confusing words in hindi

Confusing words in hindi – भ्रमित करने वाले समान शब्द

Confusing words in Hindi

हिंदी भाषा में अनेक ऐसे शब्द हैं जो दिखने में लगभग समान होते हैं या उनका उच्चारण एक जैसा होता है अथवा भिन्न वर्तनी (spelling) अर्थात् अलग-अलग तरह से लिखे जाने के बाद भी उनके अर्थ के विषय में भ्रम (confusion) रहता है।

हिंदी वर्तनी के अशुद्ध प्रयोग को कम करने के उद्देश्य से हम अपने ब्लॉग में ऐसे ही कुछ शब्दों पर चर्चा करेंगे जो पूर्ण ज्ञान के अभाव में हमें भ्रमित करते हैं। 

शब्दकोश - शब्दकोष में अंतर 

भ्रम उत्पन्न करने वाला पहला शब्द युग्म है – शब्दकोश तथा शब्दकोष। दोनों का उच्चारण समान होने के कारण अक्सर लोग इन्हें एक – दूसरे का समानार्थी (पर्याय) मान लेते हैं परंतु ऐसा नहीं है। 

वर्णों की मेल से बनी सार्थक ध्वनियों को शब्द कहते हैं। अतः हम सभी जानते हैं कि निश्चित अर्थ को प्रकट करने वाला वर्ण समूह ‘शब्द’ कहलाता है। दोनों शब्दों – शब्दकोश और शब्दकोष में मूल अंतर ‘कोश’ और ‘कोष’ का है। इन्हीं शब्दों के कारण ये दोनों शब्द अलग-अलग अर्थों के लिए प्रयुक्त किए जाने चाहिए। दुर्भाग्यवश पूर्ण ज्ञान के अभाव में इनका प्रयोग एक – दूसरे के स्थान पर किया जाता है। संभव है कि शब्दकोश शब्द शब्दकोष का तद्भव रूप हो परंतु वर्तमान समय में ये शब्द अपने अलग-अलग अर्थों के लिए रूढ़ हो गए हैं। 

शब्दकोश (Dictionary) – 

शब्दकोश उस ग्रंथ या पुस्तक को कहते हैं जिसमें किसी भाषा के शब्दों को, उस भाषा के अक्षरक्रम (वर्णमाला के क्रम) में संग्रहित किया जाता है। ग्रंथ के सभी शब्दों को उनकी परिभाषा, अर्थ, उच्चारण, व्युत्पत्ति (उत्पत्ति), व्याकरण निर्देश और प्रयोग के साथ सूचीबद्ध किया जाता है। 

शब्दकोष (Vocabulary) – 

शब्दकोष का अर्थ है – शब्दों का भंडार या खज़ाना अर्थात् किसी भाषा विशेष में प्रयोग किए जाने वाले शब्दों का समूह। 

अतः हम कह सकते हैं कि शब्दकोश (ग्रंथ) में शब्दकोष (शब्दों के भंडार) को उनके अर्थ, स्रोत आदि की जानकारी के साथ संग्रहित किया जाता है। 

इन्हीं से मिलता-जुलता एक और शब्द है – शब्दावली।

शब्दावली (Glossary) – 

शब्दावली का अर्थ है किसी क्षेत्र या ज्ञान विशेष से संबंधित शब्दों की सूची, जिसका प्रयोग उस विषय अथवा भाषा को बोलने और लिखने में किया गया है। सामान्यतः शब्दावली पुस्तक के अंत में होती है जो उन शब्दों की परिभाषाओं के साथ सूचीबद्ध की जाती है।

आमंत्रण - निमंत्रण में अंतर 

आमंत्रण और निमंत्रण दोनों का अर्थ भी समान समझ लिया जाता है परंतु इनमें भी अंतर है। यद्यपि आमंत्रण और निमंत्रण दोनों ही शब्द बुलावे के लिए प्रयुक्त होते हैं परंतु एक के स्थान पर दूसरे शब्द का प्रयोग अनुचित है। 

कुछ विद्वानों का मानना है कि आमंत्रण और निमंत्रण दोनों में काल और क्रिया की मुख्य भूमिका होती है। वर्तमान में घट रही घटना एवं समारोह में शामिल होने के लिए दिया जाने वाला बुलावा आमंत्रण कहा जाता है। अतिथि अथवा विशेष व्यक्ति, घटना की जगह पर पहले से ही उपस्थित हो, जैसे – मुख्य अतिथि को मंच पर आने का आमंत्रण देना। 

निमंत्रण भविष्य की घटना एवं समारोह में शामिल होने के बुलावे को कहा जाता है। निमंत्रण में समय निर्धारित होता है। जो समय दिया जाता है, अतिथि को उसी में आने की प्रार्थना की जाती है, जैसे – घर के विशेष समारोह में अपने मित्र को निमंत्रण देना। 

निमंत्रण – 

किसी व्यक्ति को अपने यहाँ विशेष अवसर पर, जैसे – विवाह समारोह, जन्मदिन आदि पर भोजन के लिए बुलाना निमंत्रण कहलाता है। निमंत्रण में मेल – मिलाप, लोक – व्यवहार की प्रधानता रहती है। 

आमंत्रण – 

किसी अवसर पर सम्मानित होने की प्रार्थना करना, जैसे – किसी को भाषण देने तथा सभा में उपस्थित होने के लिए बुलाना आमंत्रण कहलाता है। मंत्रियों, कवियों, लेखकों को समारोह अथवा सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजनों में बोलने या सुनने अर्थात् वक्ता या श्रोता के रूप में उपस्थित होने के लिए आमंत्रित किया जाता है। आमंत्रण से व्यक्ति की प्रतिष्ठा जुड़ी होती है

स्पष्ट रूप में कहा जाए तो आमंत्रण औपचारिक (Formal) बुलावा होता है और निमंत्रण अनौपचारिक (Informal) ।

स्रोत्र, स्तोत्र और स्त्रोत में अंतर 

ये तीन शब्द एक – दूसरे से काफ़ी मिलते-जुलते हैं। सामान्यतः लोग भ्रम के कारण अथवा पूर्ण ज्ञान के अभाव में इनका गलत उच्चारण करते हैं और एक के स्थान पर दूसरे का प्रयोग करते हैं। 

मुख्यतः स्रोत और स्त्रोत के बीच, भ्रम के कारण लोग भूल करते हैं। ध्यान से देखने पर इन दोनों शब्दों में मूल अंतर ज्ञात होता है। 

यदि हम इनके वर्ण – संयोजन की बात करें तो स्रोत्र = (स् + र् + ओ +त् + अ) इन वर्णों के संयोग से मिलकर बना है। 

स्त्रोत = (स् + त् + र् + ओ + त् + अ) इन वर्णों के संयोग से मिलकर बना है। 

अतः यह स्पष्ट है कि लिखने के रूप में दोनों शब्दों में अंतर है। अब बात करते हैं इनके अर्थ और वर्तनी की शुद्धता की। 

स्रोत्र  स्रोत्र का अर्थ होता है – साधन या उद्गम अर्थात् मूल स्थान जहाँ से किसी की प्राप्ति होती है, जैसी – नदी का स्रोत, आय का स्रोत, शब्द का स्रोत आदि। अंग्रेज़ी के शब्द Source और Origin के लिए इस शब्द का प्रयोग किया जाता है। 

साथ ही झरना और पानी का बहाव के लिए भी संस्कृत शब्द स्रोत का प्रयोग होता है। 

स्त्रोत – स्त्रोत शब्द स्रोत का ही एक लोक प्रचलित रूप है किंतु इस शब्द का कोई अर्थ नहीं है। यह एक निरर्थक शब्द है। 

एक अन्य शब्द स्तोत्र के लिए भी स्त्रोत शब्द का प्रयोग देखने को मिलता है। 

स्तोत्र – स्तोत्र शब्द (स् + त् + ओ + त् + र् + अ) वर्णों के मेल से बना है। संस्कृत साहित्य में देवी-देवताओं की स्तुति (प्रशंसा) में लिखे गए काव्य को स्तोत्र कहा जाता है, जैसे – शिव तांडव स्तोत्र, श्री राम रक्षा स्तोत्रम्, सूर्य स्तोत्र आदि। 

अतः स्रोत और स्तोत्र दोनों शुद्ध वर्तनी वाले शब्द हैं। इनके अलग-अलग अर्थ ऊपर दिए गए हैं। स्त्रोत अशुद्ध वर्तनी है।  भ्रमवश अक्सर यह शब्द (स्त्रोत) दोनों शब्दों (स्रोत तथा स्तोत्र) के लिए लोगों द्वारा प्रयोग में लाया जाता है। 

सहस्र और सहस्त्र में अंतर 

इसी प्रकार सहस्र और सहस्त्र शब्दों में भ्रम बना रहता है। 

सहस्त्र शब्द का अर्थ है – हज़ार (10 सौ)। 

सहस्त्र शब्द संस्कृत और हिंदी भाषा में है ही नहीं परंतु अनेक स्थलों पर सहस्र के स्थान पर सहस्त्र का प्रयोग किया जाता है। इंटरनेट पर, यहाँ तक कि अनेक शब्दकोशों में भी सहस्त्र शब्द मिलता है। 

शायद हिंदी में अस्त्र, शस्त्र, स्त्री, वस्त्र आदि प्रचलित शब्दों के कारण ‘स्र’ वाले शब्दों को अशुद्ध लिखा जाने लगा होगा। 

निष्कर्षतः ‘स्र’ संयुक्त अक्षर वाले शब्द जैसे – स्राव (बहाव), हिंस्र (हिंसक), स्रावित (छिपने के स्थान पर जमा करना), मिस्र (एक देश का नाम – Egypt) बहुत कम हैं इसलिए भ्रम के कारण स्रोत का स्त्रोत और सहस्र का सहस्त्र हो गया। 

आशा है उपरोक्त जानकारी आपके लिए लाभप्रद होगी। आप अपने विचार कॉमेंट बॉक्स में लिखकर हमारे साथ साझा कर सकते हैं। आपके सुझावों का सदैव स्वागत है। 

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