diary ka ek panna question answer

Diary ka Ek Panna – NCERT Class 10 Hindi Course B Sparsh Ch – डायरी का एक पन्ना

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Course B Sparsh Chapter - Diary ka Ek Panna (डायरी का एक पन्ना)

हमारे ब्लॉग में आपको NCERT पाठ्यक्रम के अंतर्गत कक्षा 10 (Course B) की हिंदी पुस्तक ‘स्पर्श’ के पाठ पर आधारित प्रश्नों के सटीक उत्तर स्पष्ट एवं सरल भाषा में प्राप्त होंगे। 

यहाँ  NCERT HINDI Class 10 के पाठ – 11 डायरी का एक पन्ना (Diary ka ek panna) के पाठ्यपुस्तक के प्रश्न – उत्तर दिए गए हैं।

पाठ – डायरी का एक पन्ना (Diary Ka Ek Panna) के लेखक सीताराम सेकसरिया हैं। इन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपना योगदान दिया है। यह रवीन्द्रनाथ ठाकुर, महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के करीबी रहें। सत्याग्रह आंदोलन के दौरान जेल यात्रा भी की। कुछ साल तक आज़ाद हिंद फ़ौज के मंत्री भी रहे। भारत सरकार ने उन्हें 1962 में पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया। 

Table of Contents

Diary ka Ek Panna - डायरी का एक पन्ना
पाठ का परिचय

प्रस्तुत पाठ डायरी का एक पन्ना – Diary ka ek panna के लेखक सीताराम सेकसरिया आज़ादी की कामना करने वाले उन्हीं अनंत लोगों में से एक थे। वह दिन-प्रतिदिन जो भी देखते, सुनते और महसूस करते थे, उसे अपनी निजी डायरी में दर्ज कर लेते थे। यह क्रम कई वर्षों तक चला। इस पाठ में उनकी डायरी का 26 जनवरी 1931 का लेखाजोखा है।

Diary ka Ek Panna - डायरी का एक पन्ना
प्रश्न - उत्तर

मौखिक प्रश्न -

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक – दो पंक्तियों में दीजिए –

1. कलकत्ता वासियों के लिए 26 जनवरी 1931 का दिन क्यों महत्त्वपूर्ण था?

उत्तर – 26 जनवरी 1930 को सारे हिंदुस्तान में पहली बार स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था परंतु उस साल कलकत्ता वासियों का योगदान साधारण था। 26 जनवरी 1931 को फिर से गुलाम भारत में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया जिसके लिए कलकत्ता में काफ़ी तैयारियाँ की गईं और कलकत्ता वासियों ने भी पूरे उत्साह से भाग लिया इसलिए उनके लिए यह दिन महत्त्वपूर्ण था।

2. सुभाष बाबू के जुलूस का भार किस पर था?

उत्तर – सुभाष बाबू के जुलूस का भार पूर्णोदास पर था।

3. विद्यार्थी संघ के मंत्री अविनाश बाबू के झंडा गाड़ने पर क्या प्रतिक्रिया हुई?

उत्तर – विद्यार्थी संघ के मंत्री अविनाश बाबू के झंडा गाड़ने पर पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया तथा उनके साथ के अन्य लोगों को मारा और उस जगह से हटा दिया।

4. लोग अपने-अपने मकानों व सार्वजनिक स्थलों पर राष्ट्रीय झंडा फहराकर किस बात का संकेत देना चाहते थे?

उत्तर – लोग अपने-अपने मकानों व सार्वजनिक स्थलों पर राष्ट्रीय झंडा फहराकर अंग्रेज़ी सरकार को यह संकेत देना चाहते थे कि अब उन्हें अंग्रेज़ी शासन की गुलामी स्वीकार नहीं है। उन्होंने भारत को अंग्रेज़ी शासन से आज़ाद कराने का निश्चय कर लिया है।

5. पुलिस ने बड़े-बड़े पार्कों तथा मैदानों को क्यों घेर लिया था? 

उत्तर – स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिए पूरे कलकत्ता शहर में अनेक संघों द्वारा जन सभाएँ आयोजित करने और झंडा फहराने की योजनाएँ बनाई गई थी। पुलिस नहीं चाहती थी कि लोग एकत्र होकर पार्कों तथा मैदानों में सभा करें और राष्ट्रीय ध्वज फहराएँ इसलिए उन्होंने पार्कों तथा मैदानों को घेर लिया था।

लिखित प्रश्न -

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में ) लिखिए-

1. 26 जनवरी 1931 के दिन को अमर बनाने के लिए क्या-क्या तैयारियाँ की गईं?

उत्तर – 26 जनवरी 1931 के दिन को अमर बनाने के लिए कलकत्ता में बहुत उत्साह के साथ तैयारियाँ की गईं। बड़े बाज़ार में लगभग सभी मकानों पर राष्ट्रीय झंडा फहरा रहा था। कई मकान इतने सुंदर सजाए गए थे कि उन्हें देखकर लगता था जैसे सच में स्वतंत्रता मिल गई है। केवल प्रचार में ही दो हज़ार रुपये खर्च किए गए। अनेक स्थानों पर जुलूस निकाले गए, सभाओं के आयोजन की योजनाएँ बनाई गईं और अनेक संघों द्वारा कई जगहों पर झंडा फहराया गया।

 

2. ‘आज जो बात थी वह निराली थी’ – किस बात से पता चल रहा था कि आज का दिन अपने आप में निराला है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – 26 जनवरी के दिन कलकत्तावासी एकत्र होकर झंडा फहराने के लिए अपनी जान की भी परवाह न करते हुए जुलूस में शामिल हो रहे थे। स्त्रियों ने भी जुलूस में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। अंग्रेज़ी सरकार के कड़े प्रबंधों के बाद भी मोनुमेंट के पास हज़ारों की संख्या में लोग सभा में भाग लेने के लिए एकत्र होने लगे। कलकत्ता वासियों का अपने देश के लिए प्रेम और उत्साह, इस प्रकार पहले कभी प्रकट नहीं हुआ था इसलिए 26 जनवरी 1931 का दिन अपने-आप में निराला था।

 

3. पुलिस कमिश्नर के नोटिस और कौंसिल के नोटिस में क्या अंतर था?

उत्तर – पुलिस कमिश्नर के नोटिस में कहा गया था कि अमुक – अमुक धारा के अनुसार सभा नहीं हो सकती। जो लोग सभा में भाग लेंगे वे दोषी समझे जाएँगे। कौंसिल की तरफ़ से जो नोटिस निकला उसमें कहा गया कि मोनुमेंट के नीचे ठीक चार बजकर चौबीस मिनट पर झंडा फहराया जाएगा तथा स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी। देश की जनता से उसमें भाग लेने का आग्रह किया गया। कौंसिल के नोटिस में स्पष्ट रूप से पुलिस कमिश्नर के नोटिस की उपेक्षा की गई थी।

 

4. धर्मतल्ले के मोड़ पर आकर जुलूस क्यों टूट गया?

उत्तर – जुलूस का नेतृत्व कर रहे सुभाष बाबू को पुलिस ने पकड़ लिया और लालबाज़ार लॉकअप में भेज दिया। इसके बाद भी स्त्रियाँ जुलूस बनाकर आगे बढ़ी। उनके साथ अन्य आंदोलनकारी भी इकट्ठे हो गए थे परंतु पुलिस ने लाठी चलाना नहीं छोड़ा। अनेक आंदोलनकारी घायल हो गए और कई स्त्रियों को पकड़कर लालबाज़ार जेल भेज दिया गया। पुलिस के डंडे चलाने और लोगों की संख्या कम हो जाने के कारण धर्मतल्ले के मोड़ पर आकर जुलूस टूट गया।

 

5. डॉ० दासगुप्ता जुलूस में घायल लोगों की देख-रेख तो कर ही रहे थे, उनके फ़ोटो भी उतरवा रहे थे। उन लोगों के फ़ोटो खींचने की क्या वजह हो सकती थी? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – डॉ० दासगुप्ता जुलूस में घायल लोगों की देख-रेख कर रहे थे, साथ ही उनके फ़ोटो भी उतरवा रहे थे। इसके मुख्य रूप से दो कारण हो सकते हैं –

(i) वह अंग्रेज़ी सरकार के अत्याचारों को भारत की जनता के सामने लाकर कलकत्ता वासियों के जोश को कायम रखना चाहते थे।

(ii) कलकत्ता के नाम पर जो कलंक था कि पिछले साल आज़ादी की लड़ाई में कलकत्ता वासियों का योगदान बहुत कम था, इन फ़ोटो के द्वारा वह यह साबित करना चाहते थे कि यहाँ के लोगों ने भी आंदोलन में भाग लिया है।

 

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –

1. सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री समाज की क्या भूमिका थी?

उत्तर – सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्रियों की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण थी। पुलिस के कड़े पहरे और लाठीचार्ज के बावजूद जगह-जगह से स्त्रियाँ अपना जुलूस निकालने और मोनुमेंट के पास पहुँचने की कोशिश कर रही थी।

कौंसिल के नोटिस के अनुसार ठीक चार बजकर चौबीस मिनट पर मोनुमेंट के नीचे झंडा फहराए जाने और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ने की योजना बनाई गई थी। परंतु निश्चित समय पर मोनुमेंट के नीचे पहुँचने से पहले पुलिस ने सुभाष बाबू और उनके साथियों को रोकने के लिए उन पर लाठियाँ चलानी शुरू कर दी। तभी बड़ी संख्या में स्त्रियों ने मोनुमेंट की सीढ़ियों पर चढ़कर झंडा फहराया और घोषणा पढ़ी।

सुभाष बाबू के गिरफ़्तार होने के बाद भी विमल प्रतिभा, मदालसा जैसी अनेक सशक्त स्त्रियाँ जुलूस बनाकर आगे बढ़ती रहीं। परंतु बाद में उन सभी को पुलिस द्वारा पकड़ लिया गया। 

 

2. जुलूस के लालबाज़ार आने पर लोगों की क्या दशा हुई? 

उत्तर – जुलूस के लालबाज़ार आने पर वृजलाल गोयनका और जुलूस में शामिल लोगों को कैद कर लिया गया और उन्हें डंडों से मारा गया। पकड़े गए आदमियों की संख्या का पता नहीं चल सका लेकिन लालबाज़ार के लॉकअप में मदालसा को मिला कर 105 स्त्रियाँ कैद हुई थी। बहुत से लोग लाठीचार्ज से घायल हो गए और कई की हालत गंभीर थी। 

 

3. ‘जब से कानून भंग का काम शुरू हुआ है तब से आज तक इतनी बड़ी सभा ऐसे मैदान में नहीं की गई थी और यह सभा तो कहना चाहिए कि ओपन लड़ाई थी।’ यहाँ पर कौन से और किसके द्वारा लागू किए गए कानून को भंग करने की बात कही गई है? क्या कानून भंग करना उचित था? पाठ के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।

उत्तर – यहाँ अंग्रेज़ी सरकार के अधीन पुलिस कमिश्नर द्वारा लागू किए गए कानून को भंग करने की बात कही गई है जिसके अनुसार 26 जनवरी के दिन किसी भी सभा का आयोजन नहीं किया जाएगा।

यह कानून भारतीय स्वतंत्रता के विरुद्ध था। ब्रिटिश सरकार भारत को ‘पूर्ण स्वराज’ देने के पक्ष में नहीं थी और भारत को अपना गुलाम बनाए रखना चाहती थी इसलिए उसने भारतवासियों को बड़ी संख्या में एकत्र होकर सभाएँ करने और देश की आज़ादी के लिए मर-मिटने के उनके उत्साह को अपने कानून के द्वारा दबाने का प्रयास किया। अंग्रेज़ों का यह कानून नैतिक रूप से गलत है इसलिए ऐसे कानून को भंग करना जो नैतिकता के विरुद्ध हो, मेरे विचार में उचित है। 

 

4. बहुत से लोग घायल हुए, बहुतों को लॉकअप में रखा गया, बहुत-सी स्त्रियाँ जेल गई, फिर भी इस दिन को अपूर्व बताया गया है। आपके विचार में यह सब अपूर्व क्यों है? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – अंग्रेज़ों से पूर्ण स्वराज की माँग करते हुए 26 जनवरी 1930 में पहली बार गुलाम भारत में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया परंतु लेखक ने 26 जनवरी 1931 के दिन को अपूर्व बताया है क्योंकि इस बार कलकत्तावासियों को देश के लिए अपने प्रेम और साहस को सिद्ध करने का अवसर मिला था।

अंग्रेज़ी सरकार को यह बताने के लिए कि अब भारतवासी उनकी गुलामी स्वीकार नहीं करेंगे, कलकत्ता की जनता ने उनके आदेश के विरुद्ध जाकर तिरंगा झंडा फहराने की योजना बनाई। पुलिस के कड़े प्रबंधों के बावजूद उनकी लाठियों से घायल होकर भी देशभक्तों का उत्साह कम नहीं हुआ। उन्होंने बड़ी संख्या में एकत्र होकर जुलूस निकाले।

अंग्रेज़ों के कानून को तोड़ने का परिणाम जेल की कैद है, यह जानते हुए भी आदमियों के साथ – साथ बड़ी संख्या में स्त्रियों ने भी झंडा फहराने और प्रतिज्ञा पढ़ने के अपने संकल्प को पूरा किया। अंग्रेज़ी शासन के खिलाफ़ इतनी बड़ी संख्या में इससे पूर्व ऐसा विद्रोह नहीं जताया गया था इसलिए लेखक ने इसे अपूर्व कहा है। 

 

(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए – 

1. आज तो जो कुछ हुआ वह अपूर्व हुआ है। बंगाल के नाम पर कलंक था कि यहाँ काम नहीं हो रहा है वह आज बहुत अंश में धुल गया। 

उत्तर – बंगाल तथा कलकत्ता लोगों के विषय में यह कहा जाता था कि वे देश के स्वतंत्रता संग्राम में कोई योगदान नहीं दे रहे हैं। 26 जनवरी 1931 के दिन उन्होंने दिखा दिया कि देश को स्वतंत्र कराने में वे भी पीछे नहीं हैं। उस दिन कलकत्ता की स्त्रियों और पुरुषों ने अंग्रेज़ी सरकार के विरुद्ध जाकर जैसा प्रदर्शन किया, वैसा आंदोलन बंगाल में पहले कभी नहीं हुआ था। 

 

2. खुला चैलेंज देकर ऐसी सभा पहले नहीं की गई थी। 

उत्तर – अंग्रेज़ी सरकार यह चाहती थी कि 26 जनवरी 1931 के दिन कलकत्ता में स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिए किसी भी प्रकार की गतिविधि न हो पाए इसलिए पुलिस कमिश्नर ने यह नोटिस निकाला कि उस दिन कोई भी सभा नहीं की जाएगी। सभा में भाग लेने वालों को अपराधी समझा जाएगा।

इस नोटिस के विरुद्ध कौंसिल ने भी एक नोटिस निकाला जिसमें 26 जनवरी को मोनुमेंट के नीचे झंडा फहराने और सभा आयोजित करके स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ने की सूचना दी गई थी।

इस प्रकार अंग्रेज़ी शासन को खुली चुनौती दी गई थी कि यदि वह आंदोलनकारियों को रोक सकती है तो रोक कर दिखा दे। अंग्रेज़ी सरकार को ऐसी खुली चुनौती इससे पहले कभी नहीं दी गई थी। 

Diary ka Ek Panna - डायरी का एक पन्ना
पाठ में प्रयुक्त मुहावरे

1. रंग दिखाना – असली प्रभाव दिखाना / असली रूप दिखाना। 

2. ठंडा पड़ना – ढीला पड़ना / नरम होना। 

3. टूट जाना – बिखर जाना / निराश होना। 

4. अलख जगाना – मन में भाव जगाना (उत्पन्न करना) 

5. ज़ुल्म ढाना – अत्याचार करना। 

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