश्य ने अंदर तक झकझोर दिया। उन्होंने कुछ पहाड़ी औरतों को हथौड़े और कुदाल से पत्थर तोड़ते हुए देखा। कई औरतों ने पीठ पर बँधी डोको (बड़ी टोकरी) में अपने बच्चों को बाँध रखा था। स्वर्ग के समान सुंदर नज़ारों, नदी, फूलों, वादियों और झरनों के बीच भूख, मौत, गरीबी और ज़िंदा रहने की यह जंग देखकर लेखिका अत्यधिक भावुक हो गई। उन्होंने देखा मातृत्व और श्रम साधना को साथ-साथ देखकर लेखिका को बहुत दुख हुआ।
7-8 साल के बच्चों को तीन-साढ़े तीन किलोमीटर की चढ़ाई चढ़कर पाठशाला जाते देखकर और कठिन रास्तों से पहाड़ी औरतों को सिर पर भारी गट्ठर लादकर लाते देखकर लेखिका भावुक हो गई।
सीमा पर शून्य से 15 डिग्री से कम तापमान पर पहरा देते फ़ौजी के मुसकराकर बातचीत करने से लेखिका उसकी कर्तव्यनिष्ठा और देशभक्ति से प्रभावित हुई। उन्हें एहसास हुआ कि पहाड़ी इलाकों का जीवन, मैदानी भाग से अधिक कठिन है।
10. सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव करवाने में किन-किन लोगों का योगदान होता है, उल्लेख करें।
उत्तर- सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव कराने में गाइडों का योगदान सबसे महत्त्वपूर्ण होता है। वे अपनी जानकारी और कुशलता से सैलानियों की यात्रा को रोमांचक बनाते हैं।
ट्रेवल एजेंसियों का भी बहुत बड़ा योगदान होता है। यात्रा को आसान बनाने के लिए वे यात्रियों को तरह-तरह की सुविधाएँ और सेवाएँ प्रदान करते हैं
सरकार तथा पर्यटन विभाग भी इसमें सदैव सैलानियों की सहायता करता है।
होटल की व्यवस्था और कर्मचारी आदि भी पर्यटकों को दर्शनीय स्थलों की जानकारी देकर सहायता करते हैं।
सहयोगी यात्री जो यात्रा में मस्ती भरा माहौल बनाए रखते हैं और यात्रा को यादगार बनाने में सहयोग देते हैं।
11. “कितना कम लेकर ये समाज को कितना अधिक वापस लौटा देती हैं।” इस कथन के आधार पर स्पष्ट करें कि आम जनता की देश की आर्थिक प्रगति में क्या भूमिका है
उत्तर- किसी देश की आम जनता देश के विकास का सबसे बड़ा आधार होती है। आम जनता देश की आर्थिक प्रगति में अप्रत्यक्ष रूप से योगदान देती है। वे देश को जितनी सेवाएँ देती है, बदले में उतना धन या सुविधाएँ उसे नहीं मिल पाता।
आम जनता के इस वर्ग में मज़दूर ड्राइवर, बोझ उठाने वाले, फेरीवाले, कृषि कार्यों से जुड़े लोग आते हैं। अपनी यूमथांग की यात्रा में लेखिका ने देखा कि पहाड़ी औरतें पत्थर तोड़कर पर्यटकों के लिए रास्ते बना रही हैं। इससे यहाँ पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी। जिसका सीधा असर देश की प्रगति पर पड़ेगा। इसी प्रकार कृषि कार्यों में शामिल मजदूर, किसान फ़सल उगाकर राष्ट्र की प्रगति में अपना बहुमूल्य योगदान देते हैं।
12. आज की पीढ़ी द्वारा प्रकृति के साथ किस तरह का खिलवाड़ किया जा रहा है। इसे रोकने में आपकी क्या भूमिका होनी चाहिए।
उत्तर- आज की पीढ़ी प्रदूषण फैला कर प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रही है। विकास के नाम पर जंगलों को काटा जा रहा है। तरह-तरह के रासायनिक प्रयोग कर हवा को दूषित किया जा रहा है। नदियों के पानी को फैक्ट्रियों के गंदे पानी से दूषित किया जा रहा है। लोग पर्वतीय स्थलों पर घूमने जाते हैं, परंतु वहाँ गंदगी फैला कर आते हैं। इस प्रकार प्रदूषण निरंतर बढ़ता जा रहा है। इसे रोकने के लिए हमें निम्न उपाय करने चाहिए –
(i) अधिक से अधिक वृक्ष लगाने चाहिए। दूसरों को भी वृक्ष लगाने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
(ii) नदियों में गंदे पानी को जाने से रोकना चाहिए।
(iii) वाहनों के धुएँ और खेतों की सूखी घास को जलाने से फैलने वाले धुएँ पर सरकार द्वारा रोक लगानी चाहिए।
(iv) वाहनों का प्रयोग यथासंभव कम करना चाहिए।
(v) पॉलिथीन या प्लास्टिक का प्रयोग कम करना चाहिए।
13. प्रदूषण के कारण स्नोफॉल में कमी का ज़िक्र किया गया है? प्रदूषण के और कौन – कौन से दुष्परिणाम सामने आए हैं, लिखें।
उत्तर – (i) वायुमंडल में कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा बढ़ने से वायु प्रदूषित हो गई है। लोगों को साँस और त्वचा की बीमारियाँ हो रही हैं।
(ii) प्रदूषण के कारण जलवायु पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है। कभी अत्यधिक बारिश होती है तो कहीं सूखा पड़ता है। मौसम के अनुरूप बारिश न होने से फसलों पर भी बुरा असर पड़ता है।
(iii) तापमान बढ़ने से ग्लेशियर पिघलने लगे हैं। प्रदूषण के कारण पहाड़ी इलाकों में स्नो फॉल कम होता जा रहा है। गर्मी में अधिक गर्मी के कारण नदियों का जल सूख जाता है और जन जीवन को पानी की कमी के कारण परेशानी उठानी पड़ती है।
(iv) जल प्रदूषण के कारण जलीय – जीवों का जीवन नष्ट हो रहा है। दूषित पानी पीने से लोगों को पेट और स्वास्थ्य संबंधी अनेक बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है।
(v) ध्वनि प्रदूषण मानसिक रोगों, बहरेपन और नींद न आने जैसी बीमारियों को बढ़ावा दे रहा है।
14. ‘कटाओ’ पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है। इस कथन के पक्ष में अपनी राय व्यक्त कीजिए।
उत्तर – ‘कटाओ’ को हिंदुस्तान का स्विट्जरलैंड कहा जाता है। ‘कटाओ’ पर किसी दुकान का न होना वास्तव में उसके लिए वरदान है। इसी वजह से वह स्थान प्रदूषण मुक्त है। दुकानें होने से वहाँ पर्यटकों (यात्रियों) की संख्या बढ़ जाती और वहाँ के निवासी व्यवसाय करने तथा लाभ कमाने के उद्देश्य से और अधिक दुकानें खोलते। इस प्रकार वह स्थान भी प्रसिद्ध पर्यटन स्थल बना दिया जाता।
अभी हर ओर प्राकृतिक सौंदर्य बिखरा पड़ा है परंतु तब प्राकृतिक सौंदर्य नष्ट हो जाएगा। लोगों की भीड़ बढ़ जाएगी। होटलों तथा वाहनों के धुएँ से वहाँ की स्वच्छ वायु दूषित हो जाएगी। लोग अपनी ज़िम्मेदारी को समझे बिना इस्तेमाल की हुई चीज़ों को जहाँ-तहाँ फेंककर सौंदर्य को ठेस पहुँचाएँगे । कटाओ में दुकान न होने से व्यवसायीकरण नहीं हुआ है, जिससे आने जाने वाले लोगों की संख्या सीमित रहती है, इसलिए यहाँ की सुंदरता बची हुई है।
15. प्रकृति ने जल संचय की व्यवस्था किस प्रकार की है?
उत्तर – – प्रकृति ने जल संचय की व्यवस्था बहुत ही सुंदर ढंग से की है। प्रकृति सर्दियों में बर्फ़ के रूप में जल संग्रह कर लेती है। गर्मियों में जब पानी की अत्यधिक आवश्यकता होती है, उस समय यही बर्फ़ शिलाएँ पिघलकर जलधारा बन कर नदियों को भर देती हैं ।
नदियों के रूप में बहता यह जल अपने किनारे बसे नगर तथा गाँवों के मनुष्य, पशु-पक्षी और पेड़ – पौधों की प्यास बुझाता है। नहरों के रूप में खेतों की सिंचाई करता है और अंत में सागर में जाकर मिल जाता है। सागर से फिर से वाष्प होकर यह जल बादल बनता है और मैदानी क्षेत्रों में वर्षा के रूप में बरसता है तथा पर्वतीय क्षेत्रों में बर्फ़ के रूप में फिर से जमा हो जाता है। निश्चित रूप से प्रकृति ने जल संचय की बहुत ही अद्भुत व्यवस्था की है।
16. देश की सीमा पर बैठे फ़ौजी किस तरह की कठिनाइयों से जूझते हैं? उनके प्रति हमारा क्या उत्तरदायित्व होना चाहिए?
उत्तर – देश की सीमा पर बैठे फ़ौजी अनुकूल परिस्थितियों में भी सीमा पर डटे रहते हैं। चाहे हिमालय की बर्फ़ से ढकी ऊँची चोटियाँ हो या रेगिस्तान की तपती रेत, सीमा पर हर समय यह जवान अपनी जान की परवाह न करते हुए देश की सुरक्षा के लिए दिन – रात पहरा देते रहते हैं। इन्हीं की वीरता और कर्त्तव्यनिष्ठा (अपने कर्त्तव्य का पालन पूरी ईमानदारी से करना) के कारण हम चैन से अपने घरों में सो पाते हैं।
उनके प्रति हमारे भी कुछ उत्तरदायित्व होने चाहिए –
(i) हमें उनके कार्यों की प्रशंसा कर, उनका हौसला बढ़ाना चाहिए।
(ii) उनका सम्मान करना चाहिए।
(iii) उनके परिवार की देखभाल करनी चाहिए और उनकी ज़रूरतों का ध्यान रखना चाहिए।
(iv) सैनिकों के दूर (ड्यूटी पर) रहने पर उनके हर कार्य में सहयोगी बनने का प्रयास करना चाहिए। अपनी खुशियों में उन्हें शामिल करना चाहिए जिससे उन्हें कभी भी अकेलेपन का एहसास न हो।