gram shree

Gram Shree – NCERT Class 9 Hindi Course A Kshitij ग्राम श्री

NCERT Study Material for Class 9 Hindi Kshitij Chapter - 13 Gram Shree

NCERT Study Material for Class 9 Hindi Kshitij Chapter – 13 Gram Shree (Explanation) 

हमारे ब्लॉग में आपको NCERT पाठ्यक्रम के अंतर्गत कक्षा 9 (Course A) की हिंदी पुस्तक ‘क्षितिज’ के पाठ पर आधारित प्रश्नों के सटीक उत्तर स्पष्ट एवं सरल भाषा में प्राप्त होंगे। साथ ही काव्य – खंड के अंतर्गत निहित कविताओं एवं साखियों आदि की विस्तृत व्याख्या भी दी गई है।

यहाँ NCERT HINDI Class 9 के पाठ – 13 ‘ ग्राम श्री’ की व्याख्या दी जा रही है। यह व्याख्या पाठ की विषय-वस्तु को समझने में आपकी सहायता करेगी। इसे समझने के उपरांत आप पाठ से संबंधित किसी भी प्रश्न का उत्तर सरलता से दे सकेंगे। आशा है यह सामग्री आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी।

Table of Contents

Gram Shree Summary
ग्राम श्री - सार

ग्राम श्री कविता का सार – 

‘ग्राम श्री’ जैसा कि कविता के शीर्षक से ही पता चलता है , ‘ग्राम’ का अर्थ है ‘गाँव’ और ‘श्री’ का अर्थ है ‘शोभा’ अर्थात् सुंदरता। अपनी इस कविता में कवि सुमित्रानंदन पंत जी ने गाँव के प्राकृतिक सौंदर्य का बड़ा ही सजीव चित्रण किया है।

हरे-भरे खेत, बगीचे, गंगा का तट, सभी कवि की इस रचना में जीवित हो उठे हैं। खेतों में उगी फसल ऐसी लगती है, मानो दूर-दूर तक हरे रंग की चादर बिछी हुई हो। उस पर ओस की बूँदें गिरने के बाद जब सूरज की किरणें पड़ती हैं, तो वह चाँदी की तरह चमकती है।

नए उगते हुए गेहूँ, जौ, सरसों, मटर आदि प्रकृति की सुंदरता को बढ़ा रहे हैं। आम के फूल, जामुन के फूल की सुगंध पूरे गाँव को महका रही है। गंगा के किनारे का दृश्य भी बड़ा ही मनमोहक है।

जल-थल में रहने वाले जीव अपने-अपने कार्य में लगे हुए हैं। जैसे कि बगुला नदी के किनारे मछलियाँ पकड़ते हुए खुद को सँवार रहा है। इस कविता के माध्यम से कवि ने गाँव में वसंत ऋतु के आने पर प्रकृति में होने वाले सुखद परिवर्तनों और उसके अनुपम सौंदर्य के बारे में बताया है।

Gram Shree Explanation
ग्राम श्री - व्याख्या

फैली खेतों में दूर तलक

मखमल की कोमल हरियाली,

लिपटीं जिससे रवि की किरणें

चाँदी की सी उजली जाली!

तिनकों के हरे हरे तन पर

हिल हरित रुधिर है रहा झलक,

श्यामल भू तल पर झुका हुआ

नभ का चिर निर्मल नील फलक!

प्रसंग – 

प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज‘ पाठ-13 कविता ‘ग्राम श्री‘ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता कवि सुमित्रानंदन पंत जी हैं । इस काव्यांश में कवि ने गाँव के प्राकृतिक सौंदर्य का बड़ा ही सुंदर चित्रण किया है। 

व्याख्या – 

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि सुमित्रानंदन पंत जी ने हरी-भरी धरती के प्राकृतिक सौंदर्य का बड़ा ही मनोरम चित्रण किया है। गाँव में दूर तक हरे – हरे खेत दिखाई दे रहे हैं। चारों तरफ हरियाली फैली हुई है। सुबह-सुबह कोमल घास पर पड़ी ओस की बूँदों पर जब सूर्य की किरणें पड़ती हैं, तो सारा वातावरण झिलमिल-झिलमिल चमक उठता है। ऐसा प्रतीत होता है कि खेतों की हरियाली के ऊपर चाँदी की एक जाली बिछी हुई है।

हरे – हरे तिनके जब हिलते हैं तब उनके हरे रंग के रक्त की झलक दिखाई देती है। यहाँ कवि ने तिनकों का मानवीकरण किया है। तिनकों पर ठहरी हुई ओस की बूँदे, जो पारदर्शी (transparent) होने के कारण हरे रंग की दिख रही हैं, जब तिनके हिलते हैं तो ऐसा लगता है कि उन तिनकों पर हरे रंग की ओस की बूँदे न होकर उनका रक्त (खून) है। हवा चलने पर वह रक्त तिनकों से गिर रहा है। 

साँवली मिट्टी की धरती पर नीला आकाश झुका हुआ है। कवि कहता है कि दूर से इस दृश्य को निहारने पर ऐसा प्रतीत होता है कि साँवली धरती पर हमेशा स्वच्छ (साफ़) रहने वाला, आकाश झुककर खेतों की हरियाली के ऊपर नीले रंग का आँचल बिछा रहा है।

काव्य सौंदर्य – 

1. ‘हिल हरित‘ में अनुप्रास अलंकार है।

2. ‘हरे – हरे’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। 

 3. संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।  

4 ‘तिनकों के हरे हरे तन पर‘ में मानवीकरण अलंकार है। 

रोमांचित सी लगती वसुधा

आई जौ गेहूँ में बाली,

अरहर सनई की सोने की

किंकिणियाँ हैं शोभाशाली!

उड़ती भीनी तैलाक्त गंध

फूली सरसों पीली पीली,

लो, हरित धरा से झाँक रही

नीलम की कलि, तीसी नीली!

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज‘ पाठ-13 कविता ‘ग्राम श्री‘ से ली गई है। इस कविता के रचयिता कवि सुमित्रानंदन पंत जी हैं। इस काव्यांश में कवि ने खेतों में फैली हरी-भरी फ़सलों का सुंदर वर्णन किया है।

व्याख्या – कवि कहता है कि खेतों में जौ और गेहूँ की फ़सल में बीज आ गए हैं अर्थात् जौ और गेहूँ की फ़सल पक गई है और अब वे नया अन्न देने में समर्थ है, जिसके कारण धरती बहुत अधिक प्रसन्न लग रही है। अरहर(दाल) और सनई की पकी फ़सलों पर पीले रंग के फूल सोने की करघनी जैसे लग रहे हैं, ऐसा लगता है कि धरती रूपी युवती ने कमर में करघनी पहनी हुई है और इसे पहनकर उसकी शोभा (सुंदरता) और अधिक बढ़ रही है।

सरसों के फूलों के खिल जाने से हवा में तेल युक्त गंध बह रही है। इस हरी-भरी धरती की सुंदरता को बढ़ाने के लिए,हरे खेतों में कहीं-कहीं खिले तीसी (अलसी) के नीले फूल नीलम (sapphire) रूपी रत्न के समान चमक रहे हैं। इस प्रकार खेतों में गेहूँ, जौ की बालियाँ, अरहर और सनई की फलियाँ, सरसों के पीले फूल एवं अलसी की कलियाँ धरती का सौंदर्य बढ़ा रही हैं।

काव्य सौंदर्य – 

1. ‘पीली – पीली‘ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

2. संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।

3. पूरे काव्यांश में मानवीकरण अलंकार है। 

 

रंग रंग के फूलों में रिलमिल

हँस रही सखियाँ मटर खड़ी,

मखमली पेटियों सी लटकीं

छीमियाँ, छिपाए बीज लड़ी!

फिरती है रंग रंग की तितली

रंग रंग के फूलों पर सुंदर,

फूले फिरते हों फूल स्वयं

उड़ उड़ वृंतों से वृंतों पर!

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज‘ पाठ-13 कविता ‘ग्राम श्री‘ से ली गई है। इस कविता के रचयिता कवि सुमित्रानंदन पंत जी हैं। इस काव्यांश में कवि ने मटर के खेतों, रंग-बिरंगे फूलों और तितलियों की सुंदरता का वर्णन किया है।

व्याख्या – मटर के खेतों का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि हवा चलने पर विभिन्न रंगों के फूलों के बीच खड़ी मटर की फ़सल जब हिलती है तो ऐसा लगता है जैसे सारी सखियाँ एक – दूसरे से मिलकर खुश हो रही हैं। मखमली अर्थात् कोमल संदूकों के समान मटर की फलियाँ लटकी हुई हैं जिनमें बीजों की लड़ियाँ छिपी हुई हैं।

बसंत ऋतु आने पर हर जगह सुंदर – सुंदर और रंग – बिरंगे फूल खिल उठते हैं जिन पर रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडरा रही हैं। एक फूल से दूसरे फूल तक उड़-उड़कर जा रही हैं। हवा चलने पर लहलहाते फूल ऐसे प्रतीत हो रहे हैं जैसे बसंत ऋतु के आने की खुशी में फूल अपनी प्रसन्नता व्यक्त करने के लिए स्वयं उठ – उठ कर फूलों के डंठलों से गले मिल रहे हों। इस प्रकार कवि ने रंग – बिरंगें फूलों से सुंदर प्रकृति का मानवीकरण प्रस्तुत करके बड़ा ही मनमोहक चित्रण किया है। 

काव्य – सौंदर्य – 

1. ‘फूले फिरते‘ और ‘छीमियाँ छिपाए‘ में अनुप्रास अलंकार है।

2. ‘रंग – रंग’ और ‘उड़ – उड़’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

3. संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।

4. पूरे काव्यांश में मानवीकरण अलंकार है।

 

अब रजत स्वर्ण मंजरियों से

लद गई आम्र तरु की डाली,

झर रहे ढाक, पीपल के दल,

हो उठी कोकिला मतवाली!

महके कटहल, मुकुलित जामुन,

जंगल में झरबेरी झूली,

फूले आड़ू, नीम्बू, दाड़िम

आलू, गोभी, बैगन, मूली!

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज‘ पाठ-13 कविता ‘ग्राम श्री‘ से ली गई है। इस कविता के रचयिता सुमित्रानंदन पंत जी हैं । इसमें काव्यांश में उन्होंने वसंत -ऋतु का वर्णन किया है।

व्याख्या – इन पंक्तियों में कवि ने वसंत-ऋतु का बड़ा ही सुंदर वर्णन किया है। कवि कहता है कि जाती हुई सर्दी के इस मौसम में आम के पेड़ों की डालियाँ चाँदनी और सुनहरी रंग की आम की बौर (कलियों) से लद चुकी हैं। पतझड़ के कारण ढाक और पीपल के पेड़ की पत्तियाँ झड़ रही हैं। प्रकृति में इन सुखद (सुख देने वाले) परिवर्तनों को देखकर कोयल भी मतवाली होकर मधुर संगीत सुना रही है।

कटहल पक गए हैं जिनकी महक को पूरे वातावरण में महसूस किया जा सकता है और आधे पके – आधे कच्चे जामुन तो देखते ही बनते हैं। जंगल में बेरों की झाड़ियाँ छोटे – छोटे बेरों से भर गई हैं और झूल रही हैं । इस मौसम में आड़ू, नींबू, अनार, आलू, गोभी, बैंगन, मूली आदि कई तरह के फल एवं सब्ज़ियाँ उग चुकी हैं।

काव्य सौंदर्य –  

1. ‘झरबेरी झूली‘ में अनुप्रास अलंकार है।

2. संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।

 

पीले मीठे अमरूदों में

अब लाल लाल चित्तियाँ पड़ीं,

पक गये सुनहले मधुर बेर,

अँवली से तरु की डाल जड़ी!

लहलह पालक, महमह धनिया,

लौकी औ’ सेम फलीं, फैलीं

मखमली टमाटर हुए लाल,

मिरचों की बड़ी हरी थैली!

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक क्षितिज पाठ-13 कविता ग्राम श्री से ली गई है। इस कविता के रचयिता कवि सुमित्रानंदन पंत जी हैं । इस काव्यांश में कवि ने फलों और सब्जियों के पककर तैयार होने का बहुत ही सुंदर वर्णन किया है।

व्याख्या – वसंत ऋतु आने के कारण अमरुद पीले हो गए हैं अर्थात् पक चुके हैं और उनपर लाल-लाल निशान भी दिखाई दे रहे हैं। ये इस बात का संकेत है कि अमरुद मीठे हो चुके हैं। बेर भी पककर सुनहरे रंग के हो गए हैं। छोटे-छोटे आँवले भी पकने को तैयार हैं और इनसे पूरी डाल ऐसी लदी हुई है, जैसे किसी गहने में मोती जड़े हों।

पालक की फसल पूरे खेत में लहलहा रही है और धनिये की सुगंध तो पूरे वातावरण में फैली हुई है। लौकी और सेम की बेलें भी फैल गई हैं। मखमल की तरह कोमल टमाटर पककर लाल हो गए हैं । पेड़ों पर लगी हरी मिर्चों के गुच्छे किसी बड़ी हरी थैली की तरह लग रहे हैं।

काव्य – सौंदर्य 

1. ‘फलीं फैलीं‘ में अनुप्रास अलंकार है। 

2. ‘लाल लाल‘ में पुनरुक्ति अलंकार है।

3. संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।

बालू के साँपों से अंकित

गंगा की सतरंगी रेती

सुंदर लगती सरपत छाई

तट पर तरबूजों की खेती;

अँगुली की कंघी से बगुले

कलँगी सँवारते हैं कोई,

तिरते जल में सुरखाब, पुलिन पर

मगरौठी रहती सोई!

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज‘ पाठ-13 कविता ‘ग्राम श्री‘ से ली गई है। इस कविता के रचयिता कवि सुमित्रानंदन पंत जी हैं । इस काव्यांश में कवि ने गंगा नदी के तट की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन किया है। 

व्याख्या – सुमित्रानंदन पंत जी के अनुसार, गंगा के किनारे की रेत पर पड़े लहरों के निशान इस प्रकार दिखाई दे रहे हैं जैसे कई साँप बालू पर अपने निशान छोड़ गए हों या किसी ने वहाँ साँप अंकित कर दिए हों। उस रेत पर पड़ती सूर्य की किरणों के कारण वह रेत इंद्रधनुष के रंगों के समान सात रंगों की नज़र आ रही है।

गंगा के तट पर बिछी घास और तरबूजों की खेती बहुत ही सुंदर दिखाई दे रही है। गंगा के तट पर एक टाँग पर खड़े होकर शिकार करते बगुले ऐसे लग रहे हैं जैसे एक पंजे से अपनी कलँगी सँवार रहे हों अर्थात् कंघी कर रहे हों। सुरखाब या चक्रवाक (चकवा) पक्षी जल में तैर रहे हैं और मगरौठी पक्षी गीली रेत में आराम से सोए हुए हैं।

काव्य – सौंदर्य –

1. कवि ने गंगा – तट के दृश्य का बड़ा ही सूक्ष्म चित्रण किया है। 

2. संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।

हँसमुख हरियाली हिम-आतप

सुख से अलसाए-से सोये,

भीगी अँधियाली में निशि

तारक स्वप्नों में-से खोए-

मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम-

जिस पर नीलम नभ आच्छादन-

निरुपम हिमांत में स्निग्ध शांत

निज शोभा से हरता जन मन!

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज‘ पाठ-13 कविता ‘ग्राम श्री‘ से ली गई हैं । इस कविता के रचयिता कवि सुमित्रानंदन पंत जी हैं । इस काव्यांश में कवि ने शरद ऋतु के अंतिम समय में गाँव की हरियाली, शांति और प्राकृतिक सुंदरता का बड़ा ही सजीव चित्रण किया है। 

व्याख्या – सर्दी की धूप में जब सूर्य की किरणें खेतों की हरियाली पर पड़ती हैं, तो वह इस तरह चमक उठती है, मानो वह अपनी समृद्धि से बहुत प्रसन्न है और इसी सुख के कारण वह कवि को अलसाती हुई, सुख से सोती हुए प्रतीत हो रही है। सर्दी की रातें ओस के कारण भीगी हुई जान पड़ रही हैं, जिनमें तारे मानो किसी सपने में खोये हुए लग रहे हैं।

गाँव में हर तरफ़ हरियाली फैली हुई ऐसी लग रही है जैसे हरे रंग के रत्न ‘पन्नों’ से भरा कोई डिब्बा खुल गया हो जिसे ‘नीलम’ रूपी नीले रंग के रत्न के समान नीले आकाश ने नीले रंग की चादर ओढ़ा रखी हो। इस प्रकार सर्दी के अंतिम कुछ दिनों में गाँव के वातावरण में ऐसी कोमल शांति फैली हुई है जिसकी तुलना ही नहीं की जा सकती और जो अपनी सुंदरता से सभी का मन मोह रही है।

काव्य – सौंदर्य –

1. ‘हँसमुख हरियाली हिम’ में अनुप्रास अलंकार है।

2. ‘नीलम नभ‘ में अनुप्रास अलंकार है। 

3. काव्यांश में मानवीकरण अलंकार के माध्यम से कवि ने प्रकृति का सजीव चित्र खींचा है।

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