Parvat pradesh mein pavas - green mountains scenery

Parvat Pradesh mein Pavas – NCERT Class 10 Hindi Course B Sparsh Ch – पर्वत प्रदेश में पावस

NCERT Study Material for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 5 - Parvat Pradesh mein Pavas ( पर्वत प्रदेश में पावस )
Composed by Sumitra Nandan Pant

हमारे ब्लॉग में आपको NCERT पाठ्यक्रम के अंतर्गत कक्षा 10 (Course B) की हिंदी पुस्तक ‘स्पर्श’ के पाठ पर आधारित प्रश्नों के सटीक उत्तर स्पष्ट एवं सरल भाषा में प्राप्त होंगे। साथ ही काव्य – खंड के अंतर्गत निहित कविताओं एवं साखियों आदि की विस्तृत व्याख्या भी दी गई है।

हाँ NCERT HINDI Class 10 के पाठ – 5  कविता – ‘पर्वत प्रदेश में पावस’की व्याख्या दी जा रही है। यह कविता कवि सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित है। 

यह व्याख्या पाठ की विषय-वस्तु को समझने में आपकी सहायता करेगी। इसे समझने के उपरांत आप पाठ से संबंधित किसी भी प्रश्न का उत्तर सरलता से दे सकेंगे। आशा है यह सामग्री आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी।

Table of Contents

Parvat Pradesh mein Pavas - पर्वत प्रदेश में पावस शब्दार्थ एवं व्याख्या

पावस ऋतु थी, पर्वत प्रदेश,

पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश।

मेखलाकर पर्वत अपार

अपने सहस्‍त्र दृग-सुमन फाड़,

अवलोक रहा है बार-बार

नीचे जल में निज महाकार,

-जिसके चरणों में पला ताल

दर्पण – सा फैला है विशाल!

शब्दार्थ – 

  • पावस ऋतु – वर्षा ऋतु 
  • प्रकृति – वेश – प्रकृति का रूप 
  • मेखलाकार – करघनी (कमर में पहनने वाला आभूषण) के आकार की पहाड़ की ढाल
  • सहस्र – हज़ार 
  • दृग – सुमन – पुष्प रूपी आँखें 
  • फाड़ – आश्चर्य से बड़ी करके
  • अवलोक – देखना
  • निज – अपना
  • महाकार – विशाल (बड़ा) आकार 
  • ताल – तालाब
  • दर्पण – शीशा

प्रसंग – 

प्रस्तुत काव्यांश हिंदी पाठ्यपुस्तक स्पर्श की कविता ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ से लिया गया है। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत जी हैं। इन पंक्तियों में कवि ने वर्षा ऋतु में पर्वतीय स्थल के प्राकृतिक सौंदर्य का अत्यंत सुंदर वर्णन किया है। 

व्याख्या –

कवि कहता है कि पर्वतीय प्रदेश में वर्षा ऋतु के समय प्रकृति का रूप प्रति पल (थोड़ी – थोड़ी देर में) बदलता रहता है। कभी तेज़ बारिश होती है तो कभी घने बादल पर्वतों को ढक लेते हैं।

 काव्यांश में कवि ने पर्वत की ढाल को मेखला अर्थात् करघनी (कमर में पहनने वाला आभूषण) के समान बताया है। कवि कहता है कि करघनी के आकार की सीमाहीन पर्वत श्रृंखला दूर तक फैली हुई है अर्थात् दूर – दूर तक पहाड़ दिखाई दे रहे हैं। उन पहाड़ों पर लगे हज़ारों पुष्प ऐसे प्रतीत हो रहे हैं मानो वे पहाड़ों की हज़ारों आँखें हैं। अपनी इन आँखों को आश्चर्य से बड़ा करके पहाड़, अपने तल में बने तालाब के साफ़ और पारदर्शी जल रूपी दर्पण में अपना विशाल (बड़ा – सा) प्रतिबिंब देकर गर्वित हो रहे हैं। 

काव्य – सौंदर्य – 

1. प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने प्रकृति का मानवीकरण करके, प्रकृति को मानव के समान क्रियाएँ करते हुए दिखाया है। कवि ने ‘आँखें फाड़कर देखने का सजीव चित्र खींचा है। 

2.      (i) ‘पर्वत प्रदेश’ में अनुप्रास अलंकार है। 

(ii) ‘दृग-सुमन’ में रूपक अलंकार है।

(iii) ‘पल-पल’ एवं ‘बार-बार’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

(iv) ‘दर्पण – सा’ में उपमा अलंकार है। 

3. भाषा में तत्सम शब्दों का प्रयोग किया गया है। 

4. कवि ने चित्रात्मक शैली का प्रयोग किया है। 

parvat pradesh mein pavas - rainfall

गिरि का गौरव गाकर झर-झर

मद में लनस-नस उत्‍तेजित कर 

मोती की लडि़यों सी सुन्‍दर

झरते हैं झाग भरे निर्झर!

गिरिवर के उर से उठ-उठ कर

उच्‍चाकांक्षाओं से तरुवर

है झॉंक रहे नीरव नभ पर

अनिमेष, अटल, कुछ चिंता पर।

शब्दार्थ – 

  • गिरि – पर्वत 
  • गौरव – यश (बढ़ाई) 
  • मद – मस्ती (आनंद) 
  • उत्तेजित – उत्साहित 
  • निर्झर – झरना
  • गिरिवर – पर्वत 
  • उर – हृदय 
  • उच्चाकांक्षा – ऊँचा उठने की कामना 
  • तरुवर – पेड़
  • नीरव नभ – शांत आकाश
  • अनिमेष – एकटक देखना
  • अटल – स्थिर (बिना हिले डुले) 
  • चिंतापर – चिंता में डूबा हुआ  

प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हिंदी पाठ्यपुस्तक स्पर्श की कविता ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ से लिया गया है। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत जी हैं। इन पंक्तियों में कवि ने पर्वतीय प्रदेश का सौंदर्य बढ़ाने वाले झरनों एवं वृक्षों का वर्णन किया है।

व्याख्या – कवि कहता है कि पर्वतों से गिरने वाले झरनों की झर – झर आवाज़ ऐसी प्रतीत  हो रही है मानो वे पर्वतों के यश का गुणगान कर रहे हों। पर्वतों से तेज़ गति से गिरने के कारण इन झरनों की ध्वनि नस-नस में उत्साह भरकर आनंद प्रदान कर रही है। सफ़ेद और चमकीले मोतियों की लड़ियों की समान सुंदर दिखाई देने वाला झरनों का जल ऊँचाई से गिरने के कारण झाग से भरा हुआ प्रतीत हो रहा है। 

पर्वतों पर स्थित ऊँचे – ऊँचे वृक्ष शांत आकाश की ओर देखते हुए स्थिर (बिना हिले डुले) खड़े हुए ऐसे प्रतीत हो रहे हैं मानो वह किसी चिंता में डूबे हुए हों। आकाश की ओर एक टक देखते ये वृक्ष, मानव मन में उठने वाली ऊँची – ऊँची आकांक्षाओं के समान हैं जो शांत भाव से एक टक अपने लक्ष्य की ओर देखते हुए ऊँचे उठने की प्रेरणा देते हुए प्रतीत हो रहे हैं। 

काव्य – सौंदर्य – 

1. कवि ने प्रकृति के मानवीकरण का सुंदर और सजीव चित्र खींचा है। 

2. (i) ‘गौरव गाकर’, ‘अनिमेष, अटल’ में अनुप्रास अलंकार है। 

(ii) ‘झर-झर’, ‘नस-नस’, ‘उठ-उठ’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है। 

(iii) ‘उच्चाकांक्षाओं से तरुवर’ में उपमा अलंकार है। 

3. भाषा में तत्सम शब्दों का प्रयोग किया गया है। 

4. कवि ने चित्रात्मक शैली का प्रयोग किया है। 

उड़ गया, अचानक लो, भूधर

फड़का अपार वारिद के पर!     
रव-शेष रह गए हैं निर्झर!

है टूट पड़ा भू पर अंबर!

धँस गए धरा में सभय शाल!

उठ रहा धुऑं, जल गया ताल!

-यों जलद-यान में विचर-विचर

था इंद्र खेलता इंद्रजाल

शब्दार्थ – 

  • भूधर – पहाड़ 
  • पारद के पर – पारे के समान सफ़ेद एवं चमकीले पंख
  • रव – शेष – शांत वातावरण में केवल आवाज़ सुनाई देना
  • सभय – भय के साथ 
  • शाल – एक वृक्ष का नाम 
  • ताल – तालाब 
  • जलद – यान – बादल रूपी विमान 
  • विचर – विचर – घूमते – घूमते 
  • इंद्रजाल – जादूगरी 

प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हिंदी पाठ्यपुस्तक स्पर्श की कविता ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ से लिया गया है। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत जी हैं। इस काव्यांश में कवि ने वर्षा ऋतु के कारण पर्वतीय क्षेत्र में हो रहे अद्भुत एवं सुंदर परिवर्तनों का सजीव चित्र खींचा है। 

व्याख्या – इस काव्यांश में कवि उसे समय का चित्रण कर रहा है जब वर्षा के कारण पर्वतीय प्रदेश का तापमान बहुत कम हो गया है। इस कारण चारों ओर घनी धुंध (कोहरा) फैली हुई है। धुंध के कारण कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा। कवि कहता है कि बिजली कड़कने के बाद इस स्थल पर जो पर्वत थे, वे अब दिखाई नहीं दे रहे। ऐसा प्रतीत होता है मानो पारे के समान सफ़ेद और चमकीली बिजली रूपी पंखों को फड़फड़ा कर वे पर्वत अचानक कहीं उड़ गए हों। 

धुंध के कारण कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा। केवल झरनों की आवाज़ सुनाई दे रही है। ऐसा लगता है मानो आकाश वर्षा रूपी बाणों (तीरों) से धरती पर आक्रमण कर रहा हो, धरती पर टूट पड़ा हो। 

प्रकृति का ऐसा भयानक रूप देखकर शाल के ऊँचे पेड़ भी डर के कारण धरती के अंदर धँस गए हैं। झरनों का ठंडा पानी तालाब में गिर रहा है। तापमान कम होने के कारण धुंध बढ़ रही है और ऐसा लग रहा है कि तालाब में आग लग गई है और वहाँ से धुआँ उठ रहा है। कवि कहता है कि इस दृश्य को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इस ऋतु में वर्षा के देवता इंद्र बादल रूपी विमान पर चढ़कर, आकाश में घूम- घूम कर जादू का कोई खेल दिखा रहे हैं जिस कारण प्रकृति हर पल अलग-अलग सुंदर रूपों में बदल रही है।

काव्य – सौंदर्य –

1. कवि ने प्रकृति के मानवीकरण का सुंदर और सजीव चित्र खींचा है।

2. (i) ‘जलद – यान’ में रूपक अलंकार है

(ii) ‘विचर – विचर’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है। 

3. भाषा में तत्सम शब्दों का प्रयोग किया गया है। 

  • 4. कवि ने चित्रात्मक शैली का प्रयोग किया है।

Parvat Pradesh mein Pavas - पर्वत प्रदेश में पावस
कविता का सार

‘पर्वत प्रदेश में पावस’ सुमित्रानंदन पंत जी द्वारा रचित प्राकृतिक सौंदर्य पर आधारित, बहुत ही सुंदर कविता है। इस कविता में कवि ने वर्षा ऋतु में पर्वतीय स्थल के प्राकृतिक सौंदर्य का बड़ा ही सजीव चित्रण किया है। पर्वत प्रदेश में वर्षा ऋतु के समय प्रकृति का रूप हर पल बदलता रहता है। कभी तेज़ बारिश होती है तो कभी घने बादल और धुंध, पर्वतों को ढक लेते हैं। 

कवि ने श्रृंखला में बँधे (एक साथ खड़े) पहाड़ों की ढाल की तुलना मेखला अर्थात् करधनी (कमर में पहने जाने वाला स्त्रियों का एक आभूषण) से की है। कवि ने अपनी अद्भुत कल्पना शक्ति के द्वारा कविता में अनेक बिंब (चित्र) खींचे हैं। कवि कहता है कि पर्वतों के तल (पैरों) में जो तालाब है उसका जल इतना स्वच्छ और पारदर्शी है कि उसमें पहाड़ों का प्रतिबिंब दिखाई दे रहा है। ऐसा लगता है कि पहाड़ों पर खिले हुए हज़ारों फूल, पहाड़ों की हज़ारों आँखें हैं जिनसे वे उस तालाब के जल में अपना प्रतिबिंब देखकर गर्वित (निहाल) हो रहे हैं। 

 इसके बाद कवि पर्वतीय प्रदेश के झरनों का वर्णन करते हुए लिखता है कि झरनों के पानी की ध्वनि, पर्वत प्रदेश में ऐसी प्रतीत हो रही है मानो वे पर्वतों के गौरव (यश) का गुणगान कर रहे हों और इन झरनों की ध्वनि नस-नस में उत्साह भरने वाली और आनंद देने वाली है। सफ़ेद और चमकीले मोतियों की लड़ियों की समान सुंदर दिखाई देने वाला झरनों का जल ऊँचाई से गिरने के कारण झाग से भरा हुआ प्रतीत हो रहा है।

पर्वतों पर स्थित ऊँचे – ऊँचे वृक्ष शांत आकाश की ओर देखते हुए स्थिर (बिना हिले डुले) खड़े हुए ऐसे प्रतीत हो रहे हैं मानो वह किसी चिंता में डूबे हुए हों। आकाश की ओर एक टक देखते ये वृक्ष, मानव मन में उठने वाली ऊँची – ऊँची आकांक्षाओं के समान हैं, जो शांत भाव से एक टक, निरंतर अपने लक्ष्य की ओर देखते हुए हमें ऊँचे उठने की प्रेरणा देते हुए प्रतीत हो रहे हैं। 

इसके बाद कवि ने उस समय का चित्रण किया है जब वर्षा के कारण पर्वतीय प्रदेश का तापमान बहुत कम हो गया है। इस कारण चारों ओर घनी धुंध (कोहरा) फैली हुई है। धुंध के कारण कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा। कवि कहता है कि बिजली कड़कने के बाद इस स्थल पर जो पर्वत थे, वे अब दिखाई नहीं दे रहे। ऐसा प्रतीत होता है मानो पारे के समान सफ़ेद और चमकीली बिजली रूपी पंखों को फड़फड़ा कर वे पर्वत अचानक कहीं उड़ गए हों। 

धुंध के कारण कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा। केवल झरनों की आवाज़ सुनाई दे रही है। ऐसा लगता है मानो आकाश वर्षा रूपी बाणों (तीरों) से धरती पर आक्रमण कर रहा हो, धरती पर टूट पड़ा हो। 

प्रकृति का ऐसा भयानक रूप देखकर शाल के ऊँचे पेड़ भी डर के कारण धरती के अंदर धंस गए हैं। झरनों का ठंडा पानी तालाब में गिर रहा है। तापमान कम होने के कारण धुंध बढ़ रही है और ऐसा लग रहा है कि तालाब में आग लग गई है और वहाँ से धुआँ उठ रहा है। कवि कहता है कि इस दृश्य को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इस ऋतु में वर्षा के देवता इंद्र बादल रूपी विमान पर चढ़कर, आकाश में घूम- घूम कर जादू का कोई खेल दिखा रहे हैं जिस कारण प्रकृति हर पल अलग-अलग सुंदर रूपों में बदल रही है।

पर्वत प्रदेश में पावस के कवि
सुमित्रानंदन पंत जी की भाषा शैली

  • कविता पर्वत प्रदेश में पावस में पंत जी ने सदैव की भांति प्रकृति के सौंदर्य का सजीव चित्रण किया है। इस कविता को पढ़ते हुए ऐसा अनुभव होता है कि हम प्रकृति के सौंदर्य को अपनी आँखों से निहार रहे हैं।
  • अपनी कविता के विषय को पंत जी ने अनेक उपमाओं से सँवारा है। जैसे – उच्‍चाकांक्षाओं से तरुवर, मोती की लड़ियों-से सुन्‍दर। 
  • पंत जी की कविताओं में संस्कृतनिष्ठ अर्थात् तत्सम शब्दों का प्रयोग अधिक होता है। इस कविता में भी संस्कृत के शब्द जैसे मेखलाकार अवलोक, दृग, आदि भाषा की सुंदरता को बढ़ा रहे हैं। 
  • कविता में पंत जी ने प्रकृति को मानव की तरह क्रियाएँ करते हुए चित्रित किया है इसलिए पूरी कविता में मानवीकरण अलंकार है।
  • इसके अतिरिक्त कविता में रूपक, उपमा, अनुप्रास और पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार भी कविता के सौंदर्य में वृद्धि कर रहे हैं।
  • मधुर और कोमल शब्दों के साथ – साथ चित्रात्मकता भी इस कविता की एक मुख्य विशेषता है। 

विद्यार्थियों से अनुरोध है कि वे दी गई पाठ्य सामग्री को ध्यानपूर्वक पढ़ें, समझें एवं आत्मसात करें जिससे वे परीक्षा में दिए जाने वाले सभी प्रकार के प्रश्नों का उत्तर, सुगमता से लिख सकें। 

आप कॉमेंट बॉक्स में अपने विचार हमारे साथ साझा कर सकते हैं।  

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