alankar

Alankar for Class 9, 10 – अलंकार कक्षा 9, 10 – Hindi Grammar

Alankar – Anupras, Yamak, Upma, Roopak, Utpreksha, Atishyokti, Maanvikaran Alankar

Table of Contents

अलंकार का अर्थ है – ‘आभूषण’ । जिस प्रकार शरीर की सुंदरता को बढ़ाने में आभूषण (गहने) सहायक होते हैं, उसी प्रकार का अलंकारों का प्रयोग कविता की शोभा बढ़ाने के लिए किया जाता है। इनके प्रयोग से भाषा में चमत्कार उत्पन्न होता है।

अलंकार के दो भेद हैं – शब्दालंकार और अर्थालंकार। 

शब्दालंकार – जब शब्दों के विशिष्ट प्रयोग से काव्य में सुंदरता और चमत्कार उत्पन्न किया जाता है। अनुप्रास, यमक और श्लेष अलंकार शब्दालंकार के अंतर्गत आते हैं। 

अर्थालंकार – जब अर्थ के द्वारा काव्य में सुंदरता और चमत्कार उत्पन्न होता है। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति और मानवीकरण अलंकार अर्थालंकार के अंतर्गत आते हैं। 

आवश्यक सूचना – CBSE ने कक्षा 9 के पाठ्यक्रम के अंतर्गत अनुप्रास, यमक, उपमा और रूपक – चार अलंकारों को सम्मिलित किया है। 

कक्षा 10 के पाठ्यक्रम के अंतर्गत उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति और मानवीकरण – पाँच अलंकारों को सम्मिलित किया गया है। 

यहाँ हम उपरोक्त सभी अलंकारों – अनुप्रास, यमक, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति और मानवीकरण के बारे में जानेंगे। अलंकारों की परिभाषा, उनकी पहचान और स्पष्टीकरण सहित उदाहरणों के द्वारा हम इन अलंकारों को उचित रूप से समझ पाएँगे। 

अनुप्रास अलंकार

कविता में जब एक वर्ण की आवृत्ति एक से अधिक बार होती है अर्थात् एक वर्ण एक से अधिक बार आता है, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।

उदाहरण –

1. चारू चंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं थीं जल-थल में। ( ‘च’ वर्ण की आवृत्ति) 

2. दीनबंधु दुखियों का दुख कब दूर करोगे? ( ‘द’ वर्ण की आवृत्ति) 

3. कस्तूरी कंडलि बसै, मृग ढूँढ़े बन माँहि। ( ‘क’ वर्ण की आवृत्ति)

4. मुदित महिपति मंदिर आए। ( ‘म’ वर्ण की आवृत्ति)

5. मिटा मोदु मन भए मलीने। ( ‘म’ वर्ण की आवृत्ति)

6. पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोई। ( ‘प’ वर्ण की आवृत्ति)

7. बरसत बारिद बूँद । ( ‘ब’ वर्ण की आवृत्ति)

8. तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए। ( ‘त’ वर्ण की आवृत्ति)

9. गिरि का गौरव गाकर झर-झर, मद में नस-नस उत्तेजित कर। ( ‘ग’ वर्ण की आवृत्ति) 

10. छोरटी है गोरटी या चोरटी है अहीर की। ( ‘र’ और ‘ट’ वर्ण की आवृत्ति)

*एक वर्ण बार – बार एक की स्थान पर आना चाहिए, तभी अनुप्रास अलंकार होगा।

यमक अलंकार

कविता में जब एक शब्द का एक से अधिक बार प्रयोग हो तथा प्रत्येक स्थान पर उस शब्द के अर्थ अलग – अलग हों, तब वहाँ यमक अलंकार होता है।

उदाहरण –

1. कनक कनक तैं सो गुनी, मादकता अधिकाय।

   या खाए बौराय जग, वा पाए बौराय।।

~ यहाँ कनक शब्द का प्रयोग दो बार हुआ है परंतु दोनों का अर्थ अलग-अलग है। पहले कनक का अर्थ है – सोना और दूसरे कनक का अर्थ है – धतूरा ।

2. तीन बेर खाती थी, वो तीन बेर खाती थी।

~ पहले तीन बेर का अर्थ है – बार अर्थात् तीन बार और दूसरे तीन बेर का अर्थ है – गिनती में तीन बेर (एक प्रकार का फल)।

3. माला फेरत जुग भया, मिटा न मन का फेर।

   कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर।।

– पहले और चौथे मनका का अर्थ है – माला का मोती या दाना और दूसरे और तीसरे मन का का अर्थ है – हृदय का।

4. काली घटा का घमंड घटा।

~ पहले घटा का अर्थ है – बादल

 दूसरे घटा का अर्थ है – कम होना।

5. जितने तुम तारे, उतने नहीं गगन में तारे।

~ पहले तारे का अर्थ है – उद्धार करना 

 दूसरे तारे का अर्थ है – आकाश के तारे (नक्षत्र)।

6. है कवि बेनी, बेनी व्याल की चुराई लीन्ही। 

~ पहले बेनी का अर्थ है – कवि का नाम 

 दूसरे बेनी का अर्थ है – बालों की चोटी ।

अर्थालंकार से संबंधित जानने योग्य बातें – 

1. काव्य में कवि, किसी व्यक्ति या वस्तु के रूप – गुण आदि की स्थिति बताने के लिए अथवा उसे प्रभावपूर्ण बनाने के लिए किसी अन्य विशेष व्यक्ति या वस्तु से उसकी समानता दिखाता है। कवि जिस व्यक्ति या वस्तु का वर्णन करता है, वह कवि के लिए प्रस्तुत होता है और जिस अन्य (बाहरी) व्यक्ति या वस्तु से उसकी समानता दिखाता है, उसे अप्रस्तुत कहते हैं। 

2. कवि कभी प्रस्तुत तथा अप्रस्तुत की तुलना करता है, कभी प्रस्तुत तथा अप्रस्तुत की समानता बताता है, कभी प्रस्तुत पर अप्रस्तुत का आरोप करता है तो कभी प्रस्तुत में अप्रस्तुत की संभावना करता है। 

3. इन्हीं सब स्थितियों के कारण विभिन्न अलंकार होते हैं। 

4. प्रस्तुत को उपमेय तथा अप्रस्तुत को उपमान भी कहा जाता है। 

उपमा अलंकार

उपमा का अर्थ है – दो वस्तुओं या व्यक्तियों की तुलना करना और यह बताना कि वे एक-दूसरे के कितनी समान हैं। कविता में जब किसी व्यक्ति या वस्तु आदि के गुण, रूप और स्वभाव आदि की तुलना करके उसे किसी प्रसिद्ध व्यक्ति या वस्तु के समान बताया जाए है, तब वहाँ उपमा अलंकार होता है।

    उपमा अलंकार में तुलना के लिए सा, सी, से, सम, समान, सरिस जैसे वाचक शब्दों का प्रयोग किया जाता है। जैसे अंग्रेज़ी काव्य में उपमा – युक्तियों (similes) का प्रयोग किया जाता है – as strong as ox. 

• जिसकी तुलना की जाए – उपमेय

• जिससे तुलना की जाए – उपमान (कोई विशेष या प्रसिद्ध व्यक्ति या वस्तु) 

• सामान्य गुण – सामान्य धर्म 

• वाचक शब्द – सा, सी, से, सम, समान, सरिस

उदाहरण –

1. गिरी बूँद अमृत – सी आकर। 

(यहाँ बूँद की तुलना अमृत से की गई है।)

2. मुखबाल रवि – सम लाल होकर ज्वाला – सा बोधित हुआ।

(यहाँ बालक के मुख की तुलना सूरज और आग से की गई है।)

3. यह दीपशिखा – सी शांत भाव में लीन।

(यहाँ एक स्त्री की तुलना दीपशिखा अर्थात् दीपक की लौ के शांत भाव से की गई है।)

4. नीले नयनों – सा यह अंबर।

(यहाँ अंबर की तुलना नयनों से की गई है।)

5. यह देखिए अरविंद – से शिशुवृंद कैसे सो रहे।

(यहाँ शिशुओं की तुलना अरविंद अर्थात् कमल से की गई है।) 

6. पीपर पात सरिस मन डोला। 

(यहाँ मन की तुलना पीपत के पत्ते से की गई है।) 

रूपक अलंकार

कविता में जब किसी प्रस्तुत व्यक्ति या वस्तु (उपमेय) को उसके रूप, गुण अथवा स्वभाव आदि की अत्यधिक समानता के कारण अप्रस्तुत व्यक्ति या वस्तु (उपमान) ही मान लिया जाए, तब वहाँ रूपक अलंकार होता है।

उदाहरण – 

1. चरण-कमल बंदौ हरिराई।

(यहाँ भगवान के कोमल चरणों को कमल के समान न कह कर, कमल के समान अत्यधिक कोमल होने के कारण कमल कहा गया है अर्थात् कमल रूपी चरण। अत: यहाँ रूपक अलंकार है।

2. मैया मैं तो चंद्र-खिलौना लैहों।

(कवि ने यहाँ चंद्रमा को खिलौने के समान न मानकर बालक कृष्ण द्वारा खिलौना ही कहा है अर्थात् चाँद रूपी खिलौना।) 

3. उदित उदयगिरि मंच पर, रघुबर बाल-पतंग।

    विकसे संत-सरोज सब, हर्षे लोचन-भृंग।।

( प्रस्तुत दोहे में – 

‘उदयगिरि’ अर्थात् उदयाचल पर्वत पर ‘मंच’ का, ‘रघुवर’ अर्थात् श्रीराम पर ‘बाल-पतंग’ अर्थात् सूर्य का, 

‘संतों’ पर ‘सरोज’ अर्थात् कमल का और 

‘लोचन’ अर्थात् आँखों पर ‘भृंगों’ अर्थात् भौंरों का अभेद आरोप होने से रूपक अलंकार है।)

4. मेखलाकर पर्वत अपार, 

अपने सहस्‍त्र दृग-सुमन फाड़।

अवलोक रहा है बार-बार, 

नीचे जल में निज महाकार।

( यहाँ दृग (आँखों) पर सुमन (फूल) का अभेद आरोप होने से रूपक अलंकार है।) 

5. बीती विभावरी जागरी

    अंबर-पनघट में डुबो रही

    तारा-घट उषा-नागरी।

(यहाँ उषा पर चतुर नारी का, आकाश पर पनघट का और तारों पर घड़े का अभेद आरोप हुआ है अर्थात् उपमेय और उपमान के अंतर को समाप्त कर दिया गया है।) 

6. पायो जी मैंने राम – रतन -धन पायो।

(यहाँ राम रतन पर धन का आरोप है और दोनों में अभिन्नता बताई गई है, इसलिए यहाँ रूपक अलंकार है।) 

उत्प्रेक्षा अलंकार

 जहाँ प्रस्तुत (उपमेय) में अप्रस्तुत (उपमान) की संभावना (ऐसा लगता है का भाव) या कल्पना की जाए, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है अर्थात् ‘उपमेय’ को ‘उपमान’ जैसा मान लिया जाता है। इस अलंकार के वाचक शब्द हैं – मनो, मानो, मनु, मनहुँ, जानो, जनु, जनहुँ, ज्यों आदि।

उदाहरण –

1. सोहत ओढ़े पीत पट, स्याम सलोने गात।

   मनो नीलमनि सैल पर, आतप परयो परभात।।

( यहाँ ‘मनो’ शब्द के द्वारा कवि ने श्रीकृष्ण के सुंदर श्याम (साँवले) शरीर में नीलमणि पर्वत की तथा उनके पीतांबर (उनके द्वारा धारण किए हुए पीले रंग के वस्त्र) में सुबह की धूप की संभावना या कल्पना की है।) 

2. ले चला साथ मैं तुझे कनक, ज्यों भिक्षु लेकर स्वर्ण – झनक।

(यहाँ ‘ज्यों’ शब्द के द्वारा कवि ने उपमान और उपमेय की समानता की संभावना प्रकट की है। कवि ने अपनी गुण – संपन्न पुत्री में बहुमूल्य सोने की संभावना व्यक्त की है और स्वयं की स्थिति में एक ऐसे भिक्षुक की संभावना व्यक्त की है जो सोने के सिक्कों से खनकती थैली को लेकर खुशी से चल रहा है।)

3. कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए, 

    हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए।

( यहाँ ‘मानो’ शब्द के द्वारा आँसुओं से भरे नेत्रों में कमल के फूल पर पड़ी ओस की बूँदों की संभावना व्यक्त की गई है।) 

4. पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के, 

    मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के ।

(यहाँ ‘ज्यों’ शब्द के द्वारा मेघ में पाहुन (मेहमान) की संभावना प्रकट की गई है। 

5. उस काल मारे क्रोध के तनु काँपने उनका लगा।

    मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा।। 

(यहाँ ‘मानो’ शब्द के द्वारा तन में सागर की संभावना प्रकट की गई है। 

6. लता भवन ते प्रगट भै, तेहि अवसर दोउ भाइ।

    निकसे जनु जुग विमल बिधु, जलद पटल बिलगाइ।।

(यहाँ ‘जनु’ शब्द के द्वारा दोनों भाइयों (राम-लक्ष्मण) में से दो निर्मल चंद्रमा की संभावना प्रकट की गई है।)

अतिशयोक्ति अलंकार

कविता में जब किसी व्यक्ति के गुण, रूप-सौंदर्य, वीरता का या किसी वस्तु की विशेषता का अथवा किसी घटना या दृश्य का बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया जाता है, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है।

उदाहरण – 

1. हनुमान की पूँछ में, लगन न पाई आग। 

   लंका सिगरी जल गई, गए निसाचर भाग।। 

( हनुमान जी की अपार शक्ति के बारे में बताने के उद्देश्य से, कवि ने यहाँ हनुमान जी की पूँछ में आग लगने से पहले ही सारी लंका नगरी के जल जाने और राक्षसों के भागने का वर्णन किया है।) 

2. आगे नदिया पड़ी अपार, घोड़ा कैसे उतरे पार।

 राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार।।

(महाराणा प्रताप अभी सोच ही रहे थे कि उनका घोड़ा चेतक, नदी पार करके उस पार पहुँच गया। यहाँ घोड़े की बुद्धि और चुस्ती का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन है।)

3. देख लो साकेत नगरी है यही, 

   स्वर्ग से मिलने गगन को जा रही। 

( यहाँ साकेत नगरी की ऊँची इमारतों की भव्यता को दर्शाने के लिए कवि ने बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया है।) 

4. इतना रोया था मैं उस दिन, ताल-तलैया सब भर डाले। 

( यहाँ कवि ने अपने दुख का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया है।) 

5. इत आवत चलि जात उत, चली छ-सातक हाथ। 

    चढ़ी हिंडोरे-सी रहे, लगी उसासनु साथ।। 

( विरह की वेदना के कारण नायिका इतनी क्षीण (कमज़ोर) हो गई है कि साँस लेने और छोड़ने पर नायिका का शरीर झूले के समान आगे-पीछे हो रहा है। कवि ने नायिका के दुख का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया है।) 

6. बाण नहीं पहुँचे शरीर तक, शत्रु गिरे पहले ही भू पर। 

( यहाँ वीरता का असाधारण रूप से बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया गया है।) 

मानवीकरण अलंकार

कविता में जब प्रकृति, जैसे- पेड़-पौधे, आकाश आदि और निर्जीव वस्तुओं में मानवीय भावनाओं का वर्णन हो अर्थात् उन्हें मानव की तरह सुख-दुख का अनुभव करते हुए या मानव जैसी क्रियाएँ करते हुए दर्शाया जाए तब वहाँ मानवीकरण अलंकार आता है।

उदाहरण – 

1. उषा सुनहले तीर बरसाती जयलक्ष्मी-सी उदित हुई,

 उधर पराजित काल रात्रि भी जल में अंतर्निहित हुई।।

(यहाँ उषा अर्थात् सुबह और रात्रि अर्थात् रात का मानवीकरण किया गया है। उषा का आगमन ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो सुनहरे तीरों की वर्षा करती हुई (सूरज की किरणें बिखेरती हुई) विजयलक्ष्मी प्रकट हो रही हैं। दूसरी ओर रात पराजित होती हुई, जल में छिप रही है।) 

2. मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के ।

(यहाँ कवि ने मेघ (बादल) के, मानव की तरह बन-ठनकर और सज-सँवरकर आने का वर्णन किया है।) 

3. सतपुड़ा के घने जंगल, 

    नींद में डूबे हुए से, 

    ऊँघते अनमने जंगल।

(यहाँ सतपुड़ा के जंगलों को मानव की भांति सोता हुआ बताया गया है।) 

4. लो हरित धरा से झाँक रही

    नीलम की कली, तीसी नीली।

(यहाँ कवि ने प्रकृति के सौंदर्य का वर्णन किया है कि हरी-भरी धरती पर तीसी अर्थात् अलसी के नीले फूल ऐसे लग रहे हैं मानो हरी धरती की ओट से वे मनुष्य के समान झाँक रहे हों।) 

5. ओ नियति! तू सुन रही है। 

( नियति अर्थात् भाग्य से मानव के समान सुनने की अपेक्षा करना।) 

6. खड़-खड़ करताल बजा, नाच रही बेसुध हवा।

( हवा का मानव के समान नाचने की क्रिया करने का वर्णन।) 

अलंकार – Watch and Learn

More from Hindi Grammar :

मानवीकरण अलंकार – with 25+ Examples 

अतिशयोक्ति अलंकार – with 25+ Examples 

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *