netaji ka chashma

Netaji ka Chashma – NCERT Class 10 Hindi A नेताजी का चश्मा

NCERT Study Material for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 7 Netaji ka Chashma

हमारे ब्लॉग में आपको NCERT पाठ्यक्रम के अंतर्गत कक्षा 10 (Course A) की हिंदी पुस्तक ‘क्षितिज’ के पाठ पर आधारित सामग्री प्राप्त होगी जो पाठ की विषय-वस्तु को समझने में आपकी सहायता करेगी। इसे समझने के उपरांत आप पाठ से संबंधित किसी भी प्रश्न का उत्तर सरलता से दे सकेंगे।

यहाँ NCERT HINDI Class 10 के पाठ – 7 ‘नेताजी का चश्मा’ के मुख्य बिंदु  (Important / Key points) दिए जा रहे हैं। साथ ही आपकी सहायता के लिए पाठ्यपुस्तक में दिए गए प्रश्नों के सटीक उत्तर (Textbook Question-Answers) एवं अतिरिक्त प्रश्नों के उत्तर (Extra Questions /Important Questions with Answers) सरल एवं भाषा में दिए गए हैं। आशा है यह सामग्री आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी। 

Table of Contents

Netaji Ka Chashma Explanation
नेताजी का चश्मा सहायक सामाग्री

 

1. नेताजी का चश्मा पाठ के लेखक स्वयं प्रकाश जी हैं। 

2. लेखक ने इस कहानी के मुख्य पात्र ‘कैप्टन चश्मे वाले’ के माध्यम से देश के अनेक नागरिकों के योगदान को बताने का प्रयास किया है जो इस देश के निर्माण में अपने – अपने सामर्थ्य (तरीके) से सहयोग देते हैं। चश्मे वाले कैप्टन के माध्यम से लेखक ने उन सभी के प्रति आदर का भाव प्रकट किया है जिनके मन में देश की आज़ादी के लिए अपनी जान देने वालों के लिए सम्मान है। उन्हें इस बात की खुशी है कि इस देशभक्ति में बच्चे भी शामिल हैं। 

3. लेखक के अनुसार चारों ओर सीमाओं से घिरे भू – भाग का नाम ही देश नहीं होता। देश बनता है उसमें रहने वाले सभी नागरिकों, नदियों, पहाड़ों, पेड़ – पौधों, वनस्पतियों, पशु-पक्षियों से और इन सबसे प्रेम करने तथा इनकी समृद्धि के लिए प्रयास करने का नाम ही देशभक्ति है। 

4. कहानी के शुरू में बताया गया है कि एक हालदार साहब हैं जो हर पंद्रहवें दिन कंपनी के काम से एक छोटे से कस्बे (छोटे शहर) से होकर गुजरते हैं। उस कस्बे में कुछ ही मकान पक्के थे। वहाँ एक बाज़ार था, लड़के – लड़कियों का एक स्कूल, एक सीमेंट कारखाना, दो ओपन सिनेमाघर और एक नगरपालिका भी थी।

# विकिपीडिया के अनुसार – हालदार एक बंगाली उपनाम (Surname) है। ‘हाल’ का अर्थ है खातों की किताब और ‘दार’ का अर्थ है रक्षक/मालिक। अतः हिसाब-किताब (हल-खाता) देखने वाले को भी हालदार कहा जाता था। 

5. नगरपालिका का कार्य नगर की ज़रूरतों को पूरा करना होता है। जैसे – सड़क बनवाना, कुछ पेशाबघर बनवाना, कभी कबूतरों की छतरी बनवाना तो कभी कवि सम्मेलन करवा देना। 

6. नगरपालिका के ही किसी अधिकारी के द्वारा शहर के मुख्य बाज़ार के मुख्य चौराहे पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की संगमरमर की एक प्रतिमा (मूर्ति) लगवा दी गई। यह कहानी उसी मूर्ति के एक छोटे से हिस्से की है।

7. लेखक को पूरी बात तो पता नहीं लेकिन वे ऐसा अनुमान लगाते हैं कि देश के अच्छे मूर्तिकारों की जानकारी न होने या अच्छी मूर्ति की लागत (cost) ज़्यादा होने और प्राप्त बजट कम होने के कारण काफ़ी समय तक दुविधा में रहने के बाद उस प्रशासनिक अधिकारी ने एक स्थानीय (उसी जगह के रहने वाले) कलाकार को ही यह कार्य देने का निश्चय किया होगा।

अंत में उसी कस्बे के इकलौते हाई स्कूल के ड्राइंग मास्टर मोतीलाल जी को यह काम सौंप दिया गया होगा जो एक महीने में मूर्ति बनाकर ‘पटक देने’ का विश्वास दिला रहे थे। ‘पटक देने’ का अर्थ है कि उन्होंने अरुचि से अर्थात् बिना मन के या जल्दबाज़ी में तय किए गए समय में मूर्ति को बना कर दे दिया। 

8. हालदार साहब जब शहर से गुज़रे तो उन्होंने वह संगमरमर की मूर्ति देखी। वह मूर्ति टोपी की नोक से कोट के दूसरे बटन तक, लगभग दो फुट ऊँची थी अर्थात् सीने तक की बनी हुई थी। जिसे बस्ट कहते हैं।

उसमें नेता जी बहुत सुंदर, मासूम और बहुत कम उम्र के लग रहे थे। नेताजी फ़ौजी वर्दी में थे। मूर्ति को देखते ही हालदार साहब को ‘दिल्ली चलो’ और ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा’ सुभाष चंद्र बोस जी के नारों की याद आ गई। इसका अर्थ है कि मूर्ति बिना किसी परेशानी के पहचानी जा रही थी। इस दृष्टि से मूर्तिकार का यह सफल और सराहनीय (तारीफ़ के काबिल) प्रयास था।

हालदार साहब को एक ही चीज़ खटक रही थी कि नेताजी की आँखों पर चश्मा नहीं था। मतलब मूर्ति तो संगमरमर (सफ़ेद पत्थर) की थी और चश्मा चौड़े काले फ़्रेम का बना था। हालदार साहब को यह आइडिया बहुत हैरान कर देने वाला और साथ ही साथ अच्छा भी लगा कि मूर्ति पत्थर की और चश्मा रियल (असली) ।

9. जीप में बैठकर आगे निकल जाने के बाद भी हालदार साहब इस मूर्ति के बारे में ही सोचते रहे। उन्होंने सोचा कि कस्बे के लोगों का यह प्रयास सराहनीय है अर्थात् तारीफ़ के काबिल ही है। महत्त्व मूर्ति के रंग – रूप या उसके कद का नहीं था बल्कि उस भावना का था जो देशभक्ति दर्शाती है। वरना देशभक्ति की भावना आजकल मज़ाक की चीज़ होती जा रही है मतलब देशभक्ति की भावना लोगों के मन से गायब होती जा रही है। 

10. दूसरी बार जब हालदार साहब नगर से गुज़रे तो मूर्ति में कुछ फ़र्क दिखाई दिया। ध्यान से देखने पर उन्हें पता चला कि चश्मा दूसरा है। पहले मोटे फ़्रेम वाला चौकोर चश्मा था। अब तार के फ्रेम वाला गोल चश्मा है। हालदार साहब की उत्सकुता और बढ़ गई। उन्होंने मन ही मन सोचा कि यह तो बहुत अच्छा आइडिया है। मूर्ति के कपड़े तो नहीं बदले जा सकते लेकिन चश्मा तो बदला ही जा सकता है।

11. तीसरी बार उन्होंने मूर्ति पर फिर नया चश्मा देखा। हालदार साहब की यह आदत हो गई कि जब भी वह कस्बे से गुज़रते चौराहे पर रुकते, पान खाते और मूर्ति को बहुत ध्यान से देखते। एक बार अपनी बढ़ती उत्सुकता के कारण उन्होंने पानवाले से पूछ ही लिया, क्यों भाई! क्या बात है? यह तुम्हारे नेताजी का चश्मा हर बार बदल कैसे जाता है?

12. पानवाला एक काला, मोटा और खुशमिजाज़ आदमी था। हालदार साहब का प्रश्न सुनकर वह आँखों – ही – आँखों में अर्थात् मन – ही – मन हँसने लगा। उसके मुँह में पान ठुँसा हुआ था इसलिए दबी हँसी हँसने पर उसकी तोंद हिलने लगती है। पान थूककर, उसने लाल रंग से रंगी अपनी लाल बत्तीसी (दाँत) दिखाकर बोला कैप्टन चश्मे वाला करता है यह काम। 

13. हालदार साहब को कुछ समझ नहींआया, तो पान वाले ने समझाया कि यह कैप्टन चश्मेवाला चेंज कर (बदल) देता है। हालदार साहब ने फिर से उत्सकुता के साथ पूछा कि क्यों चेंज कर (बदल) देता है? पान वाले ने बताया कि जब कोई ग्राहक आ जाता है और उसे चौड़े फ़्रेम वाला चश्मा चाहिए होता है तो कैप्टन उसे वह चश्मा दे देता है और मूर्ति पर दूसरा चश्मा लगा देता है।

14. पान वाले के द्वारा बताए जाने पर हालदार साहब को अब बात कुछ – कुछ समझ में आने लगी। उन्हें समझ में आया कि एक चश्मेवाला है जिसका नाम कैप्टन है और उसे नेताजी की बगैर चश्मेवाली मूर्ति बुरी लगती है। बिना चश्मे की मूर्ति को देखकर उसकी भावनाओं को ठेस पहुँचती होगी इसलिए वह अपनी छोटी – सी दुकान के गिने-चुने (थोड़े – से) फ़्रेमों में से एक चश्मा नेताजी की मूर्ति पर फिट कर देता है।

लेकिन जब कोई ग्राहक आता है और उसे वैसा ही चश्मा चाहिए होता है तब कैप्टन चश्मेवाला मूर्ति पर लगा फ़्रेम, शायद नेताजी से क्षमा माँगते हुए, ग्राहक को लाकर दे देता है। बाद में नेताजी की मूर्ति पर दूसरा चश्मा लगा देता है इसलिए मूर्ति पर हर दिन नया चश्मा लगा होता है। हालदार साहब कैप्टन की बुद्धिमानी और देशभक्ति दोनों से ही बहुत प्रभावित होते हैं। 

15. पानवाले के लिए यह बहुत ही मज़ेदार बात थी कि कैप्टन रोज़ मूर्ति का चश्मा बदलता था लेकिन हालदार साहब के लिए यह बहुत ही भावुक कर देने वाली बात थी। वे चश्मेवाले की देशभक्ति से बहुत अधिक प्रभावित थे। वे उसकी रोज़ चश्मा उतारने की मजबूरी और नेताजी को बिना चश्मे के छोड़ने के बदले नया चश्मा पहनाने के कार्य के लिए हृदय से उसका सम्मान करने लगे थे। 

16. हालदार साहब ने पान वाले से फिर से पूछा कि नेताजी का ओरिजनल (असली) चश्मा कहाँ गया ? तब पान वाले ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा, “मास्टर बनाना भूल गया।” हालदार साहब ने सोचा कि मूर्ति के विषय में उनका अनुमान (अंदाज़ा) सही था।

मूर्ति के नीचे लिखा था – ‘मूर्तिकार मास्टर मोतीलाल’। वह सोचने लगे कि शायद मास्टर जी जल्दी में चश्मा बना नहीं पाए होंगे या पत्थर पर पत्थर का पारदर्शी (transparent) चश्मा बनाने में बहुत मुश्किल आई होगी या उन्होंने कोशिश की होगी और सफल न हो पाए हों। यह भी हो सकता है कि बनाते – बनाते कुछ और बारीकी के चक्कर में चश्मा टूट गया होगा या पत्थर का चश्मा अलग से बनाकर फिट किया होगा और वह बाद में निकल गया होगा। इस प्रकार चश्मे को लेकर हालदार साहब के मन में अनेक विचार आने लगे

हालदार साहब को यह सब कुछ बहुत ही हैरान कर देने वाला लग रहा था। उन्होंने मन-ही-मन चश्मेवाले की देशभक्ति के सामने अपना सिर झुका दिया अर्थात् उनका मन चश्मेवाले के लिए बहुत अधिक सम्मान से भर गया। 

17. वह अपनी जीप की तरफ़ बढ़े, फिर रुके और पान वाले के पास जाकर उन्होंने उससे पूछा कि क्या कैप्टन चश्मेवाला नेताजी का साथी है? या ‘आज़ाद हिंद फ़ौज’ का पहले का कोई सिपाही? पानवाला बड़े मजे़ से पान खा रहा था।

हालदार साहब के प्रश्न पर उसने उन्हें बहुत ध्यान से देखा और मुस्कुराकर बोला – “नहीं साहब! वो लँगड़ा क्या जाएगा फ़ौज में। पागल है पागल!” पानवाला चश्मेवाले की ओर इशारा करते हुए कहा, “वो देखो, वो आ रहा है। आप उसी से बात कर लो। फ़ोटो – वोटो छपवा दो उसका कहीं।” हालदार साहब को पानेवाले के द्वारा एक देशभक्त का मज़ाक उड़ाया जाना अच्छा नहीं लगा। 

18. पानवाले के बताने पर जब उन्होंने चश्मेवाले को देखा तो वह हैरान रह गए। एक बेहद बूढ़ा, कमज़ोर लँगड़ा आदमी सिर पर गाँधी टोपी पहने हुए और आँखों पर काला चश्मा लगाए, एक हाथ में एक छोटी- सी संदूकची और दूसरे हाथ में बाँस पर टँगे बहुत – से चश्मे लेकर एक गली से निकल रहा था। उसनेएक बंद दुकान के सहारे अपना बाँस टिका दिया। यह देखकर हालदार साहब बहुत परेशान हो जाते हैं कि उस बूढ़े, लँगड़े आदमी के पास अपनी दुकान भी नहीं है, वह फेरी लगाता है। 

19. वह पूछना चाहते थे कि लोग इसे कैप्टन क्यों कहते हैं? वह सोच रहे थे कि शारीरिक रूप से तो यह बिल्कुल भी कैप्टन नहीं लगता। इसका असली नाम क्या है? लेकिन पानवाले ने जिस तरह से बात की थी उससे यह साफ़ पता चल रहा था कि वह इस बारे में अब कोई और बात नहीं करना चाहता। उनका ड्राइवर भी परेशान हो रहा था और उन्हें काम भी था इसलिए हालदार साहब जीप में बैठकर चले गए लेकिन उनके मन में अनेक प्रश्न उठ रहे थे।

20. दो साल तक हालदार साहब अपने काम के सिलसिले में कस्बे से गुज़रते रहे और नेताजी की मूर्ति पर बदलते हुए चश्मों को देखते रहे। कभी गोल, कभी चौकोर, कभी लाल, कभी काला, कभी धूप का चश्मा, कभी बड़े काँच वाला गोल चश्मा, पर चश्मा होता ज़रूर था।

21. एक बार उन्होंने देखा कि मूर्ति के चेहरे पर कोई भी चश्मा नहीं था। हालदार साहब ने देखा कि पान की दुकान और आसपास की दुकानें भी बंद थीं। अगली बार भी हालदार साहब ने देखा कि मूर्ति पर चश्मा नहीं था।

हालदार साहब ने पान खाया और धीरे से पान वाले से पूछा – “क्यों भई, क्या बात है? आज तुम्हारे नेताजी की आँखों पर चश्मा नहीं है?” यह पूछने पर पानवाला उदास हो गया। उसने अपनी धोती के सिरे से आँसू पोंछते हुए कहा,”साहब! कैप्टन मर गया।” यह खबर सुनकर हालदार साहब दुखी हो जाते हैं। थोड़ी देर तक वह वहीं चुपचाप खड़े रहते हैं और फिर पान वाले को पैसे देकर चुपचाप जीप में बैठ कर चले जाते हैं ।

22. कैप्टन की मृत्यु का हालदार साहब के दिल और दिमाग पर गहरा असर पड़ा । वह बार-बार यही सोच रहे थे कि जो लोग अपने देश की सुरक्षा के लिए अपना घर, अपनी गृहस्थी, अपनी ज़िंदगी, अपनी जवानी सब कुछ समर्पित कर देते हैं, उन पर कुछ लोग कैसे हँस सकते हैं? ऐसे लोगों के मन में न तो देश के लिए कोई प्रेम है और न ही देश के लिए अपनी जान न्योछावर करने वालों के लिए कोई सम्मान।

वह दुखी थे कि जिन लोगों ने देश के खातिर अपनी घर-गृहस्थी, जवानी यहाँ तक कि ज़िंदगी भी दाँव पर लगा दी, केवल देश – सेवा को ही अपना कर्त्तव्य समझा। आज लोग उन पर हँसते हैं। देशभक्तों को लोग मूर्ख से ज़्यादा कुछ और नहीं समझते हैं।

ऐसे लोग देश के प्रति अपने कर्त्तव्यों को भूलकर हर वक्त सिर्फ़ अपने स्वार्थ के बारे में ही सोचते रहते हैं। अपना काम सिद्ध करने के लिए वे किसी भी सीमा को पार कर सकते हैं। ऐसे में इस देश का भविष्य क्या होगा? यही सोचकर हालदार साहब दुखी हो जाते हैं। 

23. पंद्रह दिन बाद वह फिर उसी कस्बे से गुज़रे। कस्बे में घुसने से पहले ही उन्हें ख्याल आया कि चौराहे पर सुभाष जी की जो मूर्ति लगी है उसकी आँखों पर चश्मा नहीं होगा क्योंकि मास्टर जी बनाना भूल गए और कैप्टन मर गया। वहाँ जाकर उन्हें फिर से दुख होगा। इसलिए उन्होंने सोचा कि आज वहाँ नहीं रुकेंगे, न ही पान खाएँगे और न ही मूर्ति की तरफ़ देखेंगे। यही सोचकर उन्होंने ड्राइवर से कहा कि आज बहुत काम है। पान कहीं आगे खा लेंगे। वह चौराहे पर गाड़ी न रोके। 

24. हालदार साहब ने सोचा तो था कि वह चौराहे पर नहीं रुकेंगे लेकिन चौराहा आते ही आदत के कारण उनकी आँखें मूर्ति की तरफ़ उठ गईं। उन्होंने कुछ ऐसा देखा कि वह चीख पड़े, रोको! और स्पीड से चलती हुई जीप को रुकवा दिया। रास्ता चलते लोग देखने लगे कि ऐसा क्या हो गया कि इतनी ज़ोर से ब्रेक मारना पड़ा। जीप अभी पूरी तरह से रुकी भी नहीं थी कि हालदार साहब जीप से कूदकर तेज़ कदमों से मूर्ति की तरफ़ जाने लगे।

मूर्ति के सामने सावधान अवस्था में खड़े हो गए। उन्होंने देखा कि मूर्ति की आँखों पर सरकंडे (एक प्रकार की घास, जो 10-15 फुट ऊँची होती है। इसकी पत्तियाँ पतली और लंबी होती हैं) से बना हुआ छोटा – सा चश्मा लगा हुआ था। उन्हें यह समझते देर न लगी कि चश्मा किसी बच्चे द्वारा बनाया गया है । यह देखकर हालदार साहब बहुत भावुक हो गए। इतनी – सी बात पर उनकी आँखें भर आई।

वह सोचने लगे कि देश की सुरक्षा करने वालों का दुनिया मज़ाक उड़ाती है लेकिन आज भी लोगों के दिलों में देशभक्ति का भाव है। उन्हें इस बात की तसल्ली हुई कि भावी पीढ़ी (बच्चों) में अभी देशभक्ति और देश प्रेम ज़िंदा है। वे अपने नेताओं का सम्मान करना जानते हैं। इसी बात को सोचकर उनकी आँखों में आँसू आ गए। कैप्टन की मृत्यु के बाद उनके मन में जो निराशा थी, अब उसकी जगह उनके मन में नई उम्मीद जाग गई। 

Netaji Ka Chashma Question Answers
नेताजी का चश्मा प्रश्न उत्तर

 1. सेनानी न होते हुए भी चश्मेवाले को लोग कैप्टन क्यों कहते थे?

उत्तर – एक सेनानी न होते हुए भी चश्मेवाले को लोग कैप्टन इसलिए कहते थे क्योंकि वह एक देशभक्त था। उसे नेता जी की बिना चश्मे की मूर्ति अच्छी नहीं लगती थी।

देश के महान स्वतंत्रता सेनानी को अपनी ओर से सम्मान देने के लिए वह उस पर चश्मा लगा देता था। जिस प्रकार एक सेनानी अन्य देशभक्तों का सम्मान करता है, उसी प्रकार वह भी देशभक्तों का आदर – सम्मान करता था। अभावों से भरे अपने जीवन में भी वह अपने सामर्थ्य के अनुसार नेताजी को सम्मान देने का पूरा प्रयास करता है। शायद उसकी देशभक्ति की भावना के कारण ही लोग चश्मेवाले को कैप्टन कहते थे। 

2. हालदार साहब ने ड्राइवर को पहले चौराहे पर गाड़ी रोकने के लिए मना किया था लेकिन बाद में तुरंत रोकने को कहा – 

(क) हालदार साहब पहले मायूस (निराश) क्यों हो गए थे?

उत्तर – हालदार साहब ने सोचा कि कैप्टन की मृत्यु के बाद कस्बे के चौराहे पर लगी नेता जी मूर्ति की आँखों पर चश्मा नहीं होगा। वह मायूस थे कि बिना चश्मे की मूर्ति पर कस्बे के लोगों का ध्यान ही नहीं गया होगा और उन्हें कैप्टन की तरह बिना चश्मे की मूर्ति को देखकर कोई फ़र्क भी नहीं पड़ता होगा।

पानवाले की बातों से हालदार साहब को ऐसा लगा कि लोगों में अब देशभक्ति की भावना नहीं है। देशभक्तों का सम्मान करने वालों को लोग पागल कहते हैं। इन्हीं सब बातों को सोचते हुए वह मायूस थे इसलिए उन्होंने चौराहे पर गाड़ी न रोकने का निर्णय लिया था।  

(ख) मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा क्या उम्मीद जगाता है?

उत्तर : मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा यह उम्मीद जगाता है कि इस देश के बच्चों के दिल में देश के लिए अपनी जान न्योछावर करने वाले वीर शहीदों और महापुरुषों के प्रति सम्मान और प्रेम की भावना है। आज के यही बच्चे भविष्य में देश के नवयुवक बनेंगे जिनके हाथों में देश की बागडोर (ज़िम्मेदारी) होगी।

बच्चों के द्वारा नेताजी को पहनाए गए सरकंडे के चश्मे में भी हालदार साहब को देशप्रेम की वही भावना दिखाई दी जो कैप्टन के मन में नेताजी के लिए थी। इस घटना ने उनके मन में आशा की किरण जगा दी।

(ग) हालदार साहब इतनी सी बात पर भावुक क्यों हो उठे थे? 

उत्तर – नेता जी की मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा देख हालदार साहब भावुक हो गए। वह सोचने लगे कि दुनिया देश की सुरक्षा करने वालों का मज़ाक उड़ाती है लेकिन आज भी लोगों के दिलों में देशभक्ति का भाव है।

उन्हें इस बात की तसल्ली हुई कि भावी पीढ़ी (बच्चों) में अभी देशभक्ति और देश प्रेम की भावना ज़िंदा है। वे अपने नेताओं का सम्मान करना जानते हैं। इसी बात को सोचकर उनकी आँखों में आँसू आ गए। कैप्टन की मृत्यु के बाद उनके मन में जो निराशा थी, अब उसकी जगह उनके मन में नई उम्मीद जाग गई। 

3. आशय स्पष्ट कीजिए – 

“बार-बार सोचते, क्या होगा उस कौम का जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी-जवानी-ज़िंदगी सब कुछ होम देनेवालों पर भी हँसती है और अपने लिए बिकने के मौके ढूँढ़ती है।” 

उत्तर – कैप्टन की मृत्यु का हालदार साहब के दिल और दिमाग पर गहरा असर पड़ा । वह दुखी थे कि जिन लोगों ने देश के खातिर अपनी घर-गृहस्थी, जवानी यहाँ तक कि ज़िंदगी भी दाँव पर लगा दी, केवल देश – सेवा को ही अपना कर्त्तव्य समझा। समाज के कुछ लोग उन पर हँसते हैं। ऐसे लोग देशभक्तों को मूर्ख से ज़्यादा कुछ और नहीं समझते हैं।

पाठ में पानवाला ऐसे लोगों की, ऐसे वर्ग / समुदाय (group) की सोच को दर्शाता है जो देश के प्रति अपने कर्त्तव्यों को भूलकर हर वक्त सिर्फ़ अपने स्वार्थ के बारे में ही सोचते रहते हैं। अपना काम सिद्ध करने के लिए वे किसी भी सीमा को पार कर सकते हैं। ऐसे में इस देश का भविष्य क्या होगा? यही सोचकर हालदार साहब दुखी हो जाते हैं।  

4. पानेवाले का एक रेखाचित्र प्रस्तुत कीजिए। 

उत्तर – पानवाला एक काला, मोटा और खुशमिज़ाज़ आदमी था। वह हमेशा पान खाता रहता था। हर समय पान खाने के कारण उसके दाँत लाल और काले रंग के हो गए थे। जब वह हँसता था तब उसका बड़ा-सा पेट हिलने लगता था।

कस्बे के दूसरे लोगों की तरह वह भी कैप्टन चश्मेवाले की देशभक्ति की भावना को नहीं समझता था और उसे पागल कहकर उसका मज़ाक उड़ाता था। उसके हृदय में देशप्रेम का भाव नहीं था लेकिन वह एक भावुक (emotional) व्यक्ति था इसलिए कैप्टन चश्मे वाले की मृत्यु पर उसकी आँखों में आँसू आ गए। 

5. “वो लगड़ा क्या जाएगा फ़ौज में। पागल है पागल !” 

कैप्टन के प्रति पानेवाले की इस टिप्पणी पर अपनी प्रतिक्रिया लिखिए।

उत्तर – पानेवाले का कैप्टन को लंगड़ा और पागल कहना अनुचित है। ऐसा करके वह एक देशभक्त की भावनाओं का मज़ाक तो उड़ाता ही है, साथ ही एक अपाहिज व्यक्ति की शारीरिक कमज़ोरी और असहाय स्थिति का भी मज़ाक बनाकर नीति विरुद्ध कार्य करता है। वह यह नहीं समझता कि नेताजी की मूर्ति पर चश्मा लगाकर कैप्टन कस्बे की नगरपालिका द्वारा की गई भूल को सुधार रहा है और कस्बे का मान रख रहा है। कैप्टन पर हँसकर वह देश और सभी वीर शहीदों और महापुरुषों का अपमान करता है। 

रचना और अभिव्यक्ति

6. निम्नलिखित वाक्य पात्रों की कौन – सी विशेषता की ओर संकेत करते हैं-

(क) हालदार साहब हमेशा चौराहे पर रुकते और नेताजी को निहारते। 

उत्तर – हालदार साहब देशभक्त थे तथा उनके मन में देशभक्तों और शहीदों के प्रति आदर और सम्मान की भावना थी।

(ख) पानवाला उदास हो गया। उसने पीछे मुड़कर मुँह का पान नीचे थूका और सिर झुकाकर अपनी धोती के सिरे से आँखें पोंछता हुआ बोला- साहब! कैप्टन पर गया।

उत्तर – पानवाला कोमल स्वभाव का भावुक व्यक्ति था। 

(ग) कैप्टन बार-बार मूर्ति पर चश्मा लगा देता था।

उत्तर – कैप्टन देशप्रेमी था तथा देशभक्तों के प्रति सम्मान का भाव रखने वाला व्यक्ति था। 

7. जब तक हालदार साहब ने कैप्टन को साक्षात् देखा नहीं था तब तक उनके मानस पटल पर उसका कौन-सा चित्र रहा होगा, अपनी कल्पना से लिखिए।

 उत्तर – जब तक हालदार साहब ने कैप्टन को साक्षात् देखा नहीं था तब तक शायद हालदार साहब के मानस पटल पर कैप्टन का कुछ ऐसा चित्र रहा होगा – मज़बूत कंधे, चौड़ा सीना, लंबे कद वाला, बलशाली, खुशमिज़ाज़ और घनी मूँछों वाला फ़ौजी कैप्टन, जिसका हृदय देश और देश के लिए अपनी जान देने वाले स्वतंत्रता सेनानियों के लिए प्रेम और सम्मान से भरा हुआ है। 

8. कस्बों, शहरों, महानगरों के चौराहों पर किसी न किसी क्षेत्र के प्रसिद्ध व्यक्ति की मूर्ति लगाने का प्रचलन-सा हो गया है-

(क) इस तरह की मूर्ति लगाने के क्या उद्देश्य हो सकते हैं?

उत्तर – (i) उस प्रसिद्ध व्यक्ति के प्रति सम्मान की भावना व्यक्त करना।

(ii) समाज को विशेष रूप से बच्चों को उनसे और उनके द्वारा किए गए कार्यों से परिचित कराना। 

(iii) उनके जीवन से प्रेरणा प्राप्त करना। 

(ख) आप अपने इलाके के चौराहे पर किस व्यक्ति की मूर्ति स्थापित करवाना चाहेंगे और क्यों?

उत्तर – छात्र अपनी इच्छा के अनुसार किसी महान व्यक्ति द्वारा समाज के कल्याण (भले) के लिए किए गए कार्यों से प्रभावित होकर उनकी मूर्ति स्थापित करवा सकते हैं। 

(ग) उस मूर्ति के प्रति आपके एवं दूसरे लोगों के क्या उत्तरदायित्व होने चाहिए?

उत्तर – (i) नियमित रूप से मूर्ति के प्रति आदर-सम्मान व्यक्त करना। 

(ii) उसके रख-रखाव पर ध्यान देना। (iii) उनके आदर्शों और उपदेशों का पालन करना। 

9. सीमा पर तैनात फ़ौजी ही देश-प्रेम का परिचय नहीं देते। हम सभी अपने दैनिक कार्यों में किसी न रूप में देश-प्रेम प्रकट करते हैं; जैसे-सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान न पहुँचाना, पर्यावरण संरक्षण अपने जीवन-जगत से जुड़े ऐसे और कार्यों का उल्लेख कीजिए और उन पर अमल भी कीजिए। 

उत्तर – (i) ऐतिहासिक स्मारकों को नुकसान न पहुँचाना। 

(ii) प्राकृतिक संसाधनों (Natural resources) को व्यर्थ न करना। 

(iii) देश के मान-सम्मान के प्रति हमेशा सजग रहना।

(iv) सांप्रदायिक हिंसा में भाग न लेना और दूसरे लोगों को भी इससे दूर रहने की शिक्षा देना। 

(v) अपनी शिक्षा एवं ज्ञान को देश के विकास में इस्तेमाल करना। 

(vi) पर्यावरण को प्रदूषण से बचा कर। 

(vii) समय पर टैक्स भर कर। 

(viii) मतदान द्वारा उचित व्यक्ति को चुनकर। 

10. निम्नलिखित पंक्तियों में स्थानीय बोली का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है, आप इन पंक्तियों को मानक हिंदी में लिखिए – 

 कोई गिराक आ गया समझो। उसको चौड़े चौखट चाहिए। तो कैप्टन किदर से लाएगा? तो उसको मूर्तिवाला दे दिया। उदर दूसरा बिठा दिया।

उत्तर –  समझ लो कि कोई ग्राहक आ गया और उसे चौड़े फ्रेम वाला चश्मा चाहिए। तो कैप्टन कहाँ से लाएगा ? तो वह उसे (ग्राहक को ) मूर्ति वाला चश्मा दे देता है और मूर्ति पर दूसरा फ्रेम लगा देता है।

11. ‘भई खूब! क्या आइडिया है।’ इस वाक्य को ध्यान में रखते हुए बताइए कि एक भाषा में दूसरी भाषा के शब्दों के आने से क्या लाभ होते हैं?

उत्तर – एक भाषा में दूसरी भाषा के शब्दों के आने से भाषा रोचक और प्रभावशाली बन जाती है। इससे भावों की अभिव्यक्ति सरल हो जाती है और भाषा का शब्द भंडार भी बढ़ जाता है। दूसरी भाषा के शब्द होते हुए भी वे बोलने और लिखने वाले की बात को स्पष्ट करने (समझाने) में सहायता करते हैं इसलिए बिना प्रयास के प्रभाव में लोग उन शब्दों का प्रयोग करते हैं। हिंदी भाषा में केवल अंग्रेज़ी शब्दों का ही नहीं बल्कि अरबी, फ़ारसी आदि अनेक भाषाओं के शब्दों का प्रयोग होता है।

Netaji Ka Chashma Important Questions
नेताजी का चश्मा महत्तवपूर्ण प्रश्न

1. पाठ ‘नेताजी का चश्मा’ के लेखक के अनुसार देश किसे कहते हैं और देशभक्ति क्या है? 

उत्तर – लेखक के अनुसार केवल चारों ओर सीमाओं से घिरे भू – भाग का नाम ही देश नहीं होता। देश उसमें रहने वाले सभी नागरिकों, नदियों, पहाड़ों, पेड़ – पौधों, वनस्पतियों, पशु-पक्षियों से बनता है। देश से जुड़ी हर चीज़ से प्रेम करने और उनकी समृद्धि के लिए प्रयास करने, उन्हें बेहतर बनाने की कोशिश का नाम ही देशभक्ति है। 

2. पानवाले के द्वारा यह बताने पर कि नेताजी का चश्मा कैप्टन चेंज करता है, हालदार साहब ने कैप्टन के बारे में क्या समझा? 

अथवा 

‘तुम्हारे नेताजी का चश्मा हर बार बदल कैसे जाता है?’ – हालदार साहब के इस सवाल पर पानवाले ने जो जानकारी दी, उससे हालदार साहब ने कैप्टन के बारे में क्या अनुमान लगाया? 

उत्तर – पान वाले के द्वारा बताए जाने पर हालदार साहब ने यह अनुमान लगाया कि एक चश्मेवाला है जिसका नाम कैप्टन है और उसे नेताजी की बगैर चश्मेवाली मूर्ति बुरी लगती है। बिना चश्मे की मूर्ति को देखकर उसकी भावनाओं को ठेस पहुँचती होगी इसलिए वह अपनी छोटी – सी दुकान के गिने-चुने (थोड़े – से) फ़्रेमों में से एक चश्मा नेताजी की मूर्ति पर फिट कर देता है।

लेकिन जब कोई ग्राहक आता है और उसे वैसा ही चश्मा चाहिए होता है जैसा मूर्ति पर लगा होता है तब कैप्टन चश्मेवाला मूर्ति पर लगा फ़्रेम, शायद नेताजी से क्षमा माँगते हुए, ग्राहक को लाकर दे देता है। बाद में नेताजी की मूर्ति पर दूसरा चश्मा लगा देता है इसलिए मूर्ति पर हर दिन नया चश्मा लगा होता है। हालदार साहब कैप्टन की बुद्धिमानी और देशभक्ति दोनों से ही बहुत प्रभावित होते हैं। 

3. हालदार साहब ने जब कैप्टन को पहली बार देखा तो वह हैरान क्यों रह जाते हैं ? 

उत्तर – पानवाले के बताने पर हालदार साहब ने जब चश्मेवाले को देखा तो वह हैरान रह गए। उन्होंने उसके बारे में जैसा सोचा था, वह वैसा बिल्कुल भी नहीं था।

कैप्टन, एक बेहद बूढ़ा, कमज़ोर लँगड़ा आदमी था जिसने सिर पर गाँधी टोपी पहनी हुई थी।उसने आँखों पर काला चश्मा लगाया हुआ था। उसके एक हाथ में एक छोटी- सी संदूकची और दूसरे हाथ में बाँस पर टँगे बहुत – से चश्मे थे जिन्हें लेकर वह एक गली से निकल रहा था। उसने एक बंद दुकान के सहारे अपना बाँस टिका दिया। यह देखकर हालदार साहब बहुत परेशान हो जाते हैं कि उस बूढ़े, लँगड़े आदमी के पास अपनी दुकान भी नहीं है, वह फेरी लगाता है। 

4. नेताजी की मूर्ति किसके द्वारा बनाई गई थी? हालदार साहब ने नेताजी की मूर्ति पर असली चश्मे के संबंध में क्या – क्या अनुमान लगाए थे? 

उत्तर – नेताजी की मूर्ति कस्बे के इकलौते हाई स्कूल के ड्राइंग मास्टर ‘मोतीलाल जी’ द्वारा बनाई गई थी। हालदार साहब ने जब पानवाले से पूछा कि नेताजी का ओरिजनल (असली) चश्मा कहाँ गया ? तब पानवाले ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा, “मास्टर बनाना भूल गया।” वह सोचने लगे कि शायद मास्टर जी जल्दी में चश्मा बना नहीं पाए होंगे या पत्थर पर पत्थर का पारदर्शी (transparent) चश्मा बनाने में बहुत मुश्किल आई होगी या उन्होंने कोशिश की होगी और सफल न हो पाए हों।

यह भी हो सकता है कि बनाते – बनाते कुछ और बारीकी के चक्कर में चश्मा टूट गया होगा या पत्थर का चश्मा अलग से बनाकर फिट किया होगा और वह बाद में निकल गया होगा। इस प्रकार चश्मे को लेकर हालदार साहब के मन में अनेक विचार आने लगे। 

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