kaidi aur kokila

Kaidi aur Kokila – NCERT Class 9 Hindi A Kshitij

NCERT Study Material for Class 9 Hindi Kshitij Chapter - 12 Kaidi aur Kokila

NCERT Study Material for Class 9 Hindi Kshitij Chapter – 12 Kaidi aur Kokila – कैदी और कोकिला (Explanation) 

हमारे ब्लॉग में आपको NCERT पाठ्यक्रम के अंतर्गत कक्षा 9 (Course A) की हिंदी पुस्तक ‘क्षितिज’ के पाठ पर आधारित प्रश्नों के सटीक उत्तर स्पष्ट एवं सरल भाषा में प्राप्त होंगे। साथ ही काव्य – खंड के अंतर्गत निहित कविताओं एवं साखियों आदि की विस्तृत व्याख्या भी दी गई है।

यहाँ NCERT Class 9 Hindi A Kshitij के पाठ – 12 ‘कैदी और कोकिला’ (Kaidi aur Kokila) की व्याख्या दी जा रही है। यह व्याख्या पाठ की विषय-वस्तु को समझने में आपकी सहायता करेगी। इसे समझने के उपरांत आप पाठ ‘कैदी और कोकिला’ (Kaidi aur Kokila) से संबंधित किसी भी प्रश्न का उत्तर सरलता से दे सकेंगे। आशा है यह सामग्री आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी।

Table of Contents

Kaidi aur Kokila Summary
कैदी और कोकिला - सार

कविता का सार

प्रस्तुत कविता अंग्रेज़ी सरकार द्वारा भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के साथ जेल में किए गए दुर्व्यवहारों (बुरे व्यवहार) और यंत्रणाओं (अत्याचारों) का दुखद चित्र प्रस्तुत करती है।

अंग्रेज़ी सरकार जेल में कैद स्वतंत्रता सेनानियों का मनोबल तोड़ने के लिए, उनके इरादों को कमज़ोर करने के लिए उन पर तरह-तरह के अत्याचार करती है। कवि माखनलाल चतुर्वेदी जी ने, जिन्होंने स्वयं स्वतंत्रता की लड़ाई में अपना योगदान दिया और उसके लिए जेल भी गए, इस कविता में अपने मन के दुख, असंतोष और ब्रिटिश शासन के प्रति अपने आक्रोश (गुस्से) को कोयल के साथ अपने संवाद के रूप में व्यक्त किया है।

कवि आधी रात को जेल की ऊँची – ऊँची दीवारों से बनी छोटी – सी कोठरी में कैद है। वह अकेला और उदास है। ऐसे में कोयल की आवाज़ सुनकर कवि अपनी मनोदशा के अनुरूप उसकी इस पुकार के अपने अनुमान द्वारा अनेक अर्थ निकलता है। कभी उसे कोयल की आवाज़ में दर्द सुनाई देता है तो कभी विद्रोह के स्वर। कवि को लगता है कि कोयल भी पूरे देश को एक कारागार (जेल) के रूप में देखने लगी है, देश की गुलामी को महसूस कर रही है इसलिए वह आधी रात में चीख उठी है।

Kaidi aur Kokila Message
कैदी और कोकिला - संदेश

कविता का संदेश /उद्देश्य –

प्रस्तुत कविता कवि माखनलाल चतुर्वेदी जी द्वारा उस समय लिखी गई थी जब भारत ब्रिटिश शासन का गुलाम था। देश की आज़ादी के लिए लड़ने वालों को अंग्रेजी सरकार जेल में कैद कर देती थी और उन्हें तरह-तरह की यातनाएँ दी जाती थी जिससे उन स्वतंत्रता सेनानियों के इरादे कमजोर पड़ जाएँ और वह आज़ादी का सपना देखना और उसे पाने के प्रयास बंद कर दें।

यह कविता विद्यार्थियों को उस समय की स्थिति से अवगत कराती है। कवि ने कोयल को संबोधित करते हुए (कोयल से बात करते हुए) एक कैदी के रूप में स्वयं पर होने वाले अत्याचारों और दुर्व्यवहारों के बारे में कविता में बताया है जिसे पढ़कर पता चलता है कि हमें कैदी की तरह और न जाने कितने स्वतंत्रता सेनानियों की कुर्बानियों, उनके बलिदानों के बाद यह आज़ादी मिली है इसीलिए अपने देश का सम्मान करना और इसकी आज़ादी की रक्षा करना हमारा परम कर्त्तव्य है।  

Kaidi aur Kokila Explanation
कैदी और कोकिला - व्याख्या

क्या गाती हो?

क्यों रह-रह जाती हो?

कोकिल बोलो तो!

क्या लाती हो?

संदेशा किसका है? 

कोकिल बोलो तो !

 

व्याख्या –

कवि माखनलाल चतुर्वेदी कोयल को संबोधित करते हुए प्रश्न पूछते हैं कि तुम क्या गा रही हो क्यों रह – रह जाती हो अर्थात् तुम गाते – गाते बीच में चुप क्यों हो जाती हो? कवि को ऐसा लगता है कि कोयल शायद डर-डर कर गा रही है। डर के कारण वह गाते – गाते चुप हो जाती है और फिर हिम्मत जुटाकर फिर से गाने लगती है। कवि को ऐसा लगता है कि कोयल शायद किसी का संदेश लेकर उसके पास आई है इसलिए वह बड़ी सजग (alert) होकर, बड़ी सावधानी से अपनी बात कहना चाहती है। अपने इस अनुमान की पुष्टि के लिए कवि कोयल से प्रश्न पूछ रहा है। 

 

ऊँची काली दीवारों के घेरे में, 

डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में,

जीने को देते नहीं पेट-भर खाना, 

मरने भी देते नहीं, तड़प रह जाना!

जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है, 

शासन है, या तम का प्रभाव गहरा है?

हिमकर निराश कर चला रात भी काली,

इस समय कालिमामयी जगी क्यूँ आली ?

 

व्याख्या – कवि कोयल को अपने बारे में बताते हुए कहता है कि मैं यहां जेल में ऊँची दीवारों से बनी कोठरी में कैद हूँ जहाँ रोशनी भी नहीं आती इसीलिए यहाँ हर समय अँधेरा ही रहता है और दीवारों का रंग भी कल लगता है

 

हम स्वतंत्रता सेनानियों को अंग्रेज़ी सरकार ने डाकू, चोरों और यात्रियों को लूटने वालों के साथ कैद करके रखा हुआ है। ये हमें न तो पेट – भरकर खाना देते हैं जिससे हम जीवित रह सके और न ही ये हमें मरने देते हैं इसलिए हम तड़प तड़प कर जी रहे हैं। हमारे जीवन पर दिन-रात ब्रिटिश शासन का कड़ा पहरा है अर्थात् हमारी हर गतिविधि पर नज़र रखी जाती है।

 

कवि सरकार के इस दुर्व्यवहार के प्रति अपना क्रोध व्यक्त करते हुए कहता है कि यह कैसा शासन है जिसमें लोगों के जीवन को अपने वश में कर रखा है। हम पर अत्याचार करके ये हमें स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने की कठोर सजा देना चाहते हैं हम पर किए जाने वाले इनके ये अत्याचार किसी अन्याय से कम नहीं। ऐसा लगता है कि हर तरफ़ तम का गहरा प्रभाव है अर्थात् हर तरफ़ बुराई फैली हुई है।

 

कवि ने यहाँ ब्रिटिश शासन द्वारा किए जाने वाले शोषण, अत्याचार और उनके आचरण का संकेत दिया है। कवि कोयल से कहता है कि इस समय चंद्रमा भी जा चुका है ऐसा लगता है कि वह भी ब्रिटिश शासन के अत्याचारों से निराश होकर चला गया है और उसके जाने से रात और भी काली प्रतीत हो रही है। इस समय में हे सखी! काले रंग से युक्त तुम क्यों जगी हुई हो?

 

क्यों हूक पड़ी?

वेदना बोझ वाली सी; 

कोकिल बोलो तो !

क्या लूटा ?

मृदुल वैभव की

रखवाली – सी,

कोकिल बोलो तो!

 

व्याख्या – कवि कोयल की आवाज़ में दुख का अनुभव करते हुए उससे पूछता है कि तुम्हें क्या दुख है? तुम्हारी आवाज़ से ऐसा लगता है कि तुम पीड़ा से भरी हुई हो। कोयल की दुख भरी आवाज़ सुनकर कवि चिंता व्यक्त करते हुए कहता है कि कोयल बताओ इस दुख का क्या कारण है ? फिर वह अनुमान लगाते हुए पूछता है कि क्या तुम्हारा कुछ लुट गया है? तुम तो मीठी आवाज़ की रखवाली करती हो, फिर दुख से भरी आवाज़ में क्यों गा रही हो? 

 

क्या हुई बावली ? 

अर्द्धरात्रि को चीखी, 

कोकिल बोलो तो! 

किस दावानल की 

ज्वालाएँ हैं दीखीं? 

कोकिल बोलो तो!

 

व्याख्या – कोयल से कोई उत्तर या संकेत न मिलने पर कवि अन्य अनुमान लगाता है कि क्या तुम पागल हो गई हो जो आधी रात के समय चीख रही हो ? सामान्य रूप से कोई भी पक्षी आधी रात के समय नहीं बोलता लेकिन कोयल का इस तरह चीख कर बोलना असामान्य है इसीलिए कवि उसे पागल कह रहा है कि कोयल बताओ तुम्हारे दुख भरे स्वर का क्या कारण है ?

 

क्या तुमने किसी जंगल को जलते हुए देख लिया है और कहीं उस जंगल की आग की लपटों से तुम डर कर अपनी मधुर आवाज़ को छोड़कर दुख भरे स्वर में आधी रात के समय चीख रही हो? कोयल बोलो तो ? कवि को यह अंदेशा (शंका) हो रहा है कि कहीं कोयल ने भारतीयों के मन में ब्रिटिश सरकार के प्रति आक्रोश (गुस्से) और असंतोष की ज्वाला तो नहीं देख ली और कहीं वह इस क्रांति रूपी ज्वाला की सूचना देने तो जेल में नहीं आई है। 

 

क्या? – देख न सकती ज़ंजीरों का गहना ? 

हथकड़ियाँ क्यों? यह ब्रिटिश राज का गहना, 

कोल्हू का चर्रक चूँ?-जीवन की तान, 

गिट्टी पर अँगुलियों ने लिखे गान ! 

हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जुआ, 

खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कुँआ । 

दिन में करुणा क्यों जगे, रुलानेवाली, 

इसलिए रात में गज़ब ढा रही आली ?

 

व्याख्या – अब कवि अंदाज़ा लगता है कि उसके हाथों पैरों पर जो बेड़ियाँ (हथकड़ियाँ) बँधी हुई हैं, उन्हें देखकर कोयल का मन दुख से भर गया है और शायद इसलिए वह चीख रही है। कवि कोयल को समझाते हुए कहता है कि क्या तुम मेरी इन हथकड़ियों को देखकर दुखी हो रही हो ? अरे! यह तो ब्रिटिश शासन द्वारा हम स्वतंत्रता सेनानियों को पहनाया जाने वाला गहना है।

 

इन पंक्तियों में कवि का अपने देश के लिए प्रेम दिखाई देता है। देश की आज़ादी के लिए उसका दीवानापन स्पष्ट झलकता है। ब्रिटिश सरकार की कैद में पहनाई जाने वाली हथकड़ियों को वह अपना सम्मान समझता है। वह कोयल को अपनी दिनचर्या (दिन-भर के कामों) के बारे में बताते हुए कहता है कि जेल में हमसे कोल्हू चलवाया जाता है। उसे चलाते समय उसमें से चर्रक – चूँ की जो आवाज़ निकलती है, वह अब हमारे जीवन का संगीत बन गया है। हमसे जो पत्थर तुड़वाए जाते हैं उन पत्थरों को तोड़ने वाली गिट्टी पर हमारी उँगलियों के निशान इस तरह पड़ गए हैं जैसे कि किसी ने उन पर गानों को उकेर (लिख) दिया हो।

 

बैल के कंधे पर जुआ अर्थात् जो लकड़ी बाँधी जाती है उसे कवि अपने पेट पर बाँधकर कुएँ से पानी निकालने के लिए मोट (चमड़े की थैली, जिससे कुएँ से पानी निकाला जाता है) खींचता है और कुएँ से पानी निकालता है।

 

कवि कोयल से कहता है कि हम सब कुछ सहज भाव से करते हैं। उनके द्वारा दिए गए सारे काम चुपचाप करके हम ब्रिटिश अकड़ का कुआँ खाली करते हैं। इसका अर्थ यह है कि हम उनके अत्याचारों को सहन करते हैं, हम किसी भी प्रकार का दुख या तकलीफ़ अपने चेहरे पर नहीं आने देते जिससे ब्रिटिश सरकार के अहम् (अकड़) को चोट पहुँचती है। हम अंग्रेज़ी सरकार को यह दिखाना चाहते हैं कि वे चाहे जितने भी अत्याचार कर लें लेकिन हमारे मन से अपने देश के लिए प्रेम को वे किसी भी प्रकार कम नहीं कर सकते।

 

कवि को ऐसा लगता है कि उसे जेल में जो शारीरिक और मानसिक दुख मिल रहा है, कोयल उससे दुखी है। कवि कोयल से कहता है कि शायद दिन में तुम इसलिए नहीं कूकती कि हम तुम्हारी वेदना भरी आवाज़ सुनकर दुखी हो जाएँगे और कमज़ोर पड़ जाएँगे। इसलिए तुम रात में हमारे लिए अपना दुख प्रदर्शित कर रही हो। हे सखी! तुमसे हमारा दुख नहीं देखा जाता इसलिए दिन में तुम किसी तरह अपने दुख पर काबू पा लेती हो परंतु रात के समय तुम अपने आप को रोक नहीं पा रही हो।

 

उपरोक्त पंक्तियों में कवि ने अंग्रेज़ी शासन की जेल में कैद स्वतंत्रता सेनानियों को दी जाने वाली यंत्रणाओं का वर्णन किया है उन्हें ऊँची – ऊँची दीवारों से बनी अंधेरी कोठरी में रखा जाता है, उन्हें भरपेट खाने को नहीं मिलता, उनके साथ पशुओं – सा व्यवहार किया जाता है, यदि वे दुख से कराहते हैं तो उन्हें गालियाँ दी जाती हैं और उन पर हर समय ब्रिटिश सरकार अपनी नज़र रखे हुए है। 

 

इस शांत समय में, 

अंधकार को बेध, रो रही क्यों हो ? 

कोकिल बोलो तो! 

चुपचाप, मधुर विद्रोह-बीज 

इस भाँति बो रही क्यों हो? 

कोकिल बोलो तो!

 

व्याख्या – कवि कोयल से प्रश्न करता है कि रात के समय में जब घना अँधेरा छाया हुआ है और चारों ओर शांति है, तब कोयल अपने दुखद स्वर में क्यों गा रही है ? कवि अनुमान लगाता है कि कोयल चुपचाप से उसके मन में विद्रोह के बीज बोने आई है अर्थात् ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ उसके मन में विद्रोह जगाने आई है। कवि की हिम्मत बढ़ाने आई है। कवि सोच रहा है कि कोयल को लगता है कि कहीं ब्रिटिश शासन द्वारा दी जाने वाली यातनाओं से दुखी होकर हम जेल में कैद स्वतंत्रता सेनानी, उनके आगे घुटने न टेक दें इसलिए वह रात के समय, चुपके – से उसे ढांढस बँधाने आई है, हिम्मत देने आई है। 

 

काली तू, रजनी भी काली, 

शासन की करनी भी काली, 

काली लहर कल्पना काली, 

मेरी काल कोठरी काली, 

टोपी काली, कमली काली, 

मेरी लौह-श्रृंखला काली, 

पहरे की हुंकृति की ब्याली, 

तिस पर है गाली, ऐ आली!

 

व्याख्या – कवि कोयल से कहता है कि तेरा रंग काला है, रात भी काली है। ब्रिटिश शासन की करतूतें भी काली हैं।  इस समय हमारे आसपास जो माहौल बना हुआ है, वह भी काला है अर्थात् निराशाजनक है, सब कुछ नष्ट करने वाला बना हुआ है, जिसके कारण मेरी कल्पना, मेरे सपने भी इस कालेपन से प्रभावित हो रहे हैं अर्थात् हर समय कुछ भी गलत होने का डर बना रहता है। मैं जिस कोठरी में बंद हूँ वह भी रोशनी के अभाव में काली है, मेरी टोपी भी काली है और मेरा कंबल भी काला है। मेरी लोहे की बेड़ियाँ भी काली हैं जिनसे मुझे बाँधा गया है।

 

हे सखी! इस अँधेरे में काली सर्पिणी की फुफकार जैसी पहरेदारों की हुंकार मुझे गाली की तरह लगती है। उनकी यह हुँकार, उनकी डाँट मुझे याद दिलाती है कि मैं अपने ही देश में गुलाम हूँ, कैद में हूँ और मुझे अंग्रेज़ी सरकार के सिपाहियों द्वारा अपमानित किया जा रहा है। 

 

काला रंग सामान्य रूप से निराशा का प्रतीक है। कवि ने इन पंक्तियों में बार-बार ‘काली’ शब्द की आवृत्ति करके अपने आसपास फैले अन्याय, डर और निराशा की ओर संकेत किया है। कोयल के काले रंग को देखकर कवि को इन सभी  नकारात्मक बातों की याद आ गई है।

 

इस काले संकट-सागर पर 

मरने की, मदमाती ! 

कोकिल बोलो तो ! 

अपने चमकीले गीतों को 

क्योंकर हो तैराती ! 

कोकिल बोलो तो !

 

व्याख्या – कवि कोयल से पूछता है, हे मस्ती  से भरी कोयल! तुम इस काले संकट रूपी सागर में मरने के लिए क्यों आई हो?  कोयल बोल तो? तुम क्यों इस संकट से भरे वातावरण में अपने चमकीले गीतों को गा रही हो अर्थात् क्यों तुम स्वयं ही संकट को निमंत्रण दे रही हो ? यहाँ तुम्हारी जान को खतरा है क्योंकि यहाँ पर हर जगह अंग्रेज़ी सिपाहियों का पहरा है। 

 

तुझे मिली हरियाली डाली, 

मुझे नसीब कोठरी काली ! 

तेरा नभ- भर में संचार 

मेरा दस फुट का संसार ! 

तेरे गीत कहावें वाह, 

रोना भी है मुझे गुनाह ! 

देख विषमता तेरी-मेरी, 

बजा रही तिस पर रणभेरी !

 

व्याख्या – अपनी पराधीनता से दुखी होकर कवि को कोयल से ईर्ष्या हो रही है। कवि कोयल और कैदी के रूप में अपनी स्थिति का अंतर बताते हुए कोयल से कहता है कि तुम्हें तो हरी-भरी डाली पर रहने का सौभाग्य मिला है और मुझे रहने के लिए यह काली कोठरी मिली है।

 

तुम स्वतंत्र हो और मैं पराधीन (कैद) हूँ। तुम तो सारे आकाश में घूम सकती हो लेकिन मेरा जीवन तो इस 10 फुट की कोठरी में सीमित होकर रह गया है। तुम जब गीत गाती हो तो लोग वाह! वाह! करके तुम्हारी प्रशंसा करते हैं परंतु मुझे तो अपना दुख व्यक्त करना भी माना है, उसे अंग्रेज़ी सिपाही अपराध मान लेंगे। अपनी और मेरी स्थिति में इस अंतर को देखो। हम दोनों की स्थितियों में बहुत अधिक असमानताएँ हैं। यह जानते हुए कि अभी मैं बेड़ियों में बँधा हुआ हूँ और कैद हूँ, इसके बावजूद भी तुम मुझे ब्रिटिश शासन से युद्ध के लिए उकसा रही हो। 

 

इस हुंकृति पर,

अपनी कृति से और कहो क्या कर दूँ?

कोकिल बोलो तो !

मोहन के व्रत पर,

प्राणों का आसव किसमें भर दूँ ! 

कोकिल बोलो तो।

 

व्याख्या – अंत में कवि कोयल के जोश से भरे स्वर से प्रेरित होकर कहता है कि तुम्हारे इस जोश भरे स्वर, इस हुँकार पर मैं अपनी रचना से क्या सहयोग दे सकता हूँ? कोयल बताओ? क्या मैं गाँधी जी की देश को आज़ाद कराने की प्रतिज्ञा को पूरा करने में अपनी कविताओं, अपनी रचनाओं से देशवासियों के मन में देश के लिए प्रेम भर दूँ? जिससे सभी भारतवासी जागरूक हों और देश को आज़ादी दिलाने के लिए आगे आएँ। 

 

इन पंक्तियों में कवि ने अपनी रचनाओं की शक्ति के बारे में बताते हुए कोयल से पूछता है कि मैं अपनी रचनाओं से ऐसा क्या लिखूँ, जिससे सभी भारतवासी अपने सम्मान के लिए देश की आज़ादी की लड़ाई में भाग लें? कोयल तुम बताओ, मैं उन्हें किस प्रकार प्रोत्साहित करूँ? 

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