NCERT Study Material for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 7 Mere Bachpan Ke Din
NCERT Study Material for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 7 Mere Bachpan Ke Din
हमारे ब्लॉग में आपको NCERT पाठ्यक्रम के अंतर्गत कक्षा 9 (Course A) की हिंदी पुस्तक ‘क्षितिज’ के पाठ पर आधारित प्रश्नों के सटीक उत्तर स्पष्ट एवं सरल भाषा में प्राप्त होंगे।
यहाँ NCERT Class 9 Hindi के पाठ – 7 ‘मेरे बचपन के दिन’ के मुख्य बिंदु दिए गए हैं जो पूरे पाठ की विषय वस्तु को समझने में सहायक सिद्ध होंगे।
NCERT Class 9 Hindi Kshitij Chapter 7 ‘मेरे बचपन के दिन’ Important / key points which covers whole chapter (Quick revision notes) महत्त्वपूर्ण (मुख्य) बिंदु जो पूरे अध्याय को कवर करते हैं (त्वरित पुनरावृत्ति नोट्स) दिए गए हैं।
Table of Contents
Mere Bachpan Ke Din Explanation
मेरे बचपन के दिन - सहायक सामग्री
~ पाठ ‘मेरे बचपन के दिन’ संस्मरणात्मक शैली में लिखा गया है ।
~ इसकी लेखिका महादेवी वर्मा जी हैं।
~ पाठ का शीर्षक/ शीर्षक की सार्थकता –
इस संस्मरण में महादेवी जी ने अपने बचपन के उन दिनों को स्मृति (याद) के सहारे लिखा है, जब वे विद्यालय में पढ़ रही थीं। लेख के शीर्षक से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि महादेवी जी ने संस्मरण में अपने बचपन के उन दिनों की याद को कागज़ पर उतारा है इसलिए पाठ का यह शीर्षक बिल्कुल सार्थक है।
~ इस संस्मरण में महादेवी जी ने मुख्य रूप से निम्नलिखित विषयों का वर्णन किया है –
1. लड़कियों के प्रति सामाजिक रवैया (व्यवहार)
2. उनके घर का वातावरण
3. उनका विद्यालय
4. छात्रावास की सहपाठिनों का वर्णन
5. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गाँधी जी से उनकी भेंट और देश सेवा में महादेवी जी का योगदान
6. सांप्रदायिक प्रेम (अलग धर्म और जाति के बीच प्रेम)
1. लड़कियों के प्रति सामाजिक रवैया –
(i) लड़कियों के संबंध में उस समय के समाज की सोच –
महादेवी जी ने अपने संस्मरण के शुरू में ही इस विषय में लिखा है कि ‘मेरे परिवार में प्रायः दो सौ वर्ष तक कोई लड़की थी ही नहीं। सुना है, उसके पहले लड़कियों को पैदा होते ही परमधाम भेज देते थे।’ इस पंक्ति के माध्यम से हमें उस समय में लड़कियों की दशा का पता चलता है। उस समय में लड़की का जन्म लेना, परिवार के लिए दुख का कारण होता था। उसे बोझ समझा जाता था इसलिए गर्भ में लड़की होने की सूचना मिलते ही उसके पैदा होने से पहले, उसकी हत्या करवा दी जाती थी या पैदा होने पर उसे मार दिया जाता था।
वर्तमान समय में लड़कियों की स्थिति में पहले की अपेक्षा बहुत सुधार है। अब समझदार और पढ़े-लिखे लोग, लड़का – लड़की में भेदभाव नहीं करते। लड़कियों को भी लड़कों के समान प्यार मिलता है और उन्हें पढ़ाया – लिखाया जाता है जिससे वह आत्मनिर्भर बन सकें। परंतु ग्रामीण क्षेत्रों (गाँव) में अभी और सुधार की आवश्यकता है।
(ii) लड़कियों के संबंध में महादेवी जी के बाबा (दादा जी) की सोच –
महादेवी जी के बाबा की सोच समाज से अलग थी। उस समय जब परिवार में बेटी का जन्म लेना बुरा समझा जाता था तब उनके बाबा ने घर में बेटी के जन्म के लिए अपनी कुलदेवी दुर्गा की पूजा की। फिर परिवार में दो सौ वर्षों के बाद महादेवी जी के जन्म को उन्होंने दुर्गा का आशीर्वाद समझा। उन्होंने उनका लालन – पालन बहुत अच्छी तरह से किया इसलिए महादेवी जी को वह सब नहीं सहना पड़ा जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ा था।
उनके बाबा उन्हें विदुषी बनाना चाहते थे। उनके बाबा उर्दू और फ़ारसी जानते थे। वे चाहते थे कि महादेवी जी भी उर्दू – फ़ारसी सीखें लेकिन उर्दू – फ़ारसी सिखाने के लिए जब मौलवी साहब उनके घर आए तो दूसरे दिन वे चारपाई के नीचे छिप गई। शायद महादेवी जी उनकी लंबी दाढ़ी देखकर डर गई थी या वह विषय उन्हें पसंद नहीं था । इस कारण वे उर्दू – फ़ारसी नहीं सीख पाईं।
2. उनके घर का वातावरण –
(i) घर में सभी अलग-अलग भाषाओं के ज्ञाता थे –
~ महादेवी जी के परिवार में उनके बाबा उर्दू – फ़ारसी जानते थे। वे चाहते थे कि महादेवी जी भी उर्दू – फ़ारसी सीखें परंतु मौलवी साहब की डर और उस विषय में अरुचि के कारण महादेवी जी उर्दू – फ़ारसी नहीं सीख पाईं।
~ महादेवी जी के पिता ने अंग्रेजी पढ़ी थी।
~ महादेवी जी की माता जबलपुर (मध्य प्रदेश) की थीं। वे हिंदी और संस्कृत भाषाएँ जानती थीं।
(ii) महादेवी जी की माँ –
~ महादेवी जी पर अपनी माता का प्रभाव –
~ महादेवी जी की शिक्षा में उनकी माता का योगदान –
~महादेवी जी की माँ के व्यक्तित्व की विशेषताएँ –
महादेवी जी के दादाजी उर्दू – फ़ारसी जानते थे और उनके पिता जी ने अंग्रेज़ी पढ़ी थी। घर में हिंदी का कोई वातावरण नहीं था। महादेवी जी की माँ जबलपुर की थीं और वे हिंदी पढ़ना और लिखना जानती थीं। उन्होंने ही महादेवी जी को ‘पंचतंत्र’ पढ़ना सिखाया। वे एक धार्मिक स्वाभाव की महिला थीं। वे बहुत पूजा-पाठ किया करती थीं। वे विशेष रूप से मीरा के पद गाती थीं। वे प्रभाती (सुबह के समय गाया जाने वाला गीत) गाती थीं। घर में सुबह ‘जागिए कृपा निधान पंछी बन बोले’ सुना जाता था। शाम को भी वे मीरा का कोई पद गाती थीं। उन्हें सुन – सुनकर महादेवी जी ने ब्रजभाषा में लिखना आरंभ किया।
महादेवी जी की माँ थोड़ी संस्कृत भी जानती थीं। गीता में उन्हें विशेष रुचि थी। पूजा – पाठ के समय महादेवी जी भी उनके साथ बैठ जाती थीं और संस्कृत सुनती थीं।
इस प्रकार महादेवी जी के जीवन और लेखन दोनों पर उनकी माँ का बहुत गहरा और सकारात्मक (अच्छा) प्रभाव पड़ा। उनकी माँ द्वारा दिए गए संस्कारों ने महादेवी जी के लेखन की नींव (foundation) तैयार की।
3. उनका विद्यालय –
(i) मिशन स्कूल –
सबसे पहले महादेवी जी का दाखिला एक मिशन स्कूल में कराया गया। वहाँ का वातावरण घर के वातावरण से बिल्कुल अलग था। महादेवी जी अपनी माता के साथ पूजा – पाठ में बैठा करती थीं। उनकी माँ संस्कृत में गीता पढ़ती थी और मीरा के पद गाती थीं। परंतु मिशन स्कूल ईसाइयों का स्कूल था इस कारण वहाँ की प्रार्थना भी दूसरी थी। वहाँ महादेवी जी का मन नहीं लगा। वहाँ जाने के नाम पर वे रोने लगती थी इसलिए वहाँ जाना बंद हो गया।
(ii) क्रॉस्थवेट गर्ल्स कॉलेज –
मिशन स्कूल के बाद महादेवी जी का दाखिला क्रॉस्थवेट गर्ल्स कॉलेज की पाँचवीं कक्षा में कराया गया। वहाँ का वातावरण उन्हें अच्छा लगा। उस कॉलेज में हिंदू लड़कियाँ भी थीं और ईसाई लड़कियाँ भी थीं। सभी के लिए एक ही मेस था और उसमें प्याज़ तक नहीं बनता था अर्थात् हिंदू लड़कियों की भावनाओं का सम्मान करते हुए प्याज़ का उपयोग नहीं किया जाता था।
4. छात्रावास की सहपाठिनों का वर्णन –
(i) सुभद्रा कुमारी चौहान
~ महादेवी जी और सुभद्रा कुमारी की मित्रता –
~ महादेवी जी की काव्य रचना पर सुभद्रा कुमारी चौहान का प्रभाव –
~ महादेवी जी की प्रतिभा को सबके सामने लाने में सुभद्रा कुमारी का योगदान –
~ कवयित्री के रूप में पहचान –
महादेवी जी क्रॉस्थवेट गर्ल्स कॉलेज के छात्रावास में रहती थीं। उस छात्रावास के हर एक कमरे में चार छात्राएँ रहती थीं। सुभद्रा कुमारी चौहान उन्हीं के कमरे में उनकी साथिन थीं। वे सातवीं कक्षा में पढ़ती थी और महादेवी जी पाँचवी में। महादेवी जी ने अपनी माँ को ब्रजभाषा में पद लिखते और गाते सुना था। उन्हें ही सुनकर महादेवी जी ने भी ब्रजभाषा में ही लिखना आरंभ किया था। लेकिन छात्रावास में सुभद्रा कुमारी जी खड़ीबोली में लिखतीं थीं। वे एक प्रसिद्ध कवयित्री के रूप में प्रसिद्ध थीं। उनसे प्रभावित होकर महादेवी जी भी छिप-छिपकर खड़ीबोली में लिखने लगीं।
सुभद्रा जी के पूछने पर कि “महादेवी तुम कविता लिखती हो?” महादेवी जी डर के कारण मना कर देती हैं। जब सुभद्रा जी ने उनकी डेस्क की किताबों की तलाशी ली तो उन्हें महादेवी जी की बहुत – सी कविताएँ मिली। तब सुभद्रा जी, महादेवी जी और उनकी कविताओं को लेकर पूरे छात्रावास में बात आई कि ये कविता लिखती है। उसके बाद महादेवी जी और सुभद्रा जी की मित्रता हुई और महादेवी जी की प्रतिभा सबके सामने आए।
जब भी खाली समय मिलता, वे दोनों तुक मिलाते थे। निरंतर (लगातार) अभ्यास से उनके काव्य में और निखार आता गया।
सुभद्रा जी महादेवी जी से दो साल बड़ी थीं और एक अच्छी कवयित्री के रूप में जानी जाती थीं। इस प्रकार महादेवी जी को सुभद्रा जी से उचित मार्गदर्शन मिलता गया। वे अपनी कविताएँ ‘स्त्री दर्पण’ नामक पत्रिका में भेजती थीं और उनकी कविताएँ उसमें छपतीं थीं।
उस समय में हिंदी के प्रचार – प्रसार के उद्देश्य से कवि सम्मेलन होते थे जहाँ हिंदी के प्रसिद्ध कवि आते थे। दोनों छात्राएँ अपनी मैडम के साथ जातीं और अपनी कविताएँ सुनाती थीं। महादेवी जी को कवि सम्मेलनों में अक्सर प्रथम पुरस्कार मिलता था और उन्हें सौ से अधिक पदक मिले । इस प्रकार उन्हें कवयित्री के रूप में पहचान मिली।
(ii) जेबुन्निसा
~ ज़ेबुन्निसा महादेवी जी की मदद करती थी –
सुभद्रा कुमारी के छात्रावास से जाने के बाद ज़ेबुन्निसा महादेवी जी के साथ उनके कमरे में रहने लगी। ज़ेबुन्निसा कोल्हापुर से आई एक मराठी लड़की थी। ज़ेबुन्निसा महादेवी जी की डेस्क साफ़ कर देती थी, उनकी किताबें ठीक कर देती थी। इस तरह महादेवी जी को कविता लिखने के लिए कुछ और समय मिल जाता था।
5. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गाँधी जी से भेंट और देश सेवा में महादेवी जी का योगदान –
महादेवी जी ने अपने संस्मरण में गाँधी जी से अपनी भेंट का वर्णन किया है। भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष के समय में आनंद भवन स्वतंत्रता सेनानियों का मुख्य केंद्र बन गया था। इसी सिलसिले में गाँधी जी आनंद भवन आए जो इलाहाबाद में महादेवी जी के कॉलेज के पास ही था। महादेवी जी अपने जेब खर्च में से हमेशा एक – दो आने बचा कर रखती थीं और जब बापू आते थे तो वह पैसा उन्हें देश सेवा के कार्य के लिए दे देती थीं। एक दिन जब बापू आए तब महादेवी जी उनसे मिलने गई।
वे अपने साथ कविता सुनाने पर पुरस्कार के रूप में मिला चाँदी का सुंदर नक्काशीदार कटोरा गाँधी जी को दिखाने के लिए ले गई। जब महादेवी जी ने चाँदी का वह कटोरा गाँधी जी की ओर बढ़ाया तब गाँधी जी ने उसे देखकर पूछा कि ‘तू देती है इसे?’ तब महादेवी जी ने वह कटोरा गाँधी जी को दे दिया।
महादेवी जी को इस बात का दुख हुआ कि गाँधी जी ने उनसे कविता सुनाने को नहीं कहा लेकिन फिर भी वह मन ही मन प्रसन्न थी कि पुरस्कार में मिला उनका चाँदी का कटोरा देश के लिए आवश्यक धनराशि के रूप में काम आएगा। इस घटना से यह पता चलता है कि छोटी-सी उम्र में उनके मन में अपने देश के लिए कितना प्रेम था।
6. सांप्रदायिक प्रेम (अलग धर्म और जाति के बीच प्रेम) –
(i) महादेवी जी ने अपने संस्मरण में लिखा है कि क्रॉस्थवेट गर्ल्स कॉलेज के छात्रावास का वातावरण बहुत अच्छा था। उस समय वहाँ सांप्रदायिकता (अपने धर्म, भाषा और क्षेत्र से प्रेम के कारण दूसरों से शत्रुता का भाव) नहीं था। अवध की लड़कियाँ आपस में अवधी बोलती थीं, उसी प्रकार बुंदेलखंड की लड़कियाँ आपस में बुंदेली बोलती थीं लेकिन दूसरे क्षेत्र (जगह) की लड़कियों के लिए उनके मन में कोई बुरा भाव नहीं था।
बहुभाषी होने पर अर्थात् आपस में अपनी भाषा में बोलने पर भी सब साथ में हिंदी और उर्दू पढ़ते थे। सब छात्राएँ एक ही मेस में खाती थीं और एक ही प्रार्थना में खड़ी होती थीं। किसी प्रकार का कोई झगड़ा नहीं था।
(ii) महादेवी जी की एक सहपाठी ज़ेबुन्निसा कोल्हापुर की थी और वह मराठी शब्दों में मिली जुली हिंदी बोलती थी। छात्रावास की एक उस्तानी जी (शिक्षिका) ज़ीनत बेगम ज़ेबुन्निसा के मराठी शब्दों के प्रयोग पर उसे टोकते हुए कहती थीं कि ‘देसी कौवा, मराठी बोले’ तब ज़ेबुन्निसा कहती थी नहीं उस्तानी जी यह मराठी कौवा मराठी बोलता है।
ज़ेबुन्निसा को अपनी मराठी वेशभूषा और भाषा पर गर्व था। वह मराठी महिलाओं की तरह ही किनारीदार साड़ी पहनती थी और गर्व से कहती थी, “हम मराठी हूँ तो मराठी बोलेंगे।” इसका अर्थ यह है कि अपने क्षेत्र से प्रेम और उससे जुड़े होने की भावना होते हुए भी लोगों में दूसरे धर्म या अलग क्षेत्र वालों से शत्रुता की भावना नहीं होती थी।
(iii) महादेवी जी का परिवार जहाँ रहता था इस कंपाउंड में जावरा के नवाब भी रहते थे। धार्मिक भेदभाव (हिंदू – मुस्लिम के भेद) को माने बिना नवाब साहब की बेगम महादेवी और उनके भाई – बहन को स्वयं को ‘ताई’ कहने के लिए कहती थीं। उनके बच्चे महादेवी जी की माँ को ‘चची जान’ कहते थे। उनके द्वारा बनाए गए पारिवारिक संबंधों (रिश्तों) ने उनके बीच धर्म के अंतर को मिटा दिया था।
दोनों परिवार दोनों धर्मों के त्योहारों और जन्मदिन आदि उत्सवों को एक – साथ मिलजुल कर मानते थे। वे पूरे हिंदू धर्म के रीति – रिवाज़ों के अनुसार अपने बेटे को महादेवी जी से राखी बँधवाती थी। जब तक बहनें राखी न बाँधें तब तक अपने बेटे को भोजन नहीं देती थी और राखी बाँधने पर महादेवी जी को लहरिया या कुछ उपहार भी देती थीं।
जब महादेवी जी के छोटे भाई का जन्म हुआ तब बेगम साहिबा ने अपने देवर (महादेवी जी के पिता) से बड़े अधिकार से नेग माँगा और अपनापन जताते हुए वे उनके भाई के लिए कपड़े लाईं। बड़े होकर उनके भाई प्रोफ़ेसर मनमोहन वर्मा जम्मू यूनिवर्सिटी और बाद में गोरखपुर यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर रहे। तब भी उनका वही नाम रहा जो बेगम साहिबा ने प्यार से रखा था अर्थात् महादेवी जी के परिवार वालों ने उनका नाम नहीं बदला।
महादेवी जी ने आज के समय को ध्यान में रखते हुए उस समय को स्वप्न जैसा कहा है क्योंकि आज धर्म, भाषा और क्षेत्र के आधार पर अनेक झगड़े हो रहे हैं। उस स्थिति में ऐसा वातावरण मिलना असंभव लगता है और जो हमें असंभव लगता है उसे हम सपना ही मानते हैं।
साथ ही वे यह भी लिखती हैं कि ‘शायद वह सपना सत्य हो जाता तो भारत की कथा कुछ और होती।’ इसका अर्थ यह है कि यदि देश के लोग अपने – आप को धर्म, जाति और क्षेत्र में बाँटें बिना एक – दूसरे से प्रेम करते तो देश का विभाजन नहीं हुआ होता।