NCERT Solutions for Class 10 Hindi Course A Kshitij Chapter 9 Lakhnavi Andaaz
हमारे ब्लॉग में आपको NCERT पाठ्यक्रम के अंतर्गत कक्षा 10 (Course A) की हिंदी पुस्तक ‘क्षितिज’ के पाठ पर आधारित सामग्री प्राप्त होगी जो पाठ की विषय-वस्तु को समझने में आपकी सहायता करेगी। इसे समझने के उपरांत आप पाठ से संबंधित किसी भी प्रश्न का उत्तर सरलता से दे सकेंगे।
यहाँ NCERT Class 10 Hindi के पाठ – 9 लखनवी अंदाज़ – Lakhnavi Andaaz के मुख्य बिंदु (Important / Key points) दिए जा रहे हैं। साथ ही आपकी सहायता के लिए पाठ्यपुस्तक में दिए गए प्रश्नों के सटीक उत्तर (Textbook Question Answers) एवं अतिरिक्त प्रश्नों के उत्तर (Extra Questions /Important Questions with Answers) सरल एवं भाषा में दिए गए हैं। आशा है यह सामग्री आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
Table of Contents
Lakhnavi Andaaz - Introduction
लखनवी अंदाज़ - पाठ परिचय
पाठ ‘लखनवी अंदाज़’ में लेखक यशपाल ने उस सामंती वर्ग पर व्यंग्य किया है जो दोहरी ज़िंदगी जीने का आदी हो चुका है। जो असलियत से दूर अपने झूठे सामंती रौब को बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास करता है। फिर चाहे वे प्रयास बेतुके और अजीब ही क्यों न हों। वह अपनी पुरानी, सामंत वाली (नवाबी) छवि के न रहने पर भी उसे अपने साथ चिपटाए हुए बनावटी जीवन शैली जीता है।
पाठ के नवाब साहब के माध्यम से लेखक अपनी असलियत को न अपनाने वालों, व्यर्थ में अपनी बढ़ाई करने वालों पर व्यंग्य करते हैं। साथ ही वह नई कहानी के लेखकों पर भी निशाना साधते हैं जो यह मानते हैं कि कहानी लिखने के लिए किसी विचार, घटना और पात्र का होना आवश्यक नहीं। केवल लेखक की इच्छा से ही कहानी लिखी जा सकती है।
Lakhnavi Andaaz Notes
लखनवी अंदाज़ - पाठ का सार
लेखक को पास ही कहीं जाना था। पैसेंजर ट्रेन चलने वाली थी। लेखक ने यह सोच कर सेकंड क्लास का टिकट ले लिया कि टिकट के पैसे ज़्यादा होने के कारण सेकंड क्लास में भीड़ कम होती है। वह आराम से खिड़की से प्राकृतिक दृश्य देखते हुए किसी नई कहानी के बारे में सोच सकेंगे।
गाड़ी छूटने वाली थी इसलिए लेखक दौड़कर एक डिब्बे में चढ़ गए लेकिन उनके अनुमान के विपरीत, डिब्बा खाली नहीं था। उस डिब्बे में लखनऊ की नवाबी नस्ल के एक सज्जन पालथी मारे बैठे थे। सामने ही दो ताज़े खीरे तौलिए पर रखे थे। लेखक का अचानक डिब्बे में आ जाना उन सज्जन को अच्छा नहीं लगा। नवाब साहब की आँखों में उनके एकांत चिंतन (सोच) में बाधा पड़ जाने का असंतोष उनके चेहरे पर साफ़ झलक रहा था।
लेखक के आने पर नवाब साहब ने संगति के लिए कोई उत्साह नहीं दिखाया अर्थात् उन्होंने लेखक से बातचीत करने की इच्छा नहीं दिखाई इसलिए लेखक ने भी आत्मसम्मान के कारण उनसे कुछ नहीं कहा और नवाब साहब के सामने वाली बर्थ पर बैठ गए और कहीं और देखने लगे।
लेखक ने सोचा कि नवाब साहब ने सेकंड क्लास का टिकट शायद इसलिए लिया था कि वे अकेले यात्रा कर सकेंगे और अब उन्हें यह बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था कि कोई सफ़ेदपोश (सज्जन) उन्हें मँझले (दूसरे) दर्जे में सफ़र करते देखे। खीरे भी उन्होंने वक्त काटने के लिए खरीदे होंगे, लेकिन अब वह सोच में पड़ गए होंगे कि एक नवाब होकर किसी के सामने खीरे जैसी साधारण चीज़ कैसे खाएँ।
नवाब साहब शायद इन्हीं सब बातों के बारे में सोचते हुए खिड़की से बाहर देख रहे थे और लेखक कनखियों से उनकी ओर देख रहे थे।
अचानक नवाब साहब ने लेखक को संबोधित किया और कहा, “आदाब अर्ज़, जनाब, खीरे का शौक फ़रमाएँगे?” लेखक को नवाब साहब का अचानक यह भाव-परिवर्तन अच्छा नहीं लगा। लेखक को लगा कि ऐसा करके नवाब साहब अपनी शराफ़त दिखाकर स्वयं को अदब वाला और लेखक को मामूली आदमी जताना चाहते थे। लेखक ने भी ‘शुक्रिया’ कहकर मना कर दिया।
नवाब साहब ने बहुत तरीके से खीरे धोकर छीले, काटे और जीरा मिला नमक-मिर्च बुरककर तौलिए पर सजाते हुए पुनः लेखक से खाने के लिए पूछा। रसीला खीरा देखकर लेखक के मुँह में पानी आ रहा था अर्थात् खीरे खाने की उनकी तीव्र इच्छा हुई लेकिन वे नवाब साहब को पहले मना कर चुके थे इसलिए उन्होंने दूसरी बार पेट खराब होने के कारण इच्छा न होने का बहाना बनाया।
अब नवाव साहब ने बड़ी ही इच्छा भरी नज़रों से खीरे की फाँकों को देखा। फिर वह एक फाँक को उठाकर होंठों तक ले गए। फाँक को सूँधा। खीरे के स्वाद के आनंद में उनकी पलके मुँद गईं। मुँह में बनी लार को गले से उतारा। उसके बाद उन्होंने फाँक को खिड़की से बाहर फेंक दिया। इस प्रकार नवाब साहब एक-एक फाँक को उठाकर सूँघते और खिड़की के बाहर फेंकते गए।
सब फाँकों को खिड़की से बाहर फेंकने के बाद उन्होंने तौलिए से हाथ और होंठ पोंछे। फिर गर्व से लेखक की ओर देखा, मानो कह रहे हों यह है खानदानी रईसों का तरीका। नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए।
यह सब देखकर लेखक यह सोचने लगे कि केवल खीरे की सुगंध (खुशबू) और स्वाद की कल्पना करके, खीरा इस्तेमाल करने के इस तरीके से संतुष्ट होने का यह बढ़िया तरीका हो सकता है लेकिन क्या इस तरीके से पेट भी भरा जा सकता है?
लेखक अभी यह सब सोच ही रहे थे कि तभी नवाब साहब ने डकार लेकर अपनी तृप्ति और संतुष्टि दर्शाने का प्रयास किया और कहा कि (खीरा लज़ीज़ होता है, लेकिन होता है सकील, नामुराद मेदे पर बोझ डाल देता है) खीरा स्वादिष्ट होता है लेकिन आसानी से पचता नहीं है। पेट के लिए भारी होता है। यह सुनकर लेखक के ज्ञान-चक्षु खुल गए अर्थात् उन्हें आज यह ज्ञान मिला कि जिस तरह खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से पेट भर जाने की डकार आ सकती है उसी तरह बिना विचार, घटना और पात्रों के इच्छा मात्र से नई कहानी भी बन सकती है।
Lakhnavi Andaaz Question Answer
लखनवी अंदाज़ - प्रश्न उत्तर
1. लेखक को नवाब साहब के किन हाव – भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं?
उत्तर – लेखक को सेकंड क्लास के डिब्बे में देखकर नवाब साहब असंतुष्ट से दिखने लगे। लेखक को नवाब साहब की आँखों में, उनके एकांत समय के आनंद में बाधा पड़ने का असंतोष दिखाई दिया। उन्होंने लेखक में कोई भी रुचि नहीं दिखाई और अनजान बनकर गाड़ी की खिड़की से बाहर देखने लगे। वे ऐसा व्यवहार करते रहे कि उन्होंने लेखक को देखा ही नहीं। नवाब साहब के इन हाव – भावों को देखकर लेखक को महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं।
2. नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, नमक मिर्च बुरका, अंततः सूँघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा? उनका ऐसा करना उनके कैसे स्वभाव को इंगित करता है?
उत्तर- नवाब साहब अपनी नवाबी शानो-शौकत को दिखाने की बहुत आदत रखते थे। नवाब साहब ने ऐसा लेखक को यह जताने के लिए किया होगा कि खीरे जैसी खाने की सस्ती और साधारण चीज़ों का उपयोग नवाब लोग उदर की तृप्ति (पेट भरने) के लिए करके अपनी नवाबी प्रतिष्ठा को नहीं बिगाड़ते बल्कि नवाबी अंदाज़ से वह खीरे जैसी चीज़ को भी खास बना देते हैं। खीरे खाकर पेट भरने का कार्य तो साधारण लोग करते हैं पर वो तो खास हैं। उनका ऐसा करना उनके नवाबी दिखावे के स्वभाव की ओर संकेत करता है।
3. बिना विचार, घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है? यशपाल के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर- इस वाक्य के माध्यम से यशपाल जी यह कहना चाहते हैं कि बिना विचार, घटना और पात्रों के कोई कहानी नहीं लिखी जा सकती। मैं पूरी तरह. से उनके इस विचार से सहमत हूँ।
विचार, घटना और पात्र किसी कहानी का आधार होते हैं । इन्हें एक-दूसरे से न तो अलग किया जा सकता है और न ही इनके अभाव में कहानी की कल्पना की जा सकती है। विचार के आते ही कहानी की कल्पना बनती है। घटना कहानी को आगे बढ़ाती है और घटना में पात्र अवश्य होते हैं। पात्रों के माध्यम से कहानी कही जाती है। पात्र, घटना और विचार कहानी के तत्व हैं, अतः इनके बिना कहानी नहीं बन सकती।
4. आप इस निबंध को और क्या नाम देना चाहेंगे ?
उत्तर- नवाबी झूठी शान
रचना और अभिव्यक्ति
5. (क) नवाब साहब द्वारा खीरा खाने की तैयारी करने का एक चित्र प्रस्तुत किया गया है। इस पूरी प्रक्रिया को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
अथवा
नवाब साहब ने किस तरह ताज़े – चिकने खीरों का रसास्वादन (किसी चीज़ का स्वाद लेना) किया?
उत्तर- नवाब साहब ने खीरों के नीचे रखे तौलिए को झाड़कर सामने बिछाया। फिर सीट के नीचे से लोटा उठाकर दोनों खीरों को खिड़की से बाहर धोया और तौलिए से पोंछ लिया। जेब से चाकू निकालकर दोनों खीरों के सिरे काटकर उन्हें गोदकर झाग निकाला। फिर खीरों को बहुत ध्यान से छीलकर फाँकों को बड़े ढंग से तौलिए पर सजाते गए। फिर उन फाँकों पर जीरा, नमक और पिसी हुई लाल मिर्च बुरक (छिड़क) दी।
इस पूरी प्रक्रिया में उनके चेहरे की भाव – भंगिमा को देखकर यह पता चल रहा था कि उनका मुख खीरे के स्वाद की कल्पना से भर गया है।
नवाब साहब ने बड़ी इच्छा भरी आँखों से नमक-मिर्च लगी खीरे की रसीली फाँकों को देखा। फिर खिड़की से बाहर देखकर एक लंबी साँस ली और खीरे की एक फाँक उठाकर होंठों तक ले गए। फाँक को सूँघा। स्वाद के आनंद में उनकी पलकें मुँद गईं। मुँह में भर आए पानी का घूँट गले से उतारा और फिर खीरे की फाँक को खिड़की से बाहर फेंक दिया। इसी प्रकार नवाब साहब ने खीरे की सभी फाँकों को खिड़की से बाहर फेंक दिया और तौलिए से हाथ और होंठ पोंछकर लेट गए। कुछ देर में उन्होंने डकार भी ले लिया।
(ख) किन-किन चीज़ों का रसास्वादन करने के लिए आप किस प्रकार की तैयारी करते हैं?
उत्तर – छात्र अपनी रुचि के अनुसार अपनी मनपसंद वस्तु के बारे में लिख सकते हैं जिसे वे स्वयं तैयार करना जानते हों, जैसे – मैगी, चॉकलेट शैक, ब्रैड टोस्ट आदि।
6. खीरे के संबंध में नवाब साहब के व्यवहार को उनकी सनक कहा जा सकता है। आपने नवाबों की और भी सनकों और शौक के बारे में पढ़ा-सुना होगा। किसी एक के बारे में लिखिए।
उत्तर – पतनशील सामंती वर्ग का चित्रण महान कहानीकार प्रेमचंद जी ने अपनी एक प्रसिद्ध कहानी ‘शतरंज के खिलाड़ी’ में किया है। इस कहानी पर बाद में सत्यजीत राय ने इसी नाम से एक फ़िल्म भी बनाई थी।
नवाबों की सनक को जानने के लिए यह कहानी पढ़ें।
फ़िल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ का लिंक यहाँ दिया जा रहा है। यदि संभव हो तो यह फ़िल्म भी देखिए।
7. क्या सनक का कोई सकारात्मक रूप हो सकता है? यदि हाँ तो ऐसी सनकों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर – हाँ, निश्चित रूप से सनक का सकारात्मक रूप हो सकता है। अपने लक्ष्य को पाने के लिए पूर्ण रूप से समर्पित होना, किसी काम को करने की धुन लगा लेना, या जुनून होना सनक हो सकता है। ऐसी सनक सकारात्मक होती है। इसी सकारात्मक सनक के चलते आये दिन नए आविष्कार होते हैं।
चाणक्य ने अपनी सनक से एक अयोग्य और क्रूर राजा नंद का समूल नाश कर दिया। एक साधारण बालक का मार्गदर्शन करके उसे सम्राट चंद्रगुप्त बना दिया।
उसी प्रकार बिहार के दशरथ माँझी ने अपनी सनक के कारण ही पहाड़ काटकर, रास्ता बना दिया जिससे वजीरगंज अस्पताल की दूरी कम हो गई। अपनी सनक के कारण वे ‘भारतीय माउंटेन मैन’ के नाम से जाने जाते हैं।
Lakhnavi Andaaz Important Question
लखनवी अंदाज़ - महत्त्वपूर्ण प्रश्न
1. पाठ ‘लखनवी अंदाज़’ के शीर्षक की सार्थकता /उपयुक्तता पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर – पाठ में एक घटना के द्वारा लखनऊ के एक नवाब के खीरे खाने के अंदाज़ का वर्णन किया गया है। इस वर्णन के माध्यम से लेखक ने नवाब साहब के खीरे खाने के अंदाज़ को ही नहीं, नवाबी सनक, सामंतों के दिखावा करने की आदत और बनावटी जीवन को दिखाया है। बिना वजह स्वयं को खास और रईस जताने के लखनऊ के नवाब के अंदाज़ अर्थात् तरीके को दिखाने के कारण पाठ का शीर्षक ‘लखनवी अंदाज़’ रखा गया है जो एक दम उपयुक्त है।
2. ‘लखनवी अंदाज़’ पाठ में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- ‘लखनवी अंदाज़ ‘ पाठ में लेखक ने प्राचीन शाही परंपरा और सामंतों पर व्यंग्य किया है, जो झूठी शान से जीते हैं और वास्तविक स्थिति को छिपाने का प्रयास करते हैं। ऐसे व्यक्ति जो इस तरह व्यर्थ के दिखावे में अपनी शान समझते हैं, वास्तव में वे स्वयं को ही धोखा दे रहे होते हैं।
साथ ही यह पाठ उन लेखकों पर भी व्यंग्य करता है जो बिना पात्र, घटना एवं कथन के कहानी लिखने की कोशिश करते हैं। जबकि इनके अभाव में कहानी लिखना संभव नहीं है।
3. ‘लखनवी अंदाज़’ कहानी से क्या संदेश मिलता है?
उत्तर – ‘लखनवी अंदाज’ कहानी से यह संदेश मिलता है कि व्यक्ति को वास्तविकता को अपनाना चाहिए। काल्पनिक और बनावटी जीवन-शैली बनाकर व्यक्ति दूसरों को तो कुछ देर के लिए प्रभावित कर सकता है, परंतु ऐसा करके वह स्वयं को ही धोखा देता है।
Good cover photo👍❤️
Notes also helped alot💯