ginni ka sona

Ginni ka Sona – NCERT Class 10 Hindi B Sparsh गिन्नी का सोना

NCERT Study Material for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 6 - 'Patjhad Mein Tooti Pattiyan - Ginni ka Sona'

हमारे ब्लॉग में आपको NCERT पाठ्यक्रम के अंतर्गत कक्षा 10 (Course B) की हिंदी पुस्तक ‘स्पर्श’ के पाठ पर आधारित प्रश्नों के सटीक उत्तर स्पष्ट एवं सरल भाषा में प्राप्त होंगे। 

यहाँ NCERT Class 10 Hindi के पाठ – 16 पतझर में टूटी पत्तियाँ – गिन्नी का सोना (Ginni ka Sona) के मुख्य बिंदु दिए गए हैं जो पूरे पाठ की विषय वस्तु को समझने में सहायक सिद्ध होंगे। 

Table of Contents

Ginni ka Sona Notes/Summary
गिन्नी का सोना सहायक सामग्री

पाठ के लेखक हैं – रवींद्र केलेकर

लेखक ने पाठ के आरंभ में शुद्ध सोने और गिन्नी के सोने के बारे में बताया है। 

 

शुद्ध सोने और गिन्नी के सोने में अंतर – 

 

शुद्ध सोना 24 कैरेट का होता है, जिसमें कोई मिलावट नहीं होती है। 

गिन्नी का सोना शुद्ध नहीं होता। उसमें ताँबा मिला होता है। ताँबे की मिलावट के कारण वह चमकदार हो जाता है और उसकी मज़बूती बढ़ जाती है। 

शुद्ध सोना कोमल होता है इसलिए उसके गहने नहीं बन सकते हैं। उसे कुछ कठोरता देने के लिए उसमें ताँबा में मिलाया जाता है। गिन्नी के सोने में ताँबा मिला हुआ होता है इसलिए औरतें गिन्नी के सोने का प्रयोग गहने बनवाने में करती हैं लेकिन शुद्ध सोना, शुद्ध सोना ही होता है और मिलावटी सोना, मिलावटी अर्थात् उसमें पूरी शुद्धता नहीं होती है। 

 

लेखक ने शुद्ध सोने और गिन्नी के सोने के प्रतीकों के माध्यम से शुद्ध आदर्श और व्यावहारिक जीवन के अंतर को समझाने का प्रयास किया है। 

 

इसके बाद लेखक ने तीन प्रकार के व्यक्तियों की बात की है –

 

आदर्शवादी – आदर्शवादी व्यक्ति अपने जीवन में आदर्शों अर्थात् उच्च मूल्यों (values) को अपनाकर चलते हैं। वे लाभ – हानि के बारे में नहीं सोचते। वे स्वार्थी नहीं होते हैं और वे जो भी कार्य करते हैं, उससे समाज का स्तर ऊँचा उठता है।

कैसे? 

इनकी सोच, इनका जीवन, समाज को नैतिक मूल्यों को अपने जीवन में अपनाने की प्रेरणा देता है। 

 

व्यवहारिक – व्यवहारिक व्यक्ति अपने जीवन में आदर्श को कोई महत्त्व नहीं देते। वे केवल लाभ – हानि के बारे में सोचकर ही कार्य करते हैं अर्थात वे केवल अपने बारे में ही सोचते हैं। अतः वे स्वार्थी होते हैं। इनके जीवन से समाज को कोई प्रेरणा नहीं मिलती इसलिए इनसे समाज का स्तर ऊँचा नहीं उठता है। 

 

प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट (व्यावहारिक आदर्शवादी) – ऐसे व्यक्ति आदर्शों में व्यवहारिकता मिलकर जीवन व्यतीत करने वाले होते हैं। ऐसे व्यक्ति लाभ – हानि के बारे में सोच कर ही कार्य करते हैं । 

 

लेखक ने शुद्ध आदर्श की तुलना शुद्ध सोने से की है और व्यावहारिकता की तुलना गिन्नी के सोने (ताँबा मिले सोने) से की है। 

 

यह बात ध्यान रखने की है कि जब लोग आदर्श में व्यावहारिकता मिलाकर उसे चलाने की कोशिश करते हैं अर्थात् आदर्श का दिखावा करते हैं तो उनके आदर्श पीछे छूट जाते हैं और व्यावहारिकता ही आगे दिखाई देती है। 

 

कहने का अर्थ यह है कि जिस प्रकार सोने में ताँबा मिलने से उसकी चमक बढ़ जाती है और उसकी चमक ही सबको दिखाई देती है उसी प्रकार आदर्श में जब व्यावहारिकता अर्थात् लाभ – हानि का महत्त्व बढ़ जाता है तब उन लोगों की ताँबे के समान व्यावहारिक सूझबूझ की चमक ही सबको दिखाई देती है। लोग उनकी इसी समझदारी से प्रभावित हो जाते हैं। इस प्रकार व्यक्तिगत (Personal) लाभ की आशा बढ़ने लगती है और आदर्श पीछे छूट जाते हैं फिर चाहे वह सोने की तरह कितने बहुमूल्य ही क्यों न हों? 

 

गांधी जी प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट – 

 

कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि गांधी जी प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट थे। वे आदर्शवादी थे लेकिन साथ ही वे व्यावहारिकता का महत्त्व भी जानते थे। वे अपने आदर्शों में व्यावहारिकता को मिलकर अपने आदर्शों को सफलतापूर्वक, देश की जनता तक पहुँचा सके। उन्होंने देश के लाभ के बारे में सोच और अपने आदर्शों में आवश्यक व्यावहारिकता को मिलकर अपने आदर्शों को पूरा करने में सफल हो सके। अगर वे ऐसा न करते तो वे देश को अपने साथ लेकर न चल पाते। 

 

गांधी जी किस प्रकार अन्य प्रैक्टिकल आइडियालिस्टों से अलग थे? 

 

गांधीजी ने आदर्शों में व्यावहारिकता को मिलाया था का अर्थ यह नहीं है कि उन्होंने अपने आदर्शों को नीचे गिराया बल्कि उन्होंने तो अपने आदर्शों में व्यावहारिकता को मिलाकर व्यावहारिकता का स्तर ऊँचा कर दिया। गांधी जी ने सत्य और अहिंसा के अपने आदर्शों के साथ कभी समझौता नहीं किया। उन्होंने व्यावहारिकता में इन आदर्शों को मिलाया। भारत देश को स्वतंत्रता दिलाने में उनके आदर्शों का बहुत महत्त्व है। 

 

‘वे सोने में ताँबा नहीं बल्कि ताँबे में सोना मिलाकर उसकी कीमत बढ़ते थे।’ इस पंक्ति का अर्थ है कि उन्होंने कभी अपने शुद्ध आदर्शों (सोने) की चमक बढ़ाने के लिए या केवल प्रभावित करने के लिए उसमें व्यावहारिकता (ताँबा) नहीं मिलाई बल्कि व्यावहारिकता (ताँबे) में आदर्श (सोना) मिलाकर उसका मूल्य बढ़ाया। इसलिए शुद्ध आदर्श ही हमेशा सामने रहे क्योंकि गांधी जी जानते थे कि आदर्श ही समाज को ऊँचा उठाने का काम करते हैं। 

 

व्यावहारवादी लोग हमेशा सावधानी से काम करते हैं। जिन कार्यों में उन्हें कोई लाभ या फ़ायदा नहीं दिखता या नुकसान की आशंका होती है वे उन कार्यों को कभी नहीं करते। जिन कामों को करने से उन्हें लाभ होता है वे उन्हें ही करते हैं और इसलिए जीवन में सफल होते हैं। वे अवसरों का लाभ उठाकर दूसरों से आगे भी निकल जाते हैं परंतु सोचने की बात ही है कि क्या वे ऊपर चढ़ते हैं अर्थात् क्या उनकी सोच ऊँची होती है ? क्या वे समाज के कल्याण के लिए कार्य करते हैं ? नहीं! वे ऐसा नहीं करते क्योंकि वे स्वभाव से स्वार्थी होते हैं। वे केवल अपने बारे में ही सोचते हैं, दूसरों के बारे में नहीं। 

 

लेखक ने लिखा है कि ‘खुद ऊपर चढ़े और अपने साथ दूसरों को भी ऊपर ले चले यही महत्त्व की बात है।’ इसका अर्थ है कि महान व्यक्ति वह है जो सच्चाई के रास्ते पर चलता हुआ सफलता की और बढ़े। वह दूसरों की सहायता करता हुआ उनकी सोच को बेहतर बनाता हुआ उन्हें भी अपने साथ सफलता की ऊँचाइयों पर ले जाए। ऐसा हमेशा से एक आदर्शवादी ही करता आया है। व्यवहारवादी लोगों ने तो अपनी सोच और कार्यों से समाज के सामने गलत उदाहरण प्रस्तुत करके समाज से मूल्यों (values) को गिराने का ही काम किया है। 

 

शाश्वत मूल्य और वर्तमान समय में इनकी प्रासंगिकता (महत्त्व) – 

 

शाश्वत मूल्य वे होते हैं जिनका महत्त्व हर युग / समय में होता है। ये समाज की उन्नति के लिए आवश्यक होते हैं। 

सत्य, एकता, भाईचारा, समानता, अहिंसा, अनुशासन, ईमानदारी, मित्रता, सबको साथ लेकर चलने की भावना जैसे शाश्वत मूल्यों को समाज के सामने प्रस्तुत करके आदर्शवादी लोगों ने समाज का स्तर ऊँचा किया है। उसकी सोच में सुधार का कार्य किया है। उनके द्वारा स्थापित आदर्शों (शाश्वत मूल्यों) का महत्त्व हर काल में बना रहता है। इनकी प्रासंगिकता आज भी है। समाज के विकास और देश की उन्नति के लिए हर व्यक्ति में इन शाश्वत मूल्यों का होना आवश्यक है।

Ginni ka Sona Idioms
गिन्नी का सोना मुहावरे

1. पीछे हटना – कम महत्त्वपूर्ण होना। 

2. हवा में उड़ते रहना – बड़ी कल्पनाएँ करते रहना / केवल सपने देखते रहना। 

3. ऊपर चढ़ना – प्रगति (विकास) के साथ ऊपर की ओर जाना / प्रगति करना। 

4. समाज को गिराना – समाज की प्रतिष्ठा या मूल्यों को कम करना। 

इन मुख्य बिंदुओं को पढ़कर छात्र परीक्षा में दिए जाने वाले किसी भी प्रश्न का उत्तर देने में समर्थ हो सकेंगे। आशा है उपरोक्त नोट्स विद्यार्थियों के लिए सहायक होंगे। 

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