छह उत्पाती – 6 उत्पाती – शिक्षाप्रद हिंदी कहानी/एकांकी/नाटक

यह सभी को ज्ञात है कि बच्चे स्वभाव से चाहे कितने ही शरारती हों परंतु मन के बहुत ही सच्चे होते हैं। अपने हितैषी को पहचानने की उनमें अद्भुत शक्ति होती है। यदि बच्चों के साथ संयम बरता जाए तो उन्हें सन्मार्ग पर लाया जा सकता है। इसी तथ्य को पुष्ट करती यह एकांकी / नाटक / कहानी – छह उत्पाती यहाँ प्रस्तुत की जा रही है। जिसे मैंने शायद अपने बचपन के दिनों में पढ़ा या सुना था लेकिन इतने सालों बाद भी मेरे स्मृति-पटल पर इसकी धुँधली छाया विद्यमान थी। 
         प्रेरणा अवश्य ही मेरी स्मृतियों की देन है परंतु शब्द पूर्णतः मौलिक हैं। अपने अध्यापन काल में मैंने अपनी उन्हीं स्मृतियों को नाट्य – मंचन के उद्देश्य से शब्दबद्ध किया था। आशा है पाठक गण इस एकांकी / नाटक / कहानी – छह उत्पाती को पढ़कर आनंदित होंगे। 
      आप सभी से अनुरोध है कि इस एकांकी / नाटक / कहानी – छह उत्पाती को पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया रूप में अपने विचार अवश्य साझा करें। आपके विचार मेरे लेखन के परिष्कार में सहायक होंगे। 

Table of Contents

छह उत्पाती

हिंदी कहानी - छह उत्पाती

 पात्र परिचय 

छह हॉस्टल के विद्यार्थी उम्र लगभग 12 वर्ष 

एक व्यस्क (आदमी) – उम्र 40-45 के बीच 

हॉस्टल के महासचिव (सेक्रेटरी) – उम्र 21 – 22 वर्ष 

(ट्रेन के एक डिब्बे का दृश्य, जहाँ छह हम उम्र बालक एक  कंपार्टमेंट में आमने-सामने तीन – तीन का समूह बनाकर एक सीट पर बैठे हैं। उनका सामान सीट के नीचे वाले स्थान में रखा है।) 

 

 

पहला बालक – इस बार की छुट्टियाँ बहुत मज़े में बीती! 

दूसरा बालक – हाँ यार! अब फिर से वही स्कूल, वही पढ़ाई और होमवर्क। 

तीसरा बालक – मेरा तो मन ही नहीं कर रहा था वापस आने का! 

चौथा बालक – कल इस समय मैं अपने घर पर पड़े मज़े से टीवी पर अपना मनपसंद कार्टून चैनल देख रहा था। पर अब हर समय पढ़ाई, एसेसमेंट्स और पढ़ाई… 

सभी बालक (एक दूसरे की व्यथा को अपनी व्यथा बताते हुए हामी भरते हुए एक ही स्वर में बोले) – हाँ यार! 

छठा बालक – अरे यार! क्या तुम्हें हिंदी के नए अध्यापक के बारे में पता है? 

अन्य सभी बालक – नए हिंदी अध्यापक!! 

छठा बालक – हाँ यार! हॉस्टल के सेक्रेटरी, मेरे पिता जी के मित्र हैं। पिछले सप्ताह वे हमारे घर आए थे। तभी उन्होंने बताया कि यह आदमी उस चंदू मास्टर मेरा मतलब, उस चंद्रशेखर त्रिपाठी की जगह पर अप्वॉइंट किया गया है। 

अन्य सभी – अच्छा! पर उस चंदू मास्टर को क्या हुआ? 

छठा बालक – वह पिछले सत्र के अंत में रिटायर हो गए और अपने घर वापस चले गए। 

तीसरा बालक – अरे यार! उन्हें तो हम चकमा दे देते थे। अब न जाने कैसा हिंदी टीचर आएगा?

 दूसरा बालक – हाँ यार! तुम सही कहते हो। वे इतने बूढ़े हो गए थे कि हम पीछे की सीट पर बैठकर जितनी भी मस्ती करें उन्हें कुछ पता ही नहीं चलता था। 

पहला बालक – इस नए टीचर का नाम क्या है? 

छठा बालक – विद्यासागर

पहला बालक – विद्यासागर!  मतलब विद्या के सागर। उफ़! कहीं यह हमें अपनी विद्या के सागर में डूबो न दें।

दूसरा बालक – यह काम तो बहुत खराब हुआ। एक तो हिंदी विषय, ऊपर से नया टीचर।

तीसरा बालक – हाँ यार! उन चंदू मास्टर को चकमा देने में तो हम उस्ताद हो गए थे। पर…

चौथा बालक – पर अब न जाने यह विद्यासागर क्या बला है? 

सभी एक – साथ बोले – बेकार हिंदी, बेकार टीचर… 

छठा बालक – चलो, चल कर इन्हें भी देख लेंगे! 

 

(… और सभी मित्र एक – दूसरे को शरारत भरी नज़रों से देखते हुए, एक – दूसरे के हाथ पर हाथ देकर ताली बजाते हैं और खूब ज़ोर से हंसते हैं।) 

 

सभी – विद्या के सागर -विद्यासागर…. हा! हा! हा!

 

(इसी हाथ परिहास के वातावरण में एक लंबे कद का, सफ़ेद बालों वाला व्यक्ति जो अपने चेहरे, हाव-भाव और पहनावे से सभ्य और समझदार प्रतीत हो रहा था, उसी कंपार्टमेंट में अपने बहुत से सामान के साथ प्रवेश करता है। बिस्तर की गट्ठरी और सूटकेस के साथ दो मिठाई के डिब्बे और एक हाथ में, थैले में अन्य खाने- पीने का सामान था।)

 

तीसरा बालक  (उग्रता – से) – अरे, अरे! तुम अंदर कैसे आ गए? दिखता नहीं, यहाँ जगह नहीं है। 

आदमी – पर ट्रेन चल चुकी है और गाड़ी के किसी भी डिब्बे में जगह नहीं है। मुझे किसी भी कोने में बस बैठने – भर की जगह चाहिए। मैं आप लोगों को परेशान नहीं करूँगा। (यह कहते हुए उसने गाड़ी के फ़र्श पर एक कोने में अपना बिस्तर लगा लिया और अपना बाकि सामान एक तरफ़ रख दिया और बैठ गया।) 

आदमी (मुस्कुराते हुए) – बच्चों आप लोग कहाँ जा रहे हैं? 

तीसरा बालक (रहस्यमयी हँसी के साथ) – किसी को ठीक करने। 

आदमी – अच्छा, कौन है वह? छठा बालक – कोई विद्या के सागर हैं। 

 

(सभी मित्र परिहासपूर्ण, रहस्यमयी हँसी हँसते हुए एक – दूसरे को देखते हैं और ताली बजाते हैं) 

 

सभी बालक – विद्या के सागर, विद्यासागर! 

तीसरा बालक – हम जल्दी ही उन विद्या के सागर को दुखों का सागर बना देंगे। 

आदमी – मतलब 

पहला बालक – मतलब यह है कि यह महाशय, विद्यासागर जी! हमारे हिंदी के नए अध्यापक हैं। 

दूसरा बालक – और वह हमें अपनी विद्या से बोर करें इससे पहले ही हम उन्हें यहाँ से भगा देंगे। 

आदमी – क्या वे आप लोगों को पसंद नहीं? 

तीसरा बालक – पसंद या नापसंद का तो मतलब ही नहीं क्योंकि हम उनसे कभी मिले ही नहीं! 

चौथा बालक –… और न ही मिलना चाहते हैं। 

पाँचवा बालक – हिंदी भाषा से जुड़ा अच्छा है ही क्या? तो उसे पढ़ाने वाला भी तो हिंदी जैसा ही होगा – बोर। 

छठा बालक – हमारे देश ने अपनी तरक्की कर ली है।हर जगह आज इंग्लिश का बोलबाला है, हर क्षेत्र में मैथ्स, साइंस आदि विषयों का महत्त्व है, फिर न जाने क्यों स्कूलों में अभी भी हिंदी पढ़ाई जाती है? 

आदमी – हिंदी हमारी मातृभाषा है, हमारी देश की भाषा है। हमें अपनी जड़ों से जुड़े रहना सिखाती है और अपनी जड़ों से, अपनी संस्कृति से जुड़े रहकर ही हम विकास कर सकते हैं, अच्छे इंसान बन सकते हैं। हिंदी हमारे देश का गौरव है। 

तीसरा बालक- देश का गौरव! सब बकवास है। हमारा देश बस ऐसी ही बातों पर ध्यान देता है। इसलिए जहाँ दुनिया साइंस और टेक्नोलॉजी के बल पर इतनी आगे निकल गई है, वहाँ हमारा भारत खेल को छोड़कर अन्य सभी क्षेत्रों में पीछे है। 

आदमी – ऐसा नहीं है! आज दुनिया जिस ऊँचाई पर है, उसकी सफलता के बीज सबसे पहले भारत में ही उपजे थे। 

 

(इस वार्ता के चलते आदमी एक गीत गाना आरंभ करता है, जिसमें ‘भारत देश’ के गौरव, उसकी सभ्यता और उसकी संस्कृति का बखान है। गाने की आवाज़ सुनकर पास की सीट पर बैठे पाँच – छह लोग और भी आ जाते हैं।सभी बच्चों के चेहरों पर ऐसे भाव प्रकट हो रहे थे जिन्हें देखकर लग रहा था कि उन्हें न तो गीत में कोई रुचि है और न ही भारत की गौरव गाथा सुनने में। लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से उस गीत ने सभी बच्चों को कहीं – न – कहीं प्रभावित अवश्य किया।) 

 

(गीत खत्म होते ही गाड़ी एक बड़े स्टेशन पर रुकती है। आदमी पानी की बोतल भरने के लिए गाड़ी से नीचे उतरता है।) 

 

(तीसरा बालक जो इन बालकों में सबसे ज़्यादा शरारती है, आदमी द्वारा लाए मिठाई के डिब्बों और चिप्स के पैकेटों को शरारत भरी नज़र से देखता है।)

 

छठा बालक – दोस्तों, क्या तुम भी वही सोच रहे हो जो मैं सोच रहा हूँ। 

सभी – हाँ बिल्कुल! 

दूसरा बालक (मिठाई का डिब्बा खोलते हुए) – रसगुल्ले! अरे वाह! 

 

(और सभी बालक उस सामान पर टूट पड़ते हैं और थोड़ी देर में सब चट कर डालते हैं।) 

 

(जब आदमी कंपार्टमेंट में वापस आता है, तब तक सभी डिब्बे और पैकेट खाली हो चुके होते हैं और सभी लड़कों के पेट भर चुके थे।) 

 

तीसरा बालक (आदमी से) – अरे! तुम्हें समझ नहीं आती? उतरो अभी। मैंने कहा ना, यह डिब्बा तुम्हारे लिए ठीक नहीं। 

आदमी – क्यों क्या हुआ? 

चौथा बालक – इस कंपार्टमेंट में चूहे हैं। 

आदमी – क्या? 

दूसरा बालक – हाँ! यह पूरा कंपार्टमेंट चूहों से भरा पड़ा है। पाँचवा बालक – देखो! वह तुम्हारे सामान को भी खराब कर गए। 

 

(आदमी ने देखा कि सारे मिठाई के डिब्बे और चिप्स के पैकेट खाली पड़े हैं।) 

 

चौथा बालक – वे तुम्हारा सारा सामान लेकर भाग गए। 

तीसरा बालक – हाँ, चूहे तो ऐसे ही होते हैं। 

आदमी (मुस्कुराते हुए) – बेचारे चूहे, कहीं वे भूखे न रह गए हों। 

पहला बालक – अब समझ में आया? यह न हो वह तुम्हारा बाकि का सामान भी खा जाएँ। आदमी – यह मेरी ही गलती है। अगर मुझे पता होता कि इस गाड़ी में इतने चूहे हैं तो मैं थोड़ा ज़्यादा सामान ले आता। 

 

(कुछ देर के लिए एकदम शांति… सभी बालक थोड़े खिन्न (उदास) हो जाते हैं क्योंकि वे सभी उस आदमी को परेशान कर, उसे गुस्से में देखने का मज़ा उठाना चाहते थे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।) 

 

(गाड़ी दूसरे स्टेशन पर रुकने वाली है।) 

 

आदमी (अपना सामान बाँधते हुए) – धन्यवाद प्यारे बच्चों!अब मैं आपको और परेशान नहीं करूँगा, इस स्टेशन पर काफ़ी सवारियाँ उतरेंगी। मुझे किसी-न-किसी डिब्बे में जगह मिल ही जाएगी। आपके साथ बहुत अच्छा लगा। मेरे कारण आपको जो असुविधा ही उसके लिए मैं माफ़ी चाहता हूँ |

पहला बालक – अरे नहीं, नहीं, असुविधा की क्या बात है। आप चाहें तो आगे का सफ़र भी हमारे साथ तय कर सकते हैं। 

दूसरा बालक- हाँ बिल्कुल! हम आपके सामान का ध्यान रखेंगे। तीसरा बालक – चिंता मत कीजिए, हम चूहों को आपके सामान के पास भी नहीं आने देंगे।

पाँचवा बालक – हाँ आप यहीं बैठिए, ऊपर हमारे साथ… आइए। 

 

(पाँचवा बालक उस आदमी को हाथ पकड़ कर अपनी सीट पर बैठाता है। गाड़ी स्टेशन पर रुकती है और आदमी जल्दी से स्टेशन पर उतरता है।… कुछ ही  देर में वह अपने साथ बहुत – से पैकेट लेकर आता है।) 

 

आदमी (एक -एक पैकेट बालकों को देते हुए) – इस बार, मैं पूरी तैयारी के साथ आया हूँ, अब एक भी चूहा भूखा नहीं रहेगा। 

सभी बच्चे (मुस्कुराते हुए) – थैंक यू सर !

आदमी – और यह खत्म करने के बाद एक -एक फ्रूटी भी रखी है इस थैले में।

दूसरा बालक – माफ़ कीजिएगा सर! हमने आपके बारे में कुछ पूछा ही नहीं। आप कहाँ जा रहे हैं?

आदमी – मैं नौकरी की तलाश में जा रहा हूँ ! 

सभी  बालक – किस तरह की नौकरी ?

आदमी – स्कूल टीचर की। 

सभी बालक – स्कूल टीचर की! 

आदमी – हाँ, मैं हिंदी पढ़ाता हूँ। 

 

(सभी बालक खुशी से उछल पड़ते हैं और एक – दूसरे के हाथ पर ताली बजाते हुए) – 

 

सभी बालक – अरे वाह! बहुत बढ़िया!

छठा बालक –…. तो आप हमारे स्कूल में हिंदी अध्यापक की जगह पर क्यों नहीं आ जाते ?

आदमी – पर क्या आपके स्कूल वाले मुझे रखेंगे?

छठा बालक – वह सब हम कर लेंगे? 

आदमी – कैसे ?

तीसरा बालक – वे हमारे अपने तरीके हैं! 

छठा बालक – अच्छा ही होगा, अगर आप हमें हिंदी पढ़ाएँ। कम-से-कम उस विद्‌‌या – सागर से तो पीछा छूटेगा।

आदमी – अच्छा, तो फिर ठीक हैं। मुझे अपने स्कूल ले चलो |

पाँचवा बालक – हमारा स्टेशन आने वाला है।

 

(गाड़ी स्टेशन पर रुकती है।)

 

चौथा बालक – प्लेटफार्म पर बहुत भीड़ है। अरे! यह हमारे हॉस्टल के सैक्रेटरी त्रिपाठी जी यहाँ कैसे ? 

छठा बालक – हाँ, यह हमें ले जाने आए होंगे। कहीं हम खो न जाएँ। (सभी हँसते हैं। )

 

(जैसे ही ट्रेन रुकती है। सभी बालक अपना सामान सँभालने में व्यस्त हो जाते हैं। तभी त्रिपाठी जी उनके कंपार्टमेंट में प्रवेश करते हैं।)

 

सभी बालक (आश्चर्य से) – गुड मार्निंग, सर

सैक्रेटरी – गुड मार्निंग बॉयज़ | 

सैक्रेटरी- (आदमी के पाँव छूते हुए)- गुडमार्निंग, सर।

 

(बालक हैरानी से कभी – दूसरे को, तो कभी  आदमी को और कभी सैक्रेटरी को देखते हैं।) 

 

सैक्रेटरी- आपका स्वागत है, विद्यासागर जी! चलिए, मैं आपको स्कूल ले चलता हूँ। आपके रहने की सारी व्यवस्था हो चुकी है। 

 

(बालकों के चेहरे पर कभी डर के, तो कभी आश्चर्य के, तो कभी शर्मिंदगी के भाव आ – जा रहे थे।) 

 

(…. कुछ समझ न आने की स्थिति में सभी ने एक – दूसरे की ओर देखा और बिना कुछ कहे ग्लानि – भाव से, सभी ने एक – साथ अपने नए हिंदी अध्यापक के चरण स्पर्श किए। 

 

– इस घटना ने बच्चों को चाहे थोड़ा – सा डरा दिया और कुछ हैरान भी किया परंतु वह इस बात को जान गए थे कि धैर्य और संयम मनुष्य को अच्छा इंसान बनाते हैं और एक अच्छा इंसान अपनी अच्छाई से किसी का भी दिल जीतने का सामर्थ्य रखता है। 

प्रिय पाठकों, 

आपको यह एकांकी / नाटक / कहानी – ‘छह उत्पाती’ कैसी लगी ? कृपया अपने विचार और सुझाव मुझे कॉमेंट करके अवश्य बताएँ। 

धन्यवाद 

सोनिया बुद्धिराजा 

(प्रेरित) 

More Like This :

hindi

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *